रांची
महासभा ने मृतकों के प्रति गहरी संवेदना और उनके परिजनों के साथ एकजुटता प्रकट की है। महासभा ने कहा कि कश्मीर में आम नागरिकों, प्रवासी मजदूरों और अब पर्यटकों को भी आतंकी निशाना बना रहे हैं। भारी सैन्य उपस्थिति के बावजूद इस तरह की घटनाएं यह बताती हैं कि हालात सामान्य नहीं हैं। सूचना तंत्र की विफलता भी स्पष्ट है। चूंकि जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा पूरी तरह केंद्र सरकार के अधीन है, ऐसे में गृह मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देना चाहिए।
महासभा का कहना है कि केंद्र सरकार का ध्यान सुरक्षा बहाल करने की बजाय लगातार कश्मीरी युवाओं, पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज़ें दबाने पर रहा है। अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद कश्मीर की संवैधानिक स्वायत्ता और नागरिक अधिकारों को जिस तरह कुचला गया है, उसने लोगों को असुरक्षा के वातावरण में छोड़ दिया है।
महासभा ने चिंता जताई कि इस हमले को लेकर कुछ मीडिया संस्थानों और हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा विभाजनकारी और सांप्रदायिक प्रचार किया जा रहा है। यह दावा किया गया कि हमलावरों ने धर्म पूछ कर निशाना बनाया, जबकि इसकी कोई पुष्ट जानकारी नहीं है। दूसरी ओर, स्थानीय कश्मीरियों द्वारा पर्यटकों को बचाने की कोशिशें भी सामने आईं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज़ कर दिया गया।
महासभा ने कहा कि भाजपा और हिंदुत्ववादी ताकतें इस हमले को भी एक अवसर की तरह इस्तेमाल कर देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत और हिंसा को वैध ठहराने की प्रवृत्ति, अब आतंकवाद जैसे गंभीर मामलों तक को छूने लगी है, जो देश की एकता और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरनाक है।
महासभा ने नागरिकों से अपील की है कि वे इस कठिन समय में अफवाहों और नफ़रत फैलाने वाले प्रचार से बचें और ऐसे हर विभाजनकारी प्रयास का सामूहिक विरोध करें।
महासभा ने केंद्र सरकार से मांग की है कि:
• पहलगाम आतंकी हमले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्रवाई की जाए;
• जम्मू-कश्मीर में हिंसा को तुरंत रोका जाए;
• सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए;
• जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाए;
• स्थानीय लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए ईमानदार और सहभागी संवाद प्रक्रिया शुरू की जाए;
• देश भर में मुसलमानों, विशेषकर कश्मीरियों, के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा या भेदभाव को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
यह बयान झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से जारी किया गया है, जिसमें निम्नलिखित हस्ताक्षरकर्ता शामिल हैं:
अजय एक्का, अफज़ल अनीस, अलोका कुजूर, अमन मरांडी, अम्बिका यादव, अम्बिता किस्कू, अपूर्वा, अशोक वर्मा, भरत भूषण चौधरी, बिंसय मुंडा, बिरसिंग महतो, चार्लेस मुर्मू, चंद्रदेव हेम्ब्रम, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, जेम्स हेरेंज, जॉर्ज मोनिपल्ली, ज्यां द्रेज़, ज्योति बहन, ज्योति कुजूर, कुमार चन्द्र मार्डी, लीना, मंथन, मनोज भुइयां, मेरी हंसदा, मुन्नी देवी, मीना मुर्मू, नरेश पहाड़िया, प्रवीर पीटर, प्रेम बबलू सोरेन, पी एम टोनी, प्रियाशीला बेसरा, नन्द किशोर गंझू, परन, प्रवीर पीटर, रिया तुलिका पिंगुआ, राजा भाई, रंजीत किंडो, रमेश जेराई, रोज खाखा, रोज मधु तिर्की, रमेश मलतो, रेजिना इन्द्वर, रेशमी देवी, राम कविन्द्र, संदीप प्रधान, संगीता बेक, सिराज दत्ता, शशि कुमार, संतोषी लकड़ा, सिसिलिया लकड़ा, शंकर मलतो, टॉम कावला, टिमोथी मलतो, विनोद कुमार, विवेक कुमार।