रांची : राज्य के तीन जिलों रांची, लोहरदगा और गुमला में शिक्षा के जरिये सामाजिक बदलाव की मौन क्रांति हो रही है। यह शिक्षा के जरिये सामाजिक परिवर्तन लाने की कहानी तो है ही, गांवों के उत्थान और देशज संस्कृति के पुनर्जागरण की भी कहानी है।
शिक्षा के जरिये बदलाव की यह कहानी पंजाब पुलिस में आइजी रहे डॉ अरुण उरांव लिख रहे हैं। मांडर के उचरी गांव से शुरू हुई बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला का यह सफर अब 130 रात्रि पाठशालाओं तक जा पहुंचा है और इसके जरिये 5000 से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
350 से अधिक शिक्षक इन बच्चों को पढ़ा रहे हैं और उन्हें नये जमाने की जरूरतों के अनुरूप बहुमुखी शिक्षा देने में जुटे हुए हैं। आइपीएस की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद शिक्षा से समाज में बदलाव लाने की यात्रा पर डॉ अरुण उरांव अकेले ही निकले थे। शुरूआत में यह काम कठिन लग रहा था पर इस मुहिम में धीरे-धीरे उन्हें समाज का साथ मिलता गया और कारवां बनता गया।
अच्छी शिक्षा देने के लिए कुछ किया जाना चाहिए
शिक्षा के जरिये सामाजिक बदलाव का यह सफर कैसे शुरू हुआ इस बाबत डॉ अरूण उरांव ने बताया कि आइपीएस की नौकरी के दौरान जब उन्हें लगा कि नौकरी से भी बड़ा कुछ करना है तो उन्हें अपने घर, अपने राज्य चलना चाहिए इसके बाद वे नौकरी से वर्ष 2014 में वीआरएस लेकर झारखंड आ गये।
इसके बाद वे अपने घर पर कुछ बच्चों को पढ़ाने लगे। इस दौरान उन्हें महसूस हुआ कि गांव के बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए कुछ किया जाना चाहिए।
इसके बाद बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला की योजना बनी और मांडर प्रखंड के उचरी गांव में इसकी शुरूआत हुई। अनिल उरांव के नेतृत्व में शुरू हुई इस पाठशाला में शुरूआत में बच्चों की संख्या 40 थी, जो अब बढ़ कर 200 से ज्यादा हो गयी है। बसिया के लोटवा पतराटोली गांव में 130वां रात्रि पाठशाला खुली है।
ग्रामीण इलाकों में मिल रहा जबर्दस्त समर्थन
बाबा कार्तिक उरांव रात्रि पाठशाला के अभिनव प्रयास को ग्रामीण इलाकों में जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है। पाठशाला के जरिये युवा साथी नि:स्वार्थ भाव से बाबा कार्तिक उरांव के सपनों को पूरा करने मंट लगे हुए हैं। शिक्षा के जरिये गांव को एकजुट करने में रात्रि पाठशाला पूरे दम-खम के साथ जुटी हुई है।
रात्रि पाठशाला से जुड़े मांडर के कार्तिक लोहरा बताते हैं कि रात्रि पाठशालाओं के जरिये न सिर्फ अज्ञानता का अंधेरा दूर हो रहा है, बल्कि गांव की बेटियां-बहन और माताएं भी इससे जुड़ रही हैं। यही नहीं, महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सिनगी दई सिलाई केंद्र की शुरूआत भी उचरी में की गयी है। इससे गांव के पुरुष भी रात्रि पाठशाला से जुड़ने लगे हैं। इससे गांवों में संवाद का सिलसिला कायम हुआ है।
गांव की पहले की अखड़ा और धुमकुड़िया संस्कृति को भी इन पाठशालाओं के जरिये जीवित किया जा रहा है। इससे देशज संस्कृति का पुनर्जागरण भी किया जा रहा है। रात्रि पाठशालाओं के जरिये नशापान की समस्या सुलझाने के साथ महिलाओं की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्हें सिलाई-बुनाई और कढ़ाई के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
