द फॉलोअप डेस्कः
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने मॉब लिंचिंग विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए भेज दिया है। दरअसल इससे पहले पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने विधेयक सरकार को लौटा दिया था। उन्होंने विधेयक में मॉब की परिभाषा पर आपत्ति दर्ज करायी थी, लेकिन सरकार ने मॉब की परिभाषा को संशोधित किए बिना ही राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को भेज दिया था। हालांकि सरकार द्वारा भेजे गये विधेयक की समीक्षा और उस पर कानूनी राय लेने के बाद राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया है। जिसका मुख्य कारण है मॉब की परिभाषा का कानून-सम्मत नहीं होना।
मॉब की परिभाषा गलत
सरकार द्वारा स्वीकृति के लिए भेजे गये झारखंड भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग विधेयक 2021 में दो या दो से अधिक व्यक्तियों के किसी समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है। राष्ट्रपति के पास भेजे गये विधेयक में कहा गया है कि देश में लागू भारतीय दंड संहिता में पांच या पांच से अधिक लोगों के उग्र समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा बनायी गयी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में भी पांच या पांच से अधिक लोगों के उग्र समूह को मॉब या भीड़ के रूप में परिभाषित किया गया है। इस तरह राज्य विधानसभा से पारित विधेयक में मॉब या भीड़ की परिभाषा कानून-सम्मत नहीं है। ऐसी स्थिति में इस पर राष्ट्रपति द्वारा विचार किया जाना ही बेहतर होगा।
रमेश बैस ने सरकार को लौटा दिया था विधेयक
इससे पहले जब झारखंड सरकार ने विधेयक को राज्यपाल के पास भेजा था तब राज्यपाल ने विधेयक की धारा 2(6) में मॉब या भीड़ की परिभाषा पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे संशोधित कर कानून के अनुरूप बनाने का सुझाव दिया था। तब राज्यपाल ने विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप के अनुवाद में हुई गलतियों को भी सुधारने का सुझाव दिया था। सरकार ने राज्यपाल के सुझाव के आलोक में अनुवाद की गलतियों को सुधारा, लेकिन मॉब या भीड़ की परिभाषा में किसी तरह का बदलाव किये बिना इसे विधानसभा से पारित करा कर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेज दिया था।