सुभाष चन्द्र कुशवाहा, लखनऊ:
मॉस्को से 220 किलोमीटर दूर, रूस का 1000 साल पुराना शहर व्लादीमिर। यहां का मुख्य चर्च, यूनेस्को द्वारा संरक्षित है। यहां तक की यात्रा 3 घंटे 30 मिनट में पूरी हुई। यहां पेट्रोल 50.19 रुपये प्रति लीटर है इसलिए टैक्सी उतनी महंगी नहीं।
यहां के चर्च और कुछ पुराने हैण्डपम्प के चित्र। यह कभी रूस की राजधानी भी रहा है । चर्च की दीवारों पर पुरानी रूसी भाषा देखी जा सकती।
Vladimir is a Russian city east of Moscow. It's part of the Golden Ring, a cluster of ancient towns. In the city center, the Assumption Cathedral houses a richly decorated altar and 15th-century frescoes. The white stone walls of St. Demetrius Cathedral are carved with animals and biblical figures.
Founded: 990 AD
Area: 124.6 km²
Age: About 1,031 years
किसी देश को समझने के लिए, उसके ग्रामीण समाज को समझना चाहिए। आज Suzadal देखने गया जो मूल रूसी तौर तरीके की झलक दिखाता है।
यहां के संग्रहालय में रूसी गाँवों के औजार, हल, ढेंकी, जाँत, बर्तन, करघे, अनाज, कुम्हारी, बढ़ईगिरी, जूते, पवन मोटर, घोड़ागाड़ी के पहिये आदि, तरह-तरह की चीजें देखा। घर पूरी तरह से लकड़ी के होते थे।
रूस के सुज़दाल शहर को रूस की परम्परागत संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। पूरा कस्बा यूनेस्को द्वारा संरक्षित है। जनता धार्मिक प्रवृत्ति की है। चर्चों की भरमार है।
Suzadal में एक खूबसूरत चर्च
ऐसे में इस शहर में KFC की दुकान का खुलना, मेरे गाइड को खल रहा था। वह बारबार कह रहा था-How a multinational compny allowed here? There must be some bribe for this.
Suzadal में लेनिन की मूर्ति के पास।
गाइड की बात से यह तो स्पष्ट हुआ कि विकसित रूस में ही अब घूसखोरी सुनाई देती है। जनता में अंधविश्वास कम नहीं है यद्यपि 40 प्रतिशत जनता नास्तिक है मगर आस्तिकों की संख्या 60 प्रतिशत है।
यहां जमीन के ज्यादातर हिस्से में वन हैं। जानवरों के शिकार के लिए लाइसेंस जारी होते हैं। हाथियों की उपस्थिति केवल सर्कसों में है। बर्फ पड़ने के कारण खेती की एक फसल ही सम्भव है। घरों के निर्माण में उच्च तकनीक का उपयोग होता है। अंदर से सारे घर गर्म होते हैं। गांवों में लकड़ी के घर हैं। पूरी की पूरी लकड़ी का तना दीवार के रूप में एक के ऊपर एक रखा जाता है। दो तनों के बीच, ऊन का एक कपड़ा बिछाकर जोड़ा गया होता है।
इतिहास के प्रति जनता में बेहद लगाव है। यहां दाएं चलने का नियम है न कि भारत के तरह बाएं चलने का। पैदल यात्रियों को बेहद सम्मान है। जिन जेब्रा क्रासिंग पर लाल, नीली बत्तियां नहीं हैं, वहाँ पैदल यात्री जब चाहे, पार कर सकते हैं, वाहन स्वतः रुक जाएंगे। कहीं खुली नालियां नहीं हैं और न कहीं सड़कों पर पानी जमा होता है। घरों के दरवाजे बाहर की ओर खुलते हैं। ऐसा इसलिए कि बर्फ अंदर न आने पाए। बड़े संस्थानों या संग्रहालयों में एक के बाद एक, लकड़ी के तीन दरवाजे पार करने पड़ते हैं। यह भी बर्फ को अंदर जाने से रोकने का उपक्रम है। नदियां स्वच्छ हैं।
सुजदाल में एक चर्च का सम्पूर्ण कार्यभार, औरतों के हाथ में है। वे हैं पादरी हैं और व्यस्थापक भी।
वल्दमीर के पास खेतों में मक्के की फसल
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(यूपी सरकार की उच्च सेवा से रिटायर्ड अफसर सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक ,इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी हैं। आशा, कैद में है जिन्दगी, गांव हुए बेगाने अब (काव्य संग्रह), हाकिम सराय का आखिरी आदमी, बूचड़खाना, होशियारी खटक रही है, लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) और चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन (इतिहास) समेत कई पुस्तकें प्रकाशित। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन। संप्रति लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन। अभी वह रूस की यात्रा पर हैं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।