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पद्मश्री से सम्मानित हो कर लौटे डॉ. जानुम सिंह सोय, रांची एयरपोर्ट में हुआ जोरदार स्वागत

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द फॉलोअप डेस्क

पद्मश्री से सम्मानित हो कर डॉ जानुम सिंह सोय 9 अप्रैल रविवार को दिल्ली से रांची लौटे। इस मौके पर सिंहभूम आदिवासी समाज और  रांची की ओर से एयरपोर्ट में उनका जोरदार स्वागत किया गया। डॉ सोय को "हो भाषा साहित्य" के संरक्षण और विकास में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में नागरिक अलंकरण समारोह में 5 अप्रैल बुधवार को पद्मश्री डॉ. जानुम सिंह सोय को पद्म पुरस्कार 2023 प्रदान किया। बता दें कि इसके लिए भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की थी। इसमें जनजातीय हो भाषा के विद्वान और चाईबासा के मूल निवासी जानुम सिंह सोय को साहित्य और शिक्षा (हो भाषा) के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। जानुम सिंह सोय शुरू से ही हो भाषा के विकास के लिए प्रयासरत रहे। उनका रिसर्च पेपर भी हो लोकगीत का साहित्यिक और सांस्कृति अध्ययन पर था। वर्ष 2012 में कोल्हान विश्वविद्यालय से रिटायर होने के बाद वह हो भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए लगातार काम कर रहे हैं।

हो जनजाति की संस्कृति और जीवनशैली पर लिखी 6 पुस्तकें

पद्मश्री डॉ जानुम सिंह सोय ने हो जनजाति की संस्कृति और जीवनशैली पर 6 पुस्तकें लिखी हैं। जिसमें चार कविता संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। पहला काव्य संग्रह साल 2009 में प्रकाशित हुआ था। इसे बाहा सगेन नाम दिया गया था। जबकि इसका दूसरा हिस्सा इसी साल प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास में उन्होंने आदिवासियों की परंपरा, संस्कृति त्योहारों और लोकगीतों को शामिल किया है। पद्मश्री डॉ जानुम सिंह सोय का 2010 में कुड़ी नामक उपन्यास प्रकाशित हुआ था, जो हो जीवन के सामाजिक विषयों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसके अलावा इनके कविता संग्रह हरा सागेन के दो भाग प्रकाशित हो चुके हैं।

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पश्चिमी सिंहभूम में 8 अगस्त 1950 को हुआ था जन्म    

बता दें कि जामुन सिंह सोय झारखंड के अति पिछड़े जिले पश्चिमी सिंहभूम से आते हैं। उनका जन्म 8 अगस्त 1950 में हुआ था। उन्होंने हो भाषा को पीजी के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया। वहीं, वे 4 दशक से भी ज्यादा समय से हो भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में जुटे हैं।

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