द फॉलोअप टीम, रांची :
रांची नगर निगम सहित प्रदेश के नगर निकायों में महापौर और नगर आयुक्त तथा अध्यक्ष और कार्यपालक पदाधिकारियों के बीच उठ रहे विवादों को देखते हुए राज्य सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग नें निकायों में जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों के कार्य क्षेत्रों तथा अधिकार पर महाधिवक्ता से मंतव्य मांगा। महाधिवक्ता की ओर दिए गए मंतव्य से विभाग ने पत्र लिखकर सभी निकायों को अवगत करा दिया है।
महाधिवक्ता ने क्या-क्या बताया
-नगरपालिका अधिनियम के मुताबिक नगर निकायों में आयोजित होनेवाली पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल और केवल नगर आयुक्त/कार्यपालक पदाधिकारी/विशेष पदाधिकारी को है।
-नगरपालिका अधिनियम के अनुसार पार्षदों के साथ बुलायी गयी किसी भी बैठक के लिए एजेंडा तैयार करनें का अधिकार भी नगर आयुक्त/कार्यपालक पदाधिकारी को ही है।
-बैठक के एजेंडा और कार्यवाही में महापौर और अध्यक्ष की कोई भूमिका नही है।
-किसी भी आपातकालिन कार्य को छोड़ किसी भी परीस्थिति में महापौर व अध्यक्ष को अधिकार नही है कि वो एजेंडा में कोई बदलाव लाएं।
-बैठक के बाद अध्यक्ष और महापौर को स्वतंत्र निर्णय का कोई अधिकार नही है। बैठक की कार्यवाही बहुमत के आधार पर तय होगी।
महापौर और अध्यक्ष को ये अधिकार
-महापौर और अध्यक्ष को ये अधिकार नही है कि वो किसी भी अधिकारी एवं कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस जारी करें।
-महापौर और अध्यक्ष को यह अधिकार नही है कि वो किसी भी विभाग या कोषांग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करें।
-किसी भी बैठक में अगर महापर उपस्थित नही हैं तो उप महापौर कार्यवाही पर हस्ताक्षर करेंगे। अगर दोनों अनुपस्थित हैं तो पार्षदों द्वारा चयनित प्रोजाइडिंग ऑफिसर हस्ताक्षर करेंगे।
-अगर बैठक में महापौर मौजूद हैं और पार्षदों की सहमति से जो निर्णय हुआ है उसपर आधारित कार्यवाही पर महापौर हस्ताक्षर नही करते तो नगर आयुक्त और कार्यपालक पदधिकारी को अधिकार है कि वो राज्य सरकार को अनुशासनात्मक कार्रवायी के लिए लिखें। अगर ऐसा होता है तो राज्य सरकार को अधिकार है कि वो महापौर को पदमुक्त कर दे।