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तेजस्वी के एजेंडे से एनडीए में खलबली, वोट बिखराव की संभावना बढ़ी, कई दिग्गजों की हालत पस्त

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द फॉलोअप टीम, पटना :
बिहार में तीन चरणों में हो रहे विधानसभा चुनाव का शोर गुरुवार को समाप्त हो गया। अंतिम चरण के लिए 78 सीटों पर वोटिंग 7 नवंबर को होगी, जबकि 10 नवंबर को वोटों की गिनती होगी। इस चुनाव में कोरोना महामारी के बीच हो रहे चुनाव में कई नए प्रयोग और समीकरण देखने को मिले। तेजस्वी यादव के दस लाख युवाओं को नौकरी देने के वादे ने बेरोजगारी को चुनाव का एक बड़ा मुद्दा बना दिया।

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तेजस्वी ने 250 से अधिक रैलियों का रिकार्ड बनाया
इस मुद्दे को लेकर शुरुआत में तो एनडीए की तरफ से इस वादे का मजाक बनाने की कोशिश हुई, लेकिन असर को भांपने के बाद लगभग सभी पार्टियां किसी न किसी रूप में युवाओं को रोजगार देने का वादा करती दिखीं। महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी यादव को राजनीति का नौसखिया माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए 250 से अधिक रैलियां कर एक रेकार्ड भी बनाया। कांग्रेस ने भी पूरी ताकत झोंकी और पार्टी के सीनियर नेता रणदीप सुरजेवाला के नेतृत्व में एक दर्जन से अधिक नेता तीन हफ्ते के दौरान राज्य में कैंप करते रहे। पार्टी को गठबंधन में 70 सीटें दी गईं। गठबंधन में लेफ्ट को जगह मिलने के बाद उसे भी खुद को राज्य में उभरने का एक मौका मिला है और खासकर माले का कॉडर इस बार जमीन पर सक्रिय दिखा। मध्य बिहार की कई सीटों पर माले का प्रभाव क्षेत्र रहा है। पहले दो चरणों की वोटिंग में कांटे की टक्कर के अनुमान के बाद तीसरे चरण के लिए सभी गठबंधनों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। तीसरे चरण वाले मतदान का बड़ा हिस्सा मुस्लिम बहुल माना जाता है। तेजस्वी यादव इस इलाके में दो दिनों तक कैंप करते रहे तो कांग्रेस ने अपना हेडक्वार्टर भी पटना से उठाकर पूर्णिया कर दिया। 

रोजगार के मुद्दे को ही फोकस किया गया
महागठबंधन की सबसे अधिक कोशिश मुस्लिम-यादव वोट बैंक आगे बढ़ाने की रही है। इसी वजह से तेजस्वी यादव सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की बात करते रहे हैं। प्रचार में लालू प्रसाद का नाम भी कम लिया गया और वे पोस्टर से दूर रखे गए। कुल मिलाकर विपक्षी गठबंधन नीतीश के पंद्रह सालों की एंटी इनकंबेंसी और रोजगार के मुद्दे को ही केंद्र में रखकर चुनाव लड़ता रहा।

एनडीए को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी 
जेडीयू और बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए चुनाव में उतरा तो शुरू में उसकी जीत पर कोई संदेह नहीं था। मोदी और नीतीश की जोड़ी को अजेय माना जा रहा था। एनडीए को न तो एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का असर दिखने का अंदाजा था और न ही तेजस्वी से परिपक्वता दिखाने की कोई आशंका थी लेकिन लेकिन चुनाव अभियान जैसे जैसे आगे बढ़ा, एनडीए को जमीनी हालात देखकर परेशानी का सामना करना पड़ा। एनडीए ने अपना प्रचार मूल रूप से केंद्र और राज्य सरकार के कामकाज पर ही केंद्रित किया। अभियान के दौरान एनडीए को अपनी चुनावी रणनीति भी बदलनी पड़ी। महागठबंधन के आक्रामक चुनाव अभियान को काउंटर करने के लिए आक्रामक तेवर अपनाने का फैसला हुआ। 

एनडीए को वोट बैंक बिखरने की चिंता
दूसरे चरण से ठीक पहले नरेंद्र मोदी की अगुआई में एनडीए ने जंगलराज की याद ताजा करते हुए तगड़ा हमला किया। फिर पूरा एनडीए विपक्ष पर हमलावर हुआ। एनडीए की मूल चिंता अपने वोट बैंक के बिखराव को रोकने की रही है। रणनीति बदलने के बाद एनडीए नेताओं को भरोसा है कि वे अपने वोट बैंक का बिखराव रोकने में कामयाब रहे हैं। जो संदेश वे वोटर तक पहुंचाना चाहते थे, उसमें भी वे कामयाब रहे हैं। नीतीश कुमार ने महिला वोटरों को अपने पक्ष में बनाए रखने में पूरी ताकत लगाई। दूसरे चरण में महिलाओं का पुरुष के मुकाबले पड़े 6 फीसदी से अधिक वोट को एनडीए ने अपने पक्ष में माना। साथ ही अंतिम चरण में मुस्लिम बहुल सीटों पर ध्रुवीकरण के कारण एनडीए का मानना है कि उसे लाभ होगा। इसके पीछे हालिया ट्रेंड भी है जिसमें ऐसी सीटों पर बीजेपी उम्मीद से बेहतर करती रही है। कुल मिलाकर एनडीए ने शुरू में लड़खड़ाने के बाद संभलने का संदेश दिया। एनडीए की तरफ से यह उम्मीद भी की जा रही थी कि महागठबंधन का कोई न कोई नेता हिट विकेट होकर उसे बढ़त बनाने का मौका दे देगा, लेकिन इस बार महागठबंधन के नेताओं ने इस तरह के मौके एनडीए को दिए नहीं।

चिराग को लेकर सस्पेंस बरकरार
इस चुनाव में सरप्राइज फैक्टर रहा चिराग पासवान का नीतीश कुमार के प्रति बागी तेवर। राज्य में एनडीए से अलग होने के बावजूद चिराग अपने को बीजेपी और नरेंद्र मोदी के साथ बताते रहे है लेकिन नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर रहे और उन्हें जेल तक भेजने की धमकी देते रहे। चिराग के इस नए अंदाज से राज्य में एनडीए वोटर के बीच उलझन साफ दिखी। चिराग पासवान की पार्टी के अधिकतर उम्मीदवार बीजेपी के पूर्व नेता थे जिससे हालात और पेचीदा हुए। एनडीए घटक दलों के बीच बिखराव का कितना असर चुनावी नतीजों पर पड़ेगा यह देखना रोचक होगा। चिराग की रैलियों में भी अच्छी भीड़ देखी गई। उधर सीमांचल में कम से कम 12 सीटों पर ओवैसी ने मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। इन सीटों पर 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। इनकी रैलियों में भीड़ भी बहुत अधिक आई। पप्पू यादव का गठबंधन मधेपुरा,सहरसा जिले के कुछ सीटों पर अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश कर रहा है।