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ददई दुबे की सीट छिनी, अब क्या करेंगे बाबा ..?

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श्याम किशोर पाठक
कांग्रेस के नेम फेम नेता रहे चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे का सीट छिन गया। पलामू के दबंग और बिहार झारखंड के एक बड़े नेता की हैसियत रखने वाले ददई दुबे के लिए इस बार टिकट मिलने की तो बात दूर उनकी सीट ही राजद के खाते में चली गई। अब इसका कारण तलाशने की भी जरूरत नहीं है। टिकट बंटवारे को लेकर कांग्रेस-राजद के बीच में इनका सीट ही छिन जाना यह साबित करता है कि जनता में इनकी कमजोर होती पकड़ ही पार्टी में भी इनकी साख को इतना कमजोर कर दिया कि पार्टी ने इनसे इनका सीट भी छीन लिया। इसके साथ ही अब यह भी माना जा सकता है कि ददई नाम के राजनीतिक शख्सियत के करियर का खात्मा भी हो गया। 

अब तक के उनके राजनीतिक करियर की बात करें तो पलामू टाइगर के नाम से मशहूर विनोद सिंह को 1985 में हराकर पहली बार विधायक बनने वाले ददई बाद में स्वयं भी एक दबंग नेता की छवि हासिल कर लिए। क्योंकि 1985 के बाद में ददई दुबे दोबारा 1990 में जीते। 1995 में रामचंद्र चंद्रवंशी ने उन्हें हराया। लेकिन 2000 में वे फिर जीत गए। 2004 में उन्होंने बेटे अजय को लड़ाया। खुद धनबाद चले गए, लोकसभा चुनाव लड़े और धनबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद भी चुन लिए गए। 

सही मायने में लोगों का उनसे यहीं से थोड़ा मोह कम होने लगा। हालांकि 2009 में वे फिर से बिश्रामपुर से चुनाव लड़े और जीते। लेकिन लोगों को यह लग गया कि धनबाद इनकी प्राथमिकता है। 2009 में लोकसभा का चुनाव हारने पर यहां से विधानसभा का चुनाव लड़ा है। इसलिए लोगों का ददई के साथ अपनापन खत्म होने लगा। 
भले वे थोड़े-थोड़े दिनों के लिए बिहार और झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी ददई दुबे शायद राजनीति को समझ नहीं सके। जो काम रामचंद्र चंद्रवंशी ने किया, न तो वे निजी जिंदगी में कर सके और न ही राजनीतिक जीवन में।

जब लोगों ने इन्हें कांग्रेस छोड़कर कम से कम बेटे को बीजेपी  में भेजने की सलाह दी, तब ये गुरूर में ही रहे। जबकि चंद्रवंशी ने स्थिति को भांप लिया और बिल्कुल विपरीत नेचर की राजनीति करने के बाद भी बिना देर किए बीजेपी  में चले गए। परिणाम यह हुआ कि उनके हाथों न सिर्फ ददई को 2014 और 2019 में बुरी तरह हारना पड़ा। बल्कि इनका स्थान तीसरा और पांचवा रहा। 

पिछले चुनाव में तो बेटे अजय दुबे की मौत के बाद भी ये पांचवे स्थान पर रहे। यह उनके जैसे नेता के लिए शर्मनाक घटना थी। लेकिन इसके बाद भी वे इस बार फिर से टिकट मिलने और चुनाव लड़ने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन कमजोर कांग्रेस में भला लालू के सामने उनकी इज्जत कहां बचने वाली थी? हुआ यह कि पिछले चुनाव के प्रदर्शन के आधार पर राजद ने इस सीट पर अपना दावा ठोक दिया। अंततः राजद के नरेश सिंह को यह सीट मिल गई और वे देखते रह गए।।

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