logo

नरेंद्र मोदी और नीतीश के आगे तेजस्वी यादव ने खींच दी लंबी लकीर, कई मिथकों को किया धराशाई

2205news.jpg
द फाॅलोअप टीम, नई दिल्ली 
सच पूछिए तो बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार के आगे लंबी लकीर खींच दी है। अगर तेजस्वी की रैलियों में उमड़ी भीड़, युवाओं का समर्थन, 10 लाख नौकरियों का वादा और चुनावी जातीय कार्ड ने रंग दिखाया तो तेजस्वी यादव को इस बार एक अन्ने मार्ग (सीएम हाउस) जाने से कोई रोक नहीं सकता है।

शनिवार को चुनाव का आखिरी चरण   
बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण में 15 जिलों की 78 सीटों पर वोटिंग समाप्त होने वाली है। इसी के साथ राज्य के मुख्यमंत्री और सत्ताधारी जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार का भविष्य ईवीएम में कैद हो जाएगा। महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राजद नेता तेजस्वी यादव के भविष्य की दिशा और दशा भी इस चरण के मतदान के साथ तय होने वाले हैं। चिराग पासवान के एकला चलो दांव के बाद उनकी सियासी पकड़ कमजोर होती है, या फिर मजबूत, यह चुनाव इसका भी फैसला करेगा।
 
तेजस्वी ने ताकतवर नेताओं को अपने मुद्दे पर आने को किया मजबूर 
इस बीच, महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और राज्य के बड़े नेता लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने चुनावों में न केवल युवाओं के बीच अपनी पैठ बनाई और पूरे चुनाव आकर्षण का केंद्र भी बने रहे बल्कि उन्होंने विपक्षी स्टार प्रचारकों को जमकर पानी पिलाया। तेजस्वी ने आकर्षक और दमदार छवि वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विकासपुरुष की छवि गढ़ने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने मुद्दों पर ले आकर यह साबित कर दिया कि वे ही बिहार के भविष्य के नेता हैं। तेजस्वी ने इस बार पांथिक आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण को रोका है और अपने मुद्दों पर ताकतवर नेताओं को आने के मजबूर कर दिया। निःसंदेह इसे तेजस्वी की जीत कही जा सकती है। 

सतर्कता से नरेन्द्र मोदी को दी चुनौती 
तेजस्वी की चुनावी रैलियों में उमड़ती भीड़ और राज्य के युवाओं में बेरोजगारी पर उपजा नीतीश सरकार के खिलाफ असंतोष देखकर ही चुनाव के पहले चरण के दिन अपनी चुनावी सभा में पीएम मोदी ने तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कह डाला। पीएम मोदी ने लालू-राबड़ी शासनकाल को जंगलराज कहकर मतदाताओं को एक तरह से तेजस्वी के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। सीएम नीतीश कुमार ने भी तेजस्वी के 10 लाख नौकरियों के वादे को उलूल-जुलूल करार दिया लेकिन उनके गठबंधन की सहयोगी पार्टी बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में तेजस्वी की काट के तौर पर 19 लाख रोजगार की बात कही। उससे पहले राज्य के डिप्टी सीएम सुशील मोदी नीतीश के सुर में सुर मिलाकर पूछ रहे थे कि पैसा कहां से आएगा? लेकिन बीजेपी ने जल्द ही इस पर अपना स्टैंड बदल लिया और रोजगार का वादा करने वाले घोषणा पत्र की लॉन्चिंग के लिए सीधे देश की खजाना मंत्री को उतार दिया।

एनडीए नेताओं के द्वारा लगाए गए अनुभवहीनता के आरोप को किया खारिज 
चुनाव की सुगबुगाहट होने से लेकर पहले चरण के मतदान के एक-दो दिन पहले तक भाजपा के नेतागण और खुद नीतीश कुमार तेजस्वी को 31 साल का नौसिखिया और अनुभवहीन नेता करार दे रहे थे लेकिन जैसे ही ईवीएम का बटन दबाने की तारीख नजदीक आई, सभी विपक्षी नेताओं को अपनी राजनीतिक रणनीति में परिवर्तन करना पड़ा। जब तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली तब पीएम मोदी ने व्यंग्य कसा कि जैसे यूपी में दो युवराजों का बुरा हाल हुआ, वैसा ही बिहार में होगा। शायद पीएम की बात का रंग मतदाताओं पर न चढ़ा हो, इसलिए पीएम मोदी को अंतिम चुनावी रैलियों में हिन्दूवादी एजेंडे को आत्मसाथ करना पड़ा और सहरसा की रैली में जयश्री राम और भारत माता की जयकारे लगाने पड़े। यही नहीं प्रधानमंत्री को बिहार की जनता के नाम पत्र और अपील भी करनी पड़ी है। 

तेजस्वी के सामने भाजपा का ध्रुवीकरण कार्ड पड़ा कमजोर  
बीजेपी ने आखिरी दौर में ध्रुवीकरण के लिए योगी आदित्यनाथ को भी उतारा। उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री ने राम मंदिर निर्माण का श्रेय पीएम मोदी को देकर हिन्दू अस्मिता को जगाने की कोशिश की। साथ ही नागरिकता संशोधन कानून पर बयान देकर हिन्दू वोटरों को लुभाने की कोशिश की। सीएम नीतीश कुमार को भी पूर्णिया के धमदाहा में अपनी अंतिम चुनावी सभा में इमोशनल कार्ड फेंकना पड़ा और उन्होंने इसे अपने जीवन का अंतिम चुनाव करार दिया।

ये भी पढ़ें......

चुनाव में नायक की तरह उभर कर आए हैं तेजस्वी 
कुल मिलाकर इस चुनाव में तेजस्वी एक नायक के रूप में उभर का सामने आए हैं। जीत चाहे जिस गठबंधन की हो लेकिन तेजस्वी ने अपनी शर्तों पर नेताओं को लाकर खड़ा कर दिया। भाजपा या फिर जदयू को यह लग रहा था कि तेजस्वी कमजोर साबित होंगे और लालू प्रसाद यादव जैसे मझे हुए नेता इस बार प्रचार में नहीं है, इसलिए उन्हें इसका फायदा होगा लेकिन तेजस्वी ने इस भ्रम को तोड़ दिया। तेजस्वी का मुद्दा प्रभावी रहा तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी, वे चुनाव हार भी गए तो इसका बहुत ज्यादा फर्क उनके राजनीतिक जीवन पर नहीं पड़ेगा, जबकि नीतीश चुनाव हार गए तो उनके राजनीतिक जीवन पर प्रश्न खड़ा हो जाएगा और संभवतः नीतीश कुमार राजनीति से सन्यास ले लें।

Trending Now