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दुख का कारण और उसका निवारण बताते हैं महात्मा बुद्ध

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संजीव खुदशाह

बुद्ध को एशिया का प्रकाश यानी Light of Asia कहा जाता है। जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, चीन, वियतनाम, ताइवान, तिब्बत, भूटान, कंबोडिया, हांगकांग, मंगोलिया, थाईलैंड, मकाउ, वर्मा, लागोस और श्रीलंका की गिनती बुद्धिस्ट देशों में होती है। वैसे तो बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था। लेकिन बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर परिनिर्वाण तक पूरा जीवन भारत के भू भाग में ही बीता। बावजूद इसके भारत में बुद्ध को पूरी तरह भुला दिया गया था। आज भी भारत के लगभग सभी भागों में खुदाई के दौरान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त होती रहती है। इसी प्रकार सम्राट अशोक को भी पूरी तरह भुला दिया गया था 1838 में जब अशोक स्तंभ को पढ़ा गया तब ज्ञात हुआ कि कोई अशोक नाम का सम्राट भी यहां हुआ करता था। हालांकि जनमानस में बुध और अशोक बसे हुए हैं। अशोक के लगाए पेड़ उन्हीं के नाम से आज भी जाने जाते हैं।

प्रसंगवश यह बताना जरूरी है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी वन में इसवी सन से 563 वर्ष पूर्व हुआ था। उनकी माता महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थी तो कपिलवस्तु और देवदह के बीच लुंबिनी वन हुआ करता था। इसी वन में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे गौतम को ज्ञान प्राप्त हुआ और वह बोधिसत्व कहलाए। मान्‍यता है कि इसी दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में भगवान बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ।

शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो कुछ भी कहा वह त्रिपिटक में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। 

आज हम जितना उनके बारे में जानते हैं। पूरी जानकारी का केवल 20% है। बौद्ध साहित्य जो त्रिपिटक के रूप में था। काफी पहले नष्ट हो गया। अच्छी बात यह थी कि यह साहित्य पाली से तिब्बती भाषा में अनूदित हो चुका था। राहुल सांकृत्यायन ने इसे हिंदी भाषा में अनुवाद करके उपलब्ध कराया। कट्टरपंथियों ने नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय पर हमले किये उसे जलाया, 3 महीने तक किताबे जलती रही।  न जाने कितनी बहुमूल्य किताबें, कीमती जानकारियां रही होगी , सब राख में तब्दील हो गई।

कहने का तात्पर्य यह है कि जिस बुद्ध के पीछे सारी दुनिया पागल थी। उस बुद्ध को उसी के जन्म और कार्यस्‍थली में लगभग भुला दिया गया। ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे विभिन्न मत है जिसकी चर्चा यहां गैर जरूरी है।

गौतम बुद्ध को लाइट ऑफ एशिया के नाम से पुकारने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है उनके विचार, उनकी शिक्षाएं। वे दुख का कारण और उसका निवारण बताते हैं। गृहस्थों के लिए जीवन जीने की पद्धति बताते हैं जिसे पंचशील कहा जाता है। वे दुनिया के पहले ऐसे विचारक हैं जो यह कहते हैं कि ‘अपना दीपक खुद बनो’ यानी अत्त दीपो भव। वे कहते हैं कि कोई बात इसलिए नहीं मानो कि कोई बड़ा व्यक्ति कह रहा है या किसी पवित्र ग्रंथ में लिखा है या मैं कह रहा हूं। इस बात का स्वयं मूल्यांकन करो और खुद अनुभव करो तभी वह बात को मानो। यही वे पहलू थे जिसके कारण बुद्ध सर्वत्र स्वीकार किये गये।

दुनिया के अन्य धर्मों की तरह बुद्ध उपासना की कोई एक पद्धति या रिवाज या कोई ड्रेस कोड अथवा कोई रूमानी आदेश नहीं है। जिससे यह तय हो की आप बुद्धिस्ट हो। सिर्फ बुद्ध के विचारों को मानना जरूरी है। जिसे सम्यक विचार कहते हैं। यही कारण है संसार के सारे बुद्धिस्ट की उपासना पद्धति अलग-अलग है। जापान के बुद्ध वहां की संस्कृति में रचे बसे हैं। ठीक उसी प्रकार चीन के बुद्ध वहां की संस्कृति में समाये है। बुद्ध को मानने के लिए संस्कृति को बदलने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन सभी जगहों में पंचशील अष्टशील पाली भाषा में ही स्मरण किए जाते हैं।

भगवान बुद्ध कहते हैं कि जीवन ऐसे जियो जैसे वीणा के तार। वीणा के तारों को इतना ढीला ना रखो कि उसकी ध्वनि बेसुरी लगे और इतना ना कसो कि उसकी ध्वनि कानों में चुभे। वीणा के तारों को ऐसे एडजस्ट करो कि उससे मधुर संगीत की उत्पत्ति हो। लोगों को खुशी मिले। यानी जीवन को वीणा के तारो की तरह जीने की बात बुद्ध कहते हैं।

दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया भर के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्यान और ज्ञान पर बहुत से मुल्कों में शोध जारी है।

पश्चिम देशो के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध को पिछले कुछ वर्षों से बड़ी ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी जगत की तादाद बढ़ी है। वे बुद्ध के बारे मे और जानना चाहते है। वे उन रहस्यों से पर्दा उठाना चाहते है की किन कारणो से बुद्ध को भारत से भुला दिये गये। वे क्या कारण है कि सारे विश्व में अपने विचार का परचम लहराने वाले बुद्ध के अनुयायी भारत से गायब हो गये। भगवान बुद्ध की खोज अभी भी जारी है।

(रायपुर छत्तीसगढ़ निवासी संजीव खुदशाह दलित लेखक, चिंतक,  कवि, कथाकार और पत्रकार हैं।रचनाएं देश की लगभग सभी प्रसमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। "सफाई कामगार समुदाय" एवं "आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग"  आपकी चर्चित कृतियों मे शामिल हैं। आपकी किताबें मराठी, पंजाबी और ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनूदीत हो चुकी है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी है।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।