रांची
आज संथाल समाज की बैठक राजकीय अतिथिशाला, रांची में हुई। इसमें संथाल समाज के धार्मिक, सामाजिक एवं जन संगठन के प्रतिनिधि तथा समाज के बुद्धिजीवी शामिल हुए। बैठक में गिरिडीह, हजारीबाग, संताल परगना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं कोल्हान क्षेत्र से लोग उपस्थित थे।
बैठक में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए:
प्रस्ताव संख्या 1:
मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत), पीरटांड, गिरिडीह संथाल आदिवासियों का देवस्थल है। मरांग बुरू को सृष्टिकाल से युगों-युगों से ईश्वर के रूप में पूजा जाता रहा है। प्रत्येक वर्ष वसंत ऋतु के फागुन माह के शुक्ल पक्ष तृतीया को दिशोम बाहा महोत्सव मनाया जाता है। पहाड़ की चोटी पर स्थित युग जाहेर थान में बलि प्रथा प्रचलित है। पर्वत की तलहटी में दिशोम मांझी थान स्थित है, जहां मरांग बुरू, जाहेर आयो, मोडेको, गोसाई बाबा एवं मांझी हडाम ग्राम देवता की पूजा-अर्चना होती है। प्रत्येक वर्ष वैशाख पूर्णिमा को तीन दिवसीय धार्मिक शिकारा सेन्दरा एवं लॉ-बीर बैसी का आयोजन होता है। धार्मिक शिकारा सेन्दरा में वन्य प्राणियों का शिकार करने की परंपरा रही है। मांझी परगना आपसी विवादों को लॉ-बीर बैसी में निपटाने का सर्वोच्च मंच है।
बिहार राज्य जिला गजट एवं 1911 में तैयार सर्वे खतियान भूमि अधिकार अभिलेख में इस रीति-रिवाज का स्पष्ट उल्लेख है। ब्रिटिश हुकूमत के समय जैन समुदाय द्वारा किए गए एक दावे को न्यायालय ने खारिज कर दिया था। बाद में, 1917 में पटना उच्च न्यायालय ने भी उनकी अपील को खारिज कर दिया। इसके बाद, प्रीवी काउंसिल में अपील की गई, जिसमें यह आदेश दिया गया कि मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर संथाल आदिवासियों का प्रथागत अधिकार (Customary Right) है और वहाँ शिकार करना उनकी परंपरा का हिस्सा है।
संथाल समाज अपने धार्मिक धरोहर मरांग बुरू देवस्थल के संरक्षण, सुरक्षा एवं अपने प्रथागत अधिकार को बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प है।
प्रस्ताव संख्या 2:
पारसनाथ पर्वत का प्राचीन नाम मरांग बुरू है। जैन समुदाय द्वारा लगातार इस पर्वत पर अतिक्रमण किया जा रहा है।
केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं न्यायालय को गलत तथ्यों के आधार पर गुमराह किया जा रहा है। जैन समुदाय द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय, रांची में जनहित याचिका WP (PIL) 525 Case No 231/2025 दिनांक 17.01.2025 को दायर की गई है, जिसमें मांस एवं मदिरा के क्रय-विक्रय पर रोक लगाने की मांग की गई है। संथाल समाज इस याचिका को संथालों के प्रथागत अधिकार एवं बलि प्रथा को समाप्त करने की साजिश मानता है और इसका कड़ा विरोध करता है।
प्रस्ताव संख्या 3:
संथाल समाज इस केस में हस्तक्षेप याचिका दायर करेगा। इसके लिए मरांग बुरू संस्थान एवं समाज के अन्य धार्मिक, सामाजिक एवं पंजीकृत जन संगठनों को अधिकृत किया गया है।
प्रस्ताव संख्या 4:
झारखंड उच्च न्यायालय, रांची के 2004 के आदेश के अनुसार, केवल पर्वत की चोटी पर 86 डिसमिल भूभाग में जैन समुदाय को पूजा की अनुमति दी गई है, स्वामित्व नहीं। लेकिन वन विभाग की मिलीभगत से पर्वत की चोटी पर 50 से अधिक मठ-मंदिर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं। संथाल समाज झारखंड सरकार से मांग करता है कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जाँच समिति का गठन किया जाए।
प्रस्ताव संख्या 5:
भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना संख्या 2795 (3) दिनांक 02 अगस्त 2019 के तहत मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को पारिस्थितिकी संवेदी जोन (Eco Sensitive Zone) घोषित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 244 एवं वन अधिकार अधिनियम 2006 का पालन किया जाना चाहिए। लेकिन जैन समुदाय के दबाव में मंत्रालय ने बिना ग्राम सभा की सहमति से संशोधन मेमोरंडम पत्र F.No 11-584/2014-WL दिनांक 05 जनवरी 2023 राज्य सरकार को जारी कर दिया, जिससे संथालों के प्रथागत अधिकारों पर हमला हुआ है। संथाल समाज भारत सरकार से मांग करता है कि इस पत्र को वापस लिया जाए।
प्रस्ताव संख्या 6:
झारखंड सरकार पर्यटन, कला, संस्कृति विभाग द्वारा जारी पत्रांक 1391 दिनांक 22.10.2016 एवं पत्रांक 14/2010-1995 दिनांक 21.12.2022 के अनुसार पारसनाथ पर्वत में मांस-मदिरा के क्रय-विक्रय एवं उपभोग पर रोक लगाने का आदेश दिया गया। जबकि मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में मांस-मदिरा का क्रय-विक्रय होता ही नहीं है। संथाल समाज इसे संथालों के Customary Right, बलि प्रथा एवं धार्मिक सेन्दरा शिकार से वंचित करने की साजिश मानता है और इस आदेश को निरस्त करने की मांग करता है।
प्रस्ताव संख्या 7:
संथाल समाज 12 मार्च 2025 को "अतिक्रमण विरोधी प्रतिरोध मार्च" का आयोजन करेगा। मार्च मधुबन फुटबॉल मैदान से दिशोम मांझी थान तक निकाला जाएगा, जिसमें सभी दिवासी/मूलवासी अपनी पारंपरिक पोशाक, तीर-धनुष, टमाक, सकवा एवं सरना झंडे के साथ शामिल होंगे।
प्रस्ताव संख्या 8:
"मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) बचाओ और अतिक्रमण हटाओ" अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए सभी आदिवासी सामाजिक, धार्मिक एवं जन संगठनों को मिलाकर एक समन्वय समिति का गठन किया जाएगा, जिसका एक मुख्य संयोजक होगा। इस बैठक में मुख्य रूप से राम लाल मुर्मू, महेश मारंडी, दुर्गा चरण मुर्मू, विष्णु किस्कू, शंकर सोरेन, जसाय मरांडी के साथ लगभग 150 मांझी परगना एवं समाजसेवी उपस्थित थे। इसकी जानकारी मीडिया प्रभारी सुधारी बास्के ने दी।