द फॉलोअप टीम, रांची:
भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ (आइएयूए) ने कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के उच्च शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों का नामांकन दर बढ़ाने के उद्देश्य से यूजी और पीजी पाठ्यक्रमों की सीटें प्रतिवर्ष 10% बढ़ाने की अनुशंसा की है। वर्तमान में देश के सरकारी विश्वविद्यालयों का लगभग 9% कृषि विश्वविद्यालय हैं किंतु उनमें नामांकन के लिए सीटें देश के कुल विश्वविद्यालयों का केवल एक प्रतिशत ही हैं जो एक चिंता का विषय है। संघ ने निजी क्षेत्र के उद्योगों के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए बाजार आधारित पाठ्यक्रम तैयार करने की भी अनुशंसा की है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के उद्देश्य से स्ववित्तपोषित योजना के तहत ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास से संबंधित प्रमाणपत्र और डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे। कृषि पत्रकारिता एवं जनसंचार कारपोरेट कम्युनिकेशन, धर्म एवं संस्कृति, विदेशी भाषाओं, पर्यावरण संरक्षण, योग, शारीरिक शिक्षा, नृत्य, संगीत, सॉफ्ट स्किल विकास आदि विषयों में भी वैकल्पिक पाठ्यक्रम प्रारंभ किए जा सकते हैं।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में आज संपन्न आइएयूए के दो दिवसीय 45वें अधिवेशन में लगभग 40 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भाग लिया, जिनमें 5-6 कुलपति ऑनलाइन जुड़े थे। अधिवेशन में अनुशंसा की गयी कि देश की कृषि योग्य भूमि के 10% क्षेत्र में जैविक या प्राकृतिक खेती की जानी चाहिए ताकि रासायनिक खेती से मानव, भूमि और पर्यावरण को हो रहे नुकसान को कम किया जा सके। आरंभिक चरण में इससे उत्पादन सर्वोत्तम तो नहीं होगा लेकिन समुचित हो सकता है। जैविक खेती में कीट एवं रोग प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा। कृषि क्षेत्र में इनोवेशन, प्रसंस्करण और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए कृषि स्नातकों में उद्यमिता और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालय में इनक्यूबेशन सेंटर की स्थापना और सुदृढ़ीकरण की भी वकालत की गई।
आइएयूए के महासचिव तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के कुलपति, जिन्होंने समापन सत्र की अध्यक्षता की, ने कहा की कृषि विश्वविद्यालय पूरी तरह से आवासीय होते हैं इसलिए नई शिक्षा नीति में प्रस्तावित नामांकन हेतु सीटों की वृद्धि को साकार करने के लिए नये छात्रावासों के निर्माण के लिए विश्वविद्यालयों को यथाशीघ्र पर्याप्त अनुदान प्रदान करना चाहिए। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय समाज का आईना होते हैं जिनमें राज्य की जनता अपनी अपेक्षाएं देखती है। कृषि चूंकि राज्य का विषय है इसलिए नामांकन नीति या पाठ्यक्रमों में बड़े बदलाव के पूर्व राज्य सरकार की सहमति भी अपेक्षित होगी। डॉ प्रभाकर महापात्र, डॉ एमएस मलिक, डॉ सुशील प्रसाद और डॉ एनके गुप्ता ने 4 तकनीकी सत्रों की अनुशंसाएं प्रस्तुत की जिसपर उपस्थित कुलपतियों ने अपने विचार दिए। आयोजन के संयोजक डॉ ए वदूद ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तथा डॉक्टर दिनेश कुमार ने आइएयूए की ओर से धन्यवाद ज्ञापन किया।
'प्रौद्योगिकी, बाजार, साख और प्रसार सेवाओं तक किसानों की पहुंच बढ़ाने' विषयक तकनीकी सत्र की अध्यक्षता नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डॉ जेपी पटेल ने की। पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ, अकोला, महाराष्ट्र के कुलपति डॉ वीएम भाले ने 'कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में उद्यमिता विकास हेतु अनुकूल इकोसिस्टम निर्माण' विषयक तकनीकी सत्र की अध्यक्षता की। आज के सत्रों में विचार-विमर्श में भाग लेने वालों में असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहट के कुलपति डॉ बीसी डेका, बिधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल के कुलपति डॉ बीएस महापात्र, बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के कुलपति डॉ एनपी सिंह, शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के कुलपति डॉ जेपी शर्मा, महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय, करनाल, हरियाणा के कुलपति डॉ समर सिंह, जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डॉ एनके गोंटिया, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डॉ हुलास पाठक, आनंद कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डॉ बीके कथीरा, डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश के कुलपति डॉ परविंदर कौशल तथा बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर के कुलपति डॉ अरुण कुमार शामिल थे।