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शिक्षक पति-पत्नी ने अपनी गाड़ी को बनाया एंबुलेंस, कोरोना मरीजों को फ्री में पहुंचाते हैं हॉस्पिटल

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सूरज ठाकुर, रांची: 

कोरोना की दूसरी लहर में जब रोजाना लाखों की संख्या में लोग संक्रमित हो रहे थे। हजारों लोगों की जान जा रही थी। अस्पतालों में बेड की कमी थी। लोग ऑक्सिजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे। अस्पतालों में एंबुलेंस की किल्लत थी और निजी एंबुलेंस संचालक मनमानी कीमत वसूल रहे थे। चारों तरफ हाहाकार मचा था। दवाइयों की कालाबाजारी हो रही थी, वैसे वