द फॉलोअप टीम, डेस्क :
कटरीना, लीजा, लैरी, हिकाका, बुलबुल, पैलिन, हुदहुद, फैनी, निसर्ग, निवार ये किन्हीं बालाओं का नाम नहीं है, बल्कि इसे है हम तबाही का दूसरा नाम कह सकते हैं। जी हां ये नाम है देश और दुनिया को अपनी तबाही कि चपेट में लेने वाले कई चक्रवाती तूफ़ानों का। भारत में हाल में आए तूफान तौऊते ने जमकर बर्बादी मचाई थी। अब नए तूफ़ान यास ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इस सब के बीच सोचने वाली बात तो यह है कि इन चक्रवाती तूफ़ानों का नाम आखिर रखता कौन है? तूफ़ानों का नामकरण होता क्यों है? आपको बता दें कि इन सब सवालों के जवाब आज हम आपको देंगे और बताएंगे इन चक्रवाती तूफ़ानों के नामकरण का राज।
चक्रवातों के नामकरण की शुरुआत
अटलांटिक क्षेत्र में चक्रवातों के नामकरण की शुरुआत वर्ष 1953 की एक संधि से हुई। जबकि हिंद हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर इन तूफानों के नामकरण की व्यवस्था वर्ष 2004 में शुरू की। इन आठ देशों में भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका शामिल हैं। साल 2018 में ईरान, कतर, सउदी अरब, यूएई और यमन को भी जोड़ा गया। यदि किसी तूफान के आने की आशंका बनती है तो ये 13 देशों को क्रमानुसार 13 नाम देने होते हैं।
आखिर क्यों रखा जाता है तूफ़ानों का नाम?
इन चक्रवती तूफ़ानों का नामकरण इसलिए किया जाता है ताकि लोगों को इसके बारे में आसानी से चेतावनी दी जा सके। इसके साथ ही इन तूफ़ानों से होने वाले खतरे के बारे में भी लोगों को जल्द से जल्द सतर्क किया जा सके। लोग अगर तूफान से वाकिफ होंगे तो सरकार के साथ तालमेल बनाकर बेहतर प्रबंधन और तैयारियां कर सकेंगे। साथ ही लोग इन तूफानों के नाम याद रख सकें इसलिए तूफानों का नाम छोटा रखा जाता है।
ऐसे चलती है नामकरण की प्रक्रिया
नामकरण करने वाली समिति में शामिल देश जिन नामों की सूची देते हैं, उनको समिति में शामिल देशों के अल्फाबेट के हिसाब से नामों को सूचीबद्ध किया जाता है। जैसे अल्फाबेट के हिसाब से सबसे पहले बांग्लादेश, फिर भारत का और इसी तरह ईरान व अन्य देशों का नाम आएगा, जिनके सुझाए गए नाम पर चक्रवात का नामकरण किया जाता है। चक्रवातों का नामकरण करने का हर बार अलग देश का नंबर आता है। यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा।
जानिए कौन करता है नामकरण
जानकारी के मुताबिक 1953 से मायामी नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मीटरियोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता रहा है। उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा गया था। ऐसे में, भारत की पहल पर 2004 में हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने तूफानों के नामकरण की व्यवस्था शुरू की गई। वहीं, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका इनमें शामिल हैं। भारत ने अब तक 32 तूफानों में से चार को नाम दिया है - लहर, मेघ, सागर और वायु। वहीं, पाकिस्तान की तरफ से फानूस और नर्गिस तूफानों के नाम रखे गए।
क्या है नाम रखने कि प्रक्रिया?
बता दें कि इन चक्रवाती तूफ़ानों के नाम एक समझौते के तहत रखे जाते हैं। अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया गया है जैसे सबसे पहले बांग्लादेश फिर भारत मालदीव और म्यांमार का नाम आता है। सभी देश पहले चक्रवातों के नाम WMO को भेज देता हैं। इसके साथ ही तूफान की गति उसके प्रभाव को देखते हुए देशों द्वारा दिए गए नामों में से एक नाम उस तूफान का रख दिया जाता है।
'यास' का नाम क्यों और किसने रखा?
बंगाल कि खाड़ी में आए तूफान 'यास' का नाम ओमान देश ने रखा है। बता दें कि मौसम विज्ञानी 'यास' को भी बेहद खतरनाक तूफान मान रहे हैं। इस चक्रवाती तूफान का असर अंडमान निकोबार द्वीप समूह, ओडिशा और पश्चिम बंगाल पर होगा। 'यास' तूफान का नामकरण इस बार ओमान देश ने किया है। इसके साथ ही आपको बता दें कि दुनिया में आने वाले तूफानों के नामकरण की परंपरा चलती आ रही है। 'यास' का मतलब होता है निराशा। मौसम विभाग 'यास' तूफान की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। उन्होंने निम्न दबाव प्रणाली तेज होने के संकेत भी दिए। तौकाते नाम म्यांमार से आया है। इसका मतलब होता है अधिक शोर करने वाली छिपकली।