द फॉलोअप टीम, डेस्क:
बीते 15 अगस्त को भारत में 2 चीजों की सबसे ज्यादा चर्चा थी। पहली चर्चा तो इस बात की थी कि हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे थे। दूसरी चर्चा तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की राजधानी तालिबान पर कब्जे की थी। पूरे दिन सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक इसी बात की चर्चा थी। इन दो हॉट टॉपिक की आड़ में एक बड़ी घटना नजरों से ओझल सी थी। 15 अगस्त को जब पूरा हिंदुस्तान आजादी का जश्न मना रहा था उसी समय पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजधानी शिलांग जल रहा था।
राजधानी शिलांग में आगजनी और पथराव
सैकड़ों की भीड़ पथराव कर रही थी। दुकानों और मकानों को आग के हवाले कर दिया गया था। भीड़ को कंट्रोल करने सड़क पर उतरी पुलिस पर भी हिंसक हमला हुआ। पुलिस वाहनों में तोड़फोड़ कर आग लगा दी गई। पुलिसकर्मियों का हथियार लूट लिया गया। ये सब हैवनीट्रैप यूथ काउंसिल नाम के संगठन की अगुवाई में हो रहा था। पथराव करने वाली भीड़ में ज्यादातर लोग खासी जनजातीय समुदाय से थे। इस पूरी हिंसा की वजह थी पूर्व चरमपंथी नेता चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू की पुलिस एनकाउंटर में मौत। सवाल है कि चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू का इतिहास क्या है। खासी समुदाय के लोग ही ज्यादा क्यों भड़के। मेघालय पुलिस के हाथों ये एनकाउंटर हुआ, बावजूद इसके गृहमंत्री लखमेन रिंबुई ने इस्तीफा क्यों दिया। वे इस घटना से नाराज क्यों थे। सब बताएंगे आपको सिलसिलेवार ढंग से।
2 जिलों में धमाके से कैसे जलने लगा शिलांग
मेघालय में एक जिला है जयंतिया हिल्स। यहां 13 अगस्त से पहले स्टार सीमेंट्स के पास धमाका हुआ। इसके बाद लाइटूमखराह इलाके में दूसरा धमाका हुआ। ये दोनों एक आईईडी ब्लास्ट था। पूर्वी खासी हिल्स और पूर्वी जयंतिया हिल्स जिले में 2 अलग-अलग मामला दर्ज किया गया। मेघालय पुलिस ने मामले में कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया। मेघालय पुलिस का कहना है कि संदिग्धों से पूछताछ और उपलब्ध साक्ष्यों से पता चला कि दोनों ही धमाकों के पीछे हाइनीवट्रैप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल यानी एचएनएलसी के पूर्व चरमपंथी नेता चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू का हाथ है।
मेघालय में धमाकों में चेरिस्टरफील्ड का हाथ था!
पुलिस ने इस आधार पर 13 अगस्त को तड़के चेरिस्टरफील्ड के आवास पर छापा मारा। पुलिस का दावा है कि टीम उनको गिरफ्तार करने गई थी। छापेमारी के दरम्यान चेरिस्टरफील्ड ने पुलिस टीम पर चाकू से हमला किया। पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। चेरिस्टरफील्ड घायल हो गया और अस्पताल ले जाने के दौरान उसकी मौत हो गई।
एनकाउंटर पर चेरिस्टरफील्ड की फैमिली क्या बोली
हालांकि चेरिस्टरफील्ड का परिवार पुलिस के बयान से इत्तेफाक नहीं रखता। चेरिस्टरफील्ड के भाई ग्रैनिज स्टारफील्ड थांगख्यू ने बताया कि मेघालय पुलिस ने उनके भाई को बर्बर तरीके से मारा। परिवार के सामने उनको यातना दी। पुलिस की कार्रवाई देख कर ऐसा लग रहा था कि वो चेरिस्टरफील्ड को मारने के इरादे से ही वहां आई थी। खैर, ये सबकुछ जांच का विषय है। मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में एक जांच कमिटी बनाई भी गई है। अब आते हैं हिंसा पर।
खासी और जयंतिया समुदाय के लोग ज्यादा परेशान थे
जैसे जैसे चेरिस्टफील्ड के एनकाउंटर की खबर फैली लोग उग्र होने लगे। विशेष तौर पर खासी और जयंतिया जनजातीय समुदाय के लोग। 13 अगस्त को छिटपुट हिंसा से शुरू हुआ प्रदर्शन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन उग्र हो गया। लोगों ने बाजार में भारी तोड़फोड़ की। दुकानों में आग लगा दी। सड़कों पर टायर जलाकर विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस वाहनों में तोड़फोड़ की और आग लगा दिया। पुलिस पर हमला किया। हालात यहां तक खराब हो गए कि राजधानी शिलांग और पूर्वी खासी हिल्स सहित 4 जिलों में पूरी तरह से कर्फ्यू लगा दिया गया। इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई। राजधानी शिलांग में हालात को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबल की पांच कंपनियों को तैनात किया गया। हालात अभी भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। सरकार यहां निगाह रख रही है। पुलिस को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
चरमपंथी नेता चेरिस्टरफील्ड का संक्षिप्त परिचय
आखिर में चेरिस्टरफील्ड का परिचय जान लेते हैं। चेरिस्टरफील्ड की पहचान मेघालय में एक उग्र चरमपंथी नेता की रही थी। मेघालय में साल 1992 में एक चरमपंथी संगठन का गठन हुआ। नाम था हाइनीवट्रैप अचिक लिब्रेशन कांउसिल। चेरिस्टरफील्ड इसका संस्थापक महासचिव था। 1993 में एचएएलसी को भंग कर दिया गया। संगठन नए रूप में सामने आया। इस बार इस संगठन का नाम था हाइनीवट्रैप नेशनल लिब्रेशन काउंसिल। 1993 से 2004 तक इस संगठन ने मेघालय में कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया। संगठन का दावा था कि वो खासी और जयंतिया जनजातीय समुदाय के हितों के लिए संघर्ष कर रहा है।
मेघालय में निर्वासित जिंदगी जी रहा था चेरिस्टरफील्ड
2004 में मेघालय में तमाम चरमपंथी संगठनों के खिलाफ सुरक्षा एजेंसियों ने कार्रवाई शुरू की। इसी समय चेरिस्टरफील्ड बांग्लादेश भाग गया। वो साल 2018 में मेघालय लौटा और आधिकारिक रूप से सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। तब से ही चेरिस्टरफील्ड निर्वासित जिंदगी जी रहा था। परिवार का कहना है कि चेरिस्टरफील्ड बीमार भी था। फिलहाल हालात वहां तनावपूर्ण हैं।