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हेमंत जी! सब ठीक है ना...

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कुमार कौशलेंद्र, रांची: 

रांची में मानसून की झमाझम का आनंद छोड़ सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अचानक दिल्ली की तपीश में झुलसने क्या चले गये सूबे का सियासी तापमान ही उछाल मारने लग गया। जितनी मुंह उतनी बातें। कोई 12 वें मंत्री पद की रेहड़ी लगाये बैठा है तो कोई बोर्ड निगम के बंटवारे का मसाला पीसे जा रहा है। 

इन सबके बीच मुख्यमंत्री के अनुज और दुमका के विधायक बसंत सोरेन के लोकेशन का तड़का भी लगाया जा रहा है। पत्रकार बिरादरी की बात करूं तो कोई बसंत सोरेन को दिल्ली में बता रहा है तो कोई उन्हें दुमका के रास्ते में। सत्ता सहयोगी कांग्रेस 12 वें मंत्रीपद  की हुंकार भर रहा है तो झामुमो संगठन के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य झामुमो की दावेदारी का दंभ भर रहे हैं। कुल मिलाकर खिचड़ी वैसी ही पक रही है जिसका स्वाद झारखंड की जनता पृथक झारखंड गठनकाल से लगभग डेढ़ दशक तक चखती रही। 

आगे बढूं, इससे पहले आप पाठकों को याद दिला दूं कि बिहार  से अलग होकर झारखंड  को पृथक राज्य बने 21 साल बीत चुके हैं। साल 2000 में एक लंबी लड़ाई के बाद झारखंड एक अलग राज्य तो बना लेकिन राजनीतिक अस्थिरता का दौर बना रहा।  राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने बाबू लाल मरांडी। उनके बाद कई सरकारें बनीं लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार आने में 14 साल लग गए। 

झारखंड की राजनीतिक अस्थिरता को कुछ इस तरह समझिए कि राज्य में 19 साल में 13 सरकारें बदलीं। इस दौरान यहां राज्य में 3 साल राष्ट्रपति शासन भी रहा। 2014 में राज्य में पहली बार किसी पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। बीजेपी ने सभी विरोधी दलों को पछाड़ते हुए विधानसभा की 81 सीटों में 37 पर कब्जा किया। 28 दिसंबर 2014 को रघुवर दास ने राज्य के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।  रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की विदाई हुई.(विदाई के कारणों की विषद विवेचना फिर कभी)।

दिसोम गुरु शिबू सोरेन एक जननेता जो सिर्फ अपने इलाके का ही नहीं बल्कि पूरे झारखंड के सियासी  मसीहा के रूप में अपनी पहचान रखते हैं के पुत्र हेमंत सोरेन ने तमाम सियासी समीकरणों को धत्ता बताते हुये झामुमो के 30 विधायकों को विधानसभा पहुंचाकर ये ऐलान कर दिया कि झामुमो के नेतृत्व में ही झारखंड की सरकार चलेगी। चुनाव पूर्व गठबंधन सहयोगी कांग्रेस के भी 16 विधायक झामुमो के साथ हुये और अन्य मौसमी विधायक भी साथ हो लिये। प्रचंड बहुमत की हेमंत सरकार की ताजपोशी हुई।

अपने कार्य काल के डेढ़ साल में कोरोना की दो-दो लहरों से दो चार होते हेमंत सोरेन ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सरकार की गाड़ी बखूबी हांका। इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन कोरोना आपदा की सुस्त होती रफ़्तार के बीच सियासी खींचतान की खबरें अच्छे संकेत तो नहीं ही दे रहीं। वैसे कांग्रेस और झामुमो के गठबंधन का अतीत बड़ा भयावह रहा है। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के जनसमर्थन का इस्तेमाल और गुरू जी की फजीहत करने में कांग्रेस कभी चूकी भी नहीं।

सियासत में संकेतों की बड़ी अहम भूमिका होती है। झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और हेमंत सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव का सुबह दिल्ली जाना और देर शाम  मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का आनन-फानन में दिल्ली कूच कर जाना सियासी खुराफात की खिचड़ी पकाने वालों को खुराक तो दे ही जाता है। खैर, समय रहते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनके मीडिया सलाहकार और झामुमो संगठन ने सियासी सगूफेबाजी को विराम नहीं दिया तो घाव झामुमो को ही लगेंगे इतना तय है। 

कुमार कौशलेंद्र वरिष्ठ पत्रकार हैं। झारखंड बिहार के कई अखबार, टीवी और वेब मीडिया में अपनी सेवा दे चुके हैं। फिलहाल राजनैतिक मुद्दों पर अपनी राय देते रहते हैं। 


नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।