चाकुलिया (पूर्वी सिंहभूम):
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने रविवार को चाकुलिया के दिशोम जाहेर गढ़ में माथा टेक कर आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व की रक्षा के संकल्प को दोहराया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जो लोग अपनी पारंपरिक आस्था और प्रकृति पूजक संस्कृति को त्याग चुके हैं, उन्हें संविधान द्वारा प्रदत्त आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
पूर्व सीएम ने कहा, “हम आदिवासी प्रकृति पूजक हैं—पेड़, पहाड़ और जल स्रोत हमारे आराध्य हैं। धर्मांतरण के बाद जब लोग चर्च की ओर मुड़ जाते हैं, तो हमारे पारंपरिक स्थल—जाहेरथान, सरना स्थल, देशाउली—कौन संभालेगा? अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आदिवासी संस्कृति केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र जीवनशैली है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाएं मांझी, परगना, पाहन, मानकी-मुंडा और पड़हा राजा जैसे पारंपरिक धर्मगुरुओं की देखरेख में होती हैं। लेकिन धर्मांतरण के बाद लोग इन सब रस्मों के लिए चर्च का रुख करते हैं, जहां मरांग बुरु या सिंग बोंगा की कोई जगह नहीं होती। इस अवसर पर चंपाई सोरेन ने समाज से अपील की कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपने अधिकारों व पहचान की रक्षा के लिए सजग रहें।