खेती-बारी को फायदेमंद कैसे बनायें, इस पर भी उनके बीच चर्चा होती है। जिन पाठशालाओं में 100 से अधिक बच्चे हैं, उन्हें कंप्यूटर दिया गया है। उन्हें बचपन से ही डिजिटल मीडिया और आइटी का इस्तेमाल सिखाया जा रहा है।
बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ा
रात्रि पाठशालाओं का जो सिलेबस तैयार किया गया है, वह सरकारी स्कूलों में पढ़ाये जानेवाले सिलेबस के अनुरूप ही है, पर इसमें पब्लिक स्पीकिंग पर जोर दिया गया है। हर पांच-छह महीने के अंतराल में इन पाठशाला के बच्चों के बीच लिखित परीक्षा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भाषण और चित्रांकन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इससे बच्चों में सबसे अच्छा करने की होड़ लग गयी है।
अच्छा करनेवाले बच्चों को पुरस्कार के साथ सम्मानित भी किया जाता है। इससे उनका उत्साहवर्द्धन हुआ है। रात्रि पाठशाला की छात्रा खुशबू कुमारी कहती हैं कि उनका सपना बड़े होकर डॉक्टर बनने का है। रात्रि पाठशाला में अंग्रेजी और गणित के साथ विज्ञान विषय की पढ़ाई पर खास जोर है। यही नहीं, यहां कंप्यूटर भी सिखाया जाता है। इससे मेरी रुचि विज्ञान में बढ़ती जा रही है। रात्रि पाठशाला के जरिये हमें बहुमुखी शिक्षा दी जा रही है।
ऐसे होती है रात्रि पाठशालाओं में पढ़ाई
रात्रि पाठशालाएं आंगनबाड़ी, धुमकुड़िया या सामुदायिक भवनों में संचालित की जाती हैं। इसमें शाम छह बजे से रात साढ़े आठ बजे तक पठन-पाठन होता है। रात्रि पाठशालाओं में छात्र-छात्राओं के लिए न कोई फीस है और न ही यहां पढ़ानेवालों की कोई तनख्वाह। स्वयं सहायता के फॉर्मूले पर रात्रि पाठशालाओं का यह रचनात्मक आंदोलन पिछले पांच-छह वर्षों में खड़ा हुआ है।
जिस किसी गांव में रात्रि पाठशाला खुलती है, वहां कॉलेज जाने वाले या कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुके युवा खुद शिक्षक के तौर पर श्रमदान का संकल्प लेते हैं। परिषद की ओर से उन्हें दरी, ब्लैकबोर्ड और एक-दो इमरजेंसी लाइट दी जाती है। हर तीन महीने पर आदिवासी परिषद रात्रि पाठशालाओं की व्यवस्था और उनके संचालन की समीक्षा करती है।
कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती हैं
रात्रि पाठशालाओं के शिक्षकों के लिए परिषद की ओर से समय-समय पर कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती हैं, जहां उन्हें पठन-पाठन को आसान और रुचिकर बनाने के गुर सिखाए जाते हैं। कई पाठशालाओं को कंप्यूटर भी मुहैया कराये गये हैं, जहां प्रोजेक्टर के माध्यम से डिजिटल क्लासेज की शुरूआत की गई है।
गणित, अंग्रेजी और विज्ञान विषयों में बच्चों को बेहतर बनाने का प्रयास होता है। पहली से लेकर दसवीं तक के बच्चों के लिए विषयवार तथा कक्षावार क्लास लगती है। कई पाठशालाओं में पुस्तकालय भी खोले गये हैं।
सांस्कृतिक गतिविधियों का भी होता है आयोजन
इन पाठशालाओं में हर बृहस्पतिवार की क्लास सांस्कृतिक गतिविधियों पर केंद्रित होती है। स्थानीय भाषा की क्लास के बाद अखड़ा में बच्चों को पारंपरिक गीत और नृत्य सिखाने की जिम्मेवारी गांव के बुजुर्गों की होती है। 'योग' और शारीरिक कसरत को भी पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है।
