logo

परम्परागत भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए संग्रहालय की स्थापना-राज्‍यपाल

13325news.jpg

द फॉलोअप टीम, रांची:

प्राकृतिक एवं विभिन्न खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड में विभिन्न प्रकार के जनजाति प्राचीन काल से निवास करते आ रहे हैं। उनकी कला, संस्कृति, लोक साहित्य, परम्परा एवं रीति-रिवाज  अत्यन्त समृद्ध है और इसकी विश्व स्तर पर पहचान है। जनजातीय गीत एवं नृत्य बहुत मनमोहक है। जनजातीय समुदाय प्रकृति प्रेमी होते हैं। इसकी झलक उनके पर्व-त्यौहारों में भी दिखती है। विभिन्न अवसरों पर देखा जाता है कि इनके गायन और नृत्य इनके समुदाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि औरों को भी उस पर झूमने के लिए मजबूर कर देती है।  आदिवासी भाषा, साहित्य व संस्कृति का व्यवस्थित अध्ययन के साथ-साथ इनसे जुड़े तमाम उपकरणों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। प्रसन्नता है कि इसी कडी़ में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा यहाँ की परम्परागत भाषा एवं संस्कृति को संरक्षित एवं इसे बढा़वा देने के लिए एक संग्रहालय की स्थापना की गई है। उक्‍त बातें राज्‍यपाल रमेश बैस ने कोल्हान विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संग्रहालय का विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उद्घाटन करने के अवसर पर कहीं।

राज्‍यपाल ने कहा, रांची विश्वविद्यालय से वर्ष 2009 में विभाजित होकर झारखंड राज्य में एक नये विश्वविद्यालय के रूप में सृजित कोल्हान विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संग्रहालय के उद्घाटन समारोह के अवसर पर आप सभी के बीच विडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से जुड़कर मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। कोल्हान क्षेत्र में निवास करने वाले जनजाति समाज के साथ-साथ अन्य समुदाय के लोग आरंभ से ही प्रकृति प्रेमी रहे हैं। प्रकृति ईश्वर की सबसे अनुपम देन है। इसके साथ चलने से और इसे बचाये रखने से ही हम मनुष्य भी बचे रह सकते हैं। आदिवासी समाज की चेतना में प्रकृति के साथ घनिष्टता की भावना एक विराट जीवन दृष्टि की प्रतीक है। जानकर प्रसन्नता हो रही है कि इस क्षेत्र की भाषा एवं संस्कृति की महत्व को देखते हुए वर्ष 2011 में विश्वविद्यालय द्वारा जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग नाम से एक अलग स्वतंत्र विभाग की स्थापना की गई है जिसके अर्न्तगत वर्त्तमान स्नातकोत्तर स्तर में तीन भाषाएँ हो, संथाली एवं कुड़माली की पढ़ाई होती है तथा स्नातक स्तर में विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों में हो, संथाली एवं कुड़माली के अलावे कुड़ुख एवं मुंडारी की भी पढ़ाई होती है।

 

राज्‍यपाल ने कहा,  मुझे अवगत कराया गया कि संग्रहालय में प्रयुक्त सभी समानों का नाम अपनी-अपनी भाषा हो, संथाली एवं कुड़माली में लिखी गई है। इसकी स्थापना में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मैं उन सभी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को बधाई व शुभकामनाएँ देता हूँ। हमारे समाज के लोगों में भिन्न-भिन्न प्रकार की कला निहित है, वे विभिन्न कलाकृतियों में निपुण हैं। चाहे वह बाँस या मिट्टी से  बनी सामग्री हो या हस्तकरघा, वे हर क्षेत्र में दक्ष हैं। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उनकी विशिष्ट कलाकृति को देखते हुए “वोकल फॉर लोकल” का आह्वान किया है। मैं आप सभी से आह्वान करता हूँ कि आपलोग इस मुहिम में जुटे तथा समाज एवं राष्ट्र के सशक्तिकरण में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करें।