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रांची : हेमंत सरकार की मंशा ही नहीं कि स्थानीय नीति और OBC आरक्षण लागू हो, कुड़मी को मिले ST का दर्जाः सुदेश महतो

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रांचीः 
खतियान आधारित स्थानीय नीति तथा ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कराना आजसू पार्टी के लिए हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है। पार्टी इन दोनों के आधार पर पर अपनी राजनीति शुरू से करती आई है। आजसू सुप्रीमो ने साफ तौर पर कहा था कि यदि सरकार ओबीसी आरक्षण और स्थानीयता को परिभाषित करने के मुद्दे पर विधान सभा का विशेष सत्र बुलाती है तो आजसू उसका पूरा समर्थन करेगी। शुक्रवार को आजसू के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने इस मुद्दे पर प्रभात खबर से बातचीत की। ‘प्रभात खबर संवाद’ कार्यक्रम में उन्होंने राज्य में चल रहे ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय रखी। बातचीत में सुदेश महतो ने कहा कि यह सरकार अगर स्थानीयता व ओबीसी आरक्षण के हल के लिए आगे बढ़ती, तो मैं धन्यवाद कहता लेकिन सरकार इसे और उलझा रही है। सरकार ईमानदारी नहीं दिखा रही। इसलिए इतने दिनों तक इसका हल नहीं हुआ। सरकार सिर्फ इसपर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रही है। झामुमो ना तो इन दो अहम मुद्दों को लेकर ईमानदार थी और ना ही अलग राज्य को लेकर। 


बाहरी लोगों की होगी एंट्री 
सुदेश महतो ने कहा इस विधेयक को नौवीं अनुसूची में डालने की जरूरत ही नहीं थी। इसमें कई कमियां है जिनपर राय मशवरा करने से पहले ही हड़बड़ी में इसे विशेष सत्र में पारित कर दिया गया। भूमिहीनों को ग्राम सभा से स्थानीयता लेने का अधिकार मिल गया, ऐसे में तो बाहरी लोग भी आकर कहेंगे कि वो स्थानीय है। यह विधेयक में एक बड़ी त्रुटि है। एक तरफ सरकार ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कह रही है तो वहीं दूसरी तरफ पंचायत चुनाव में ओबीसी के 9400 पदों को अनारक्षित कर दिया। उसी तरह निकाय चुनाव में हजारों पद अनारक्षित रह जायेंगे। कोर्ट का आदेश था कि चुनाव से पहले सर्वे होना चाहिए लेकिन सरकार ने सर्वे नहीं कराया और सीधे चुनाव कराने का निर्णय ले लिया। यह ओबीसी के साथ हकमारी है। पांच साल तक ओबीसी अब पंचायतों व निकायों में नेतृत्व नहीं कर पाएंगे। 


सरकार पर बना रही दबाव 
बता दें कि स्थानीयता और 27 प्रतिशत आरक्षण वाला मुद्दा विधानसभा से पारित होने के बाद आजसू पार्टी को नए मुद्दे की तलाश है। अब यह पार्टी जातीय जनगणना और निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण का बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है। इन दोनों विषयों पर राज्य सरकार ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। इसका लाभ उठाते हुए आजसू इन दोनों मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के प्रयास में है। इसलिए सुदेश महतो ने कहा है कि जातीय जनगणना होनी चाहिए। आपको जातीय जनगणना कराना चाहिए। कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी यह जनगणना हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही आदेश दिया है। अगर किसी को आरक्षण या अन्य लाभ देना चाहते हैं, तो पहले जातीय जनगणना कराना होगा। कुड़मी को एसटी का दर्जा दिये जाने पर उन्होंने कहा है यह तो कुड़मी का हक है। उन्हें यह दर्जा आजादी के पहले ही मिला हुआ है। कुड़मी 1913 के गजट में आदिम जनजाति की सूची में शामिल थे। इसमें कुरमी और कुड़मी शामिल थे. 1931 में भी यह भारत सरकार के गजट में थे। 1951 में यह गजट से गायब हो गये। इसके पीछे कोई तर्क नहीं था। यह कुड़मियों की जायज लड़ाई है