द फॉलोअप टीम, दिल्ली:
मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को सदन में हंगामा हुआ था। सत्ता और विपक्ष के सदस्यों के बीच जमकर बहस औार धक्का-मुक्की हुई थी। मामला राज्यसभा का था। अधिक आरोप विपक्षी सांसदों पर लगे थे। हालांकि उनका दावा है कि उन पर उन मार्शलों ने हमला किया। खैर इसके लिए जांच कमेटी बनी थी। जिसकी रिपोर्ट के आधार पर 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है। इनका निलंबन मौजूदा शीतकालीन सत्र (Winter Session की शेष अवधि के लिए प्रभावी रहेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक पुरुष मार्शल को सीपीएम सांसद एलमारन करीम ने जबकि राज्यसभा की एक महिला मार्शल पर छाया वर्मा और कांग्रेस सांसद फूलो देवी नेताम ने हमला किया था। इसलिए अनुशासनहीनता फैलाने के आरोप में कार्रवाई की गई है। रोचक यह है कि मानसून सत्र के अंतिम दिन विवाद हुआ था और शाीतकालीन सत्र के पहले दिन कार्रवाई की गई है।
इनका हुआ है निलंबन
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी (Priyanka Chaturvedi), अनिल देसाई, तृणमूल सांसद डोला सेन (Dola Sen), शांता छेत्री, एलमारन करीम (सीपीएम), कांग्रेस की फूलो देवी नेताम, छाया वर्मा, आर बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रसाद सिंह, CPI के बिनॉय विश्वम को निलंबित किया गया है।
क्या है नोटिस में
निलंबन नोटिस में कहा गया है कि सांसदों ने 11 अगस्त को मानसून सत्र के आखिरी दिन अपने हिंसक व्यवहार से और सुरक्षाकर्मियों पर जानबूझकर हमला किया। इससे सदन की गरिमा को ठेस पहुंची है। बिहार के पूर्व डीप्टी सीएम और सत्ता पक्ष के सुशील मोदी का कहना है पिछले सत्र के अंतिम दिन जिस तरह से विपक्षों ने हंगामा किया, मैंने अपने संसदीय जीवन में इस प्रकार की अराजकता नहीं देखी। जो नियम कानून का पालन नहीं करते, उनको ऐसा संदेश देना चाहिए।
क्या कहते हैं निलंबित सांसद
निलंबित सांसदों का कहना है कि निलंबन नियम विरुद्ध है। नियम 256 के मुताबिक, सदस्य को सत्र के बाकी बचे समय के लिए निलंबित किया जाता है. जबकि मॉनसून सत्र 11 अगस्त को ही समाप्त हो चुका है। इस सत्र में सदस्यों का निलंबन किया जाना पूरी तरह से अनुचित है। शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, ‘अगर आप सीसीटीवी फुटेज देखें तो यह रिकॉर्डेड है कि कैसे पुरुष मार्शलों ने महिला सांसदों के साथ धक्का-मुक्की की थी। एक तरफ ये सब और दूसरी तरफ आपका फैसला? यह कैसा असंसदीय व्यवहार है? डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, वहां भी आरोपी की बात को सुना जाता है। उनके लिए वकील भी उपलब्ध कराए जाते हैं। कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को उनका पक्ष लेने के लिए भेजा जाता है। मगर यहां हमारा पक्ष नहीं लिया गया।’