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Google- Doodle : गामा पहलवान पर Doodle बनाकर Google ने किया याद, 6 देशी चिकन और 3 टोकरा फल खा जाते थे

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डेस्क: 
गूगल स्वतंत्रता पूर्व देश के अपराजित पहलवान द ग्रेट गामा पहलवान की 144वीं जयंती मना रहा है। इस मौके पर गूगल ने गामा पहलवान का डूडल बनाया है। बता दें कि गामा पहलवान को उनके रिंग नाम द ग्रेट गामा के अलावा रुस्तम-ए-हिंद के नाम से भी जाना जाता था। गूगल ने कहा कि ब्रूस ली भी गामा पहलवान के लोकप्रिय प्रशंसकों में से एक थे और गामा की कंडीशनिंग के पहलुओं को अपने प्रशिक्षण दिनचर्या में शामिल करते थे। गामा पहलवान के बारे में मशहूर है कि वो अपने करियर में एक भी मुकाबला नहीं हारे। 

पंजाब के अमृतसर में हुआ था गामा का जन्म
द ग्रेट गामा पहलवान का जन्म अमृतसर के जब्बोवाल नामक गांव में हुआ था। वे विश्वप्रसिद्घ पहलवानों के परिवार में जन्मे थे। हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है। इनके बचपन का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था। इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। इन्होंने पत्थर के डंबल से अपनी बॉडी बनाई थी। उन्होंने पहलवानी की प्रारंभिक शिक्षा अपने मामा इड़ा पहलवान से ली थी। आगे चलकर इनके अभ्यास में काफी बदलाव आए। 

6 देशी चिकन और फलों का 3 टोकरा डायट था
यूं तो बाकी पहलवानों कि तरह उनका अभ्यास भी सामान्य ही था,परंतु इस सामान्यता में भी असामान्यता यह थी कि वे प्रत्येक मैच एक से नहीं बल्कि चालिस प्रतिद्वंदियों के साथ एकसाथ लड़ते थे और उन्हें पराजित भी करते थे । गामा रोज़ तीस से पैंतालीस मिनट में, 100 किलो कि हस्ली पहन कर पांच हजार बैठक लगाते थेऔर उसी हस्ली को पहन कर उतने ही समय में तीन हजार दंड लगाते थे । वे रोज़ डेढ़ पौंड बादाम मिश्रण (बादाम पेस्ट), 10 लीटर दूध,मौसमी फलों के 3 टोकरे,आधा लीटर घी, 2 देसी मटन, 6 देशी चिकन, 6 पौंड मक्खन और फलों का रस खाते थे। इतना ही नहीं अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ अपनी रोज़ की खुराक में शामिल करते थे।

महज 10 साल की उम्र में दिखा दी थी ताकत
गामा ने अपने पहलवानी करियर के शुरुआत महज़ 10 वर्ष की आयु से की थी। सन 1888 में जब जोधपुर में भारतवर्ष के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवानों को बुलाया जा रहा था, तब उनमें से एक नाम गामा पहलवान का भी था। यह प्रतियोगिता अत्याधिक थकाने वाले व्यायाम की थी । लगभग 450 पहलवानों के बीच 10 वर्ष के गामा पहलवान प्रथम 15 में आए थे । इस पर जोधपुर के महाराज ने उस प्रतियोगिता का विजयी गामा पहलवान को ही घोषित किया। जब तक वह 15 साल का नहीं हुआ, तब तक उसने कुश्ती नहीं सीखी। Google के अनुसार, 1910 तक, लोग गामा की राष्ट्रीय नायक और विश्व चैंपियन के रूप में प्रशंसा करते हुए सुर्खियों में भारतीय समाचार पत्र पढ़ रहे थे। 

अमेरिका के जैविस्को को भी दी थी पटखनी
उस समय दुनिया में कुश्ती के मामले में अमेरिका के जैविस्को का बहुत नाम था। गामा ने इसे भी परास्त कर दिया था। पूरी दुनिया में गामा को कोई नहीं हरा सका, और उन्हें वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब मिला। 1947 में भारत के विभाजन के दौरान कई हिंदुओं के जीवन को बचाने के लिए गामा पहलवान को नायक भी माना जाता है। उन्होंने अपने शेष दिन लाहौर में 1960 में अपनी मृत्यु तक बिताए, जो पाकिस्तान के इस्लामी गणराज्य का हिस्सा बन गया।

"टाइगर" की उपाधि से हुए थे सम्मानित

अपने शानदार करियर के दौरान, उन्होंने कई खिताब जीते, विशेष रूप से विश्व हैवीवेट चैम्पियनशिप (1910) का भारतीय संस्करण और विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप (1927), जहां उन्हें टूर्नामेंट के बाद "टाइगर" की उपाधि से सम्मानित किया गया।