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धर्मकोड का प्रस्ताव कैबिनेट से पास, 11 नवंबर को सदन के विशेष सत्र में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जाएगा

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द फॉलोअप टीम, रांची: 
आदिवासी/सरना धर्मकोड के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री हेमंत ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक में अपनी स्वीकृति दे दी। आदिवासियों के हित में तैयार किया गया यह प्रस्ताव आदिवासी/सरना धर्मावलंबियों के लिए अलग सरना कोड का प्रावधान करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाना है। राज्य सरकार अब 11 नवंबर को विधानसभा के विशेष सत्र का आयोजन कर सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजेगी। इसके तहत जनगणना में झारखंड के लिए कॉलम बनाने की मांग होगी। गृह विभाग द्वारा तैयार किये गये इस प्रस्ताव को कैबिनेट की बैठक में रखा गया था। 

आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार प्राप्त होगा 
यदि सरना कोड मिल जायेगा, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। सरना धर्मावलंबी आदिवासियों की गिनती स्पष्ट रूप से जनगणना के माध्यम से हो सकेगी। आदिवासियों की जनसंख्या का स्पष्ट आकलन हो सकेगा। आदिवासियों को मिलनेवाले संवैधानिक अधिकारों का लाभ प्राप्त हो सकेगा। इसमें केंद्रीय सहायता के लाभ तथा जमीन के पारंपरिक अधिकार भी शामिल हैं। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास का संरक्षण तथा संवर्द्धन होगा। 


क्यों जरूरी है अलग धर्मकोडप्रस्ताव में कहा गया है कि 1871 से 1951 तक हुई जनगणना में आदिवासियों का अलग धर्म कोड था। 1961-62 की जनगणना में इसे हटा दिया गया। वर्ष 2011 की जनगणना में देश के 21 राज्यों में रहनेवाले 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म लिखा। झारखंड में सरना धर्म को माननेवाले लोग वर्षों से धर्म कोड लागू करने के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं। वर्तमान और पूर्व के कई विधायकों ने भी आवेदन देकर इसे लागू कराने का अनुरोध किया है।

क्या है सरना आदिवासी?सरना धर्म कोड को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने बताया कि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मांग होती रही है। झारखंड में शुरु से सरना धर्म कोड की मांग होती रही है। लेकिन कुछ जनजातियां हैं वो कह रहे हैं सरना नहीं बल्कि पूरे देश के लिए आदिवासी धर्म कोड मिलना चाहिए। हमें सबको लेकर चलना है। ये कोड पूरे देश के लिए बनना है, इसलिए राज्य सरकार सरना/ आदिवासी धर्म कोड की मांग के लिए अनुशंसा करने जा रही है। आदिवासी मामलों के जानकार प्रो करमा उरांव ने कहा सरना धर्मालंबियों की मांग थी। इसका सम्मान राज्य सरकार ने किया है। सदियों पुरानी मांग का पूरा होना आदिवासियों की जीवन शैली और उनके आध्यात्मिक स्वरुप को परिभाषित करने का अवसर मिल रहा है। 

आदिवासी संगठनों की अलग-अलग राय
राष्ट्रीय आदिवासी समाज, सरना धर्म रक्षा अभियान के प्रतिनिधिमंडल ने संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम से मुलाकात की। उन्होंने सरकार की ओर से जारी संकल्प से आदिवासी/सरना धर्म कोड में से आदिवासी शब्द को हटाकर सरना धर्म कोड सदन में प्रारित कराने की मांग रखी। राष्ट्रीय आदिवासी समाज सरना धर्म रक्षा अभियान सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा और डॉ करमा उरांव ने मंत्री को बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार आदिवासियों को शेड्यूल ट्राइब का दर्जा प्राप्त है। आदिवासी समाज के अंतर्गत पूरे देश में 781 जनजाति समुदाय हैं, जिसमें से कुछ लोगों ने ईसाई, बौद्ध, हिंदू और मुस्लिम इत्यादि धर्म को अंगीकृत कर लिया है। वहीं, आज भी आदिवासी बहुसंख्यक समाज अपने मूल धर्म सरना धर्म में कायम है, जो कि धर्म कोड नहीं मिलने के बावजूद 2011 की जनगणना प्रपत्र के अन्य के कॉलम में अपना धर्म सरना दर्ज किया है।