रविवार या छुट्टी के दिन बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दी जाती है। पाठशाला के बच्चों के लिए समय-समय पर बौद्धिक एवं सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं और बेहतर करने वालों को पुरस्कृत किया जाता है। लड़के-लड़कियों में अंतर पाठशाला फुटबॉल प्रतियोगिता का क्रेज सबसे ज्यादा है।
कोरोना काल में भी चलती रहीं कक्षाएं
डॉ अरुण उरांव बताते हैं कि अब हमारा फोकस गांव के युवाओं को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने पर है। फौज, केंद्रीय सुरक्षा बल एवं पुलिस की भर्ती में शामिल होने के इच्छुक युवाओं को गांव के ही सेवानिवृत्त फौजी और पुलिस अधिकारियों की देखरेख में शारीरिक-मानसिक परीक्षण के लिए तैयार किया जा रहा है। कुछ गांवों में महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए सिलाई केंद्र की शुरूआत भी की गयी है। उल्लेखनीय है कि बीते दो वर्षों में जहां स्कूल और कॉलेज कोरोना के चलते बंद रहे, वहीं रात्रि पाठशालाएं कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए नियमित रूप से चलती रहीं।
कार्तिक बाबा के सपने को पूरा करना है
श्री उरांव ने बताया कि गांव के गरीब-गुरबों के बीच शिक्षा की अलख जगाने और उन्हें एकजुट करने के ध्येय से हमारी यात्रा दिनोंदिन आगे बढ़ रही है। एक पाठशाला से शुरू हुआ सफर 98 पाठशालाओं तक पहुंच गया है। इनमें 350 से अधिक शिक्षक 5 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। यह रास्ता लंबा, संघर्षपूर्ण और चुनौतियों से भरा है, पर हमने एक नयी लकीर खींचने की ठानी है। हम हर हाल में कार्तिक बाबा के शिक्षित और समृद्ध झारखंड के सपने को पूरा करेंगे, यह हमारा अटल विश्वास है।
कौन हैं डॉ अरूण उरांव
डॉ अरूण उरांव 1992 बैच के पंजाब कैडर के आइपीएस ऑफिसर हैं। उन्होंने रांची यूनिवर्सिटी से बीएसएसी करने के बाद एमबीबीएस किया। यूके की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इन्होंने पुलिस एक्जीक्यूटिव प्रोग्राम पूरा किया है। 1988 से 1992 तक ये चार पूर्व प्रधानमंत्रियों की इमरजेंसी मेडिकल टीम में मेडिकल ऑफिसर रहे। 1992 से 2014 तक इन्होंने मध्य पंजाब और झारखंड के उग्रवाद तथा नक्सल प्रभावित जिलों में एसपी, डीआइजी और आइजी के पद पर सेवाएं दी। इन्होंने रेस्ट ऑफ बिहार, दिल्ली और पंजाब सिविल सर्विसेज क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया है। अखिल भारतीय चैंपियन पंजाब पुलिस लॉन टेनिस टीम का भी इन्होंने प्रतिनिधित्व किया है। 2017 से 2019 तक एआइसीसी सचिव की हैसियत से छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहे। 2019 से फरवरी 2021 तक भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे। नवंबर 2021 से कोल इंडिया लिमिटेड में स्वतंत्र निदेशक हैं।
पिता भी रह चुके हैं आइपीएस
आइपीएस ऑफिसर रहे डॉ अरूण उरांव के पिता बंदी उरांव भी आइपीएस थे। बंदी उरांव चार बार विधायक और एक बार मंत्री रह चुके हैं। वहीं, अरूण उरांव के ससुर कार्तिक उरांव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल और सास सुमती उरांव पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में मंत्री थे।