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द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच गईं। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनी हैं। आज लोग द्रौपदी मुर्मू की ओर भव्यता भरी निगाहों से देख रहे हैं। कई लोगों को लग रहा है कि एक पार्षद से लेकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने वालीं द्रौपदी मुर्मू की किस्मत कितनी अच्छी है लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन इतना भी सरल और आसान नहीं था। आज जिस द्रौपदी मुर्मू से करोड़ों लोग प्रेरणा ले रहे हैं, कभी वो भीषण डिप्रेशन से गुजरी थीं।
चेहरे पर हमेशा एक सादगी भरा मुस्कान रखने वालीं दौपदी मुर्मू की जिंदगी में कभी ऐसा वक्त भी आया था जब वे बेइंतिहा दर्द से गुजरीं। काल के क्रूर हाथों ने उनसे उनके अपनों को छीन लिया।
2010 से 2014 तक 4 साल तक मुश्किल भरा समय
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए साल 2010 से 2014 तक का समय बेहद मुश्किल भरा रहा। इन 4 सालों में राष्ट्रपति ने अपने 2 जवान बेटों और पति को खो दिया। 4 साल में नियमित अंतराल पर घऱ में हुई एक के बाद एक मौत ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बुरी तरह से तोड़ दिया था। इन 4 सालों में पहले बड़े बेटे की मौत हो गई। कुछ समय बाद छोटे बेटे और फिर पति की मौत हो गई। तारीख थी 25 अक्टूबर 2010। द्रौपदी मुर्मू के बड़े बेटे लक्ष्मण मुर्मू दोस्तों के घर पर किसी पार्टी में गये थे।
रात को लौटे तो मां से कहा। मैं थका हूं। मुझे डिस्टर्ब मत करना। ऐसा कहकर लक्ष्मण सोने चले गये। सुबह काफी देर तक दरवाजा खटखटाया गया लेकिन नहीं खुला। बाद में जब दरवाजा तोड़ा गया तो अंदर लक्ष्मण मृत मिले। उस समय राष्ट्रपति के सबसे बड़े बेटे की उम्र महज 25 साल थी।
पड़ोसियों और रिश्तेदारों का कहना है कि जब द्रौपदी मुर्मू ने बड़े बेटे को खोया तो बुरी तरह से टूट गईं। 6 महीने तक डिप्रेशन में रहीं। धीरे-धीरे उन्होंने मन को समझा लिया।
2 साल के अंतराल में 2 जवान बेटों को खो दिया था
फिर तारीख आई 2 जनवरी 2012। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के छोटे बेटे बिरंची मुर्मू किसी काम से बाहर गये थे। कुछ देर बाद सूचना मिली कि सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई है। उस समय बिरंची मुर्मू महज 28 साल के थे। 2 साल के अंतराल में द्रौपदी मुर्मू ने अपने दोनों जवाब बेटों को खो दिय। आखिरकार 1 अक्टूबर 2014 को द्रौपदी मुर्मू के पति, जिनसे उन्होंने प्रेम विवाह किया था, वे भी चल बसे। उस समय द्रौपदी मुर्मू के पति श्याम चरण मुर्मू की उम्र भी महज 55 साल ही थी।
नियमित रूप से ध्यान लगाकर सदमें से उबरीं थीं
एक के बाद एक पहले 2 बेटों और फिर पति की मौत से द्रौपदी मुर्मू को गहरा सदमा लगा। वे डिप्रेशन में चली गईं। उन्होंने उसी दौरान रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की अध्यक्ष सुप्रिया से पूछा कि मैं क्या करूं। कैसे जीऊं। तब सुप्रिया ने उनको संस्थान के मेडिटेशन सेंटर में आने की सलाह दी। आध्यात्म की शऱण में जाने की सलाह दी। उनकी सलाह मानकर द्रौपदी मुर्मू हर रोज ब्रह्मकुमारी संस्थान जाने लगीं और ध्यान लगाने लगीं। शिव बाबा के ध्यान और उपासना ने उनके मन को शांत किया।
कहा जाता है कि द्रौपदी मुर्मू हमेशा अपेन साथ 1 ट्रांसलाइट और शिव बाबा की छोटी सी पुस्तिका रखती हैं। नियमित रूप से ध्यान लगाती हैं।
अपने घऱ को आवासीय विद्यालय में तब्दील कर दिया
द्रौपदी मुर्मू ने बेटों और पति की मौत होने के बाद रायरंगपुर स्थित अपने आवास को आवासीय विद्यालय में बदल दिया है। इस स्कूल का नाम श्याम लक्ष्मण शिपुन उच्च प्राथमिक आवासीय विद्यालय है। यहां बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। स्कूल परिसर में उनके दोनों बेटों लक्ष्मण और शिपुन तथा पति श्याम चरण मुर्मू की प्रतिमा स्थापित की गई है। हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर द्रौपदी मुर्मू यहां आती हैं।
देश की 15वीं राष्ट्रपति बनीं पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू
2014 में झारखंड की राज्यपाल बनने तक द्रौपदी मुर्मू नियमित रूप से ब्रह्मकुमारी संस्थान में जाती रहीं। परिजनों का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू हर रोज सुबह साढ़़े 3 बजे उठ जाती हैं। सैर पर जाती हैं और ध्यान लगाती हैं। इसी ध्यान ने उनको मानसिक रूप से मजबूत बनाया। पड़ोसियों और रिश्तेदारों का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू बहुत सरल हैं। उनमें अहंकार नहीं है।
जब वे झारखंड की राज्यपाल थीं तो राजभवन का द्वार सबके लिए खुला रहता था। वे सबसे मिलतीं और उनकी समस्याओं का निराकरण करतीं। लोगों को उम्मीद है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी वैसी ही होंगी।