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रंगमंच से समाज और सियासी शक्तियों के रिश्ते का दस्तावेज है अनीश अंकुर की किताब : महुआ माजी

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रांची
रांची के जिला स्कूल में आयोजित पुस्तक मेला में आज संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर की पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। प्रकाशन संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में  मुख्य अतिथि के रूप में लेखिका व राज्यसभा सांसद महुआ माजी मौजूद थीं। स्वागत वक्तव्य प्रकाशन संस्थान के हरिश्चंद्र शर्मा ने दिया। विनोद कुमार की अध्यक्षता में हुई परिचर्चा में महुआ माजी अरुण कुमार, प्रकाश देवकुलिश, एम. जेड खान, डॉ उर्वशी, प्रकाश सहाय आदि शामिल थे। 

राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने उषा गांगुली, जात्रा आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि अनीश अंकुर ने रंगकर्म के अंदर के उठी बहसों, प्रवृत्तियों और परिघटनाओं पर कलम चलायी है। इन परिघटनाओं की पृष्ठभूमि में किस किस्म की समाजी व सियासी शक्तियाँ काम करती रही है इस ओर इशारा किया गया है। 

वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक अरुण कुमार ने कहा कि इस पुस्तक में बिहार रंगमंच पर काफी अच्छी सामग्री है। आलेखों, टिप्पणियों के आलावा रंगजगत के प्रमुख निर्देशकों व अभिनेताओं के दुर्लभ साक्षात्कार हैं। ये साक्षात्कार पाठकों को रंगकर्म के कई नए आयामों से परिचित करायेंगे। वक्ताओं ने बताया कि संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर की पुस्तक ' रंगमंच के समाजिक सरोकार'  समकालीन रंगपरिदृश्य में हस्तक्षेप की तरह है। इसमें रंगमंच के उन पहलुओं पर विचार किया गया है जिनपर अमूमन कम चर्चा होती है।

प्रकाश देवकुलिश ने पुस्तक पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि 'रंगमंच के सामाजिक सरोकार' हमें भारतीय और विश्व रंगमंच के उन शख्सियतों से परिचित कराती है, जिनके बगैर रंगमंच सम्बन्धी कोई बातचीत पूरी नहीं होती। डॉ उर्वशी ने कहा कि इस किताब से मुझे अध्यापन कार्य में सुविधा होगी। 

पुस्तक लेखक अनीश अंकुर ने  अपने संबोधन में कहा कि शेक्सपीयर ने अपने नाटकों में यह सवाल उठाया कि यह जीवन जीने लायक है या नहीं। टु बी और नॉट टू बी। 1857 के महाविद्रोह के दौरान जब भारतीयों का नृशंसता से दमन किया गया तक पहला विद्रोह नाटक के माध्यम से शुरू हुआ। नाटकों से पैदा होने वाले विरोध का मुंह बंद करने के लिए अंग्रेजों ने ड्रामेटिक परफॉर्मेंस एक्ट, 1876 लाया। आज तक यह काला कानून भारत के कुछ हिस्सों में बरकरार है। 

एमजेड खान के अनुसार अनीश अंकुर ने रंगमंच से जुड़े अपने उन साथियों को भी याद किया है जो असमय इस दुनिया से चले गए परंतु अपने छोटे से जीवन में बिहार के जनपक्षधर रंगकर्म पर अपनी अमित छाप छोड़ी है। प्रकाश सहाय ने कहा कि यह पुस्तक न सिर्फ रंगकर्मियों के लिए बल्कि सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों वाले हर व्यक्ति के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है। प्रोफेसर विनोद कुमार ने कहा कि मुझे यह किताब काफी अच्छी लगी। इसमें शंभू मित्र, विजन भट्टाचार्य, हबीब तनवीर, सफदर हाशमी आदि पर जो आलेख हैं वे बताते हैं कि लेखक प्रतिबद्ध रंगकर्म की धारा से जुड़े हैं। 


 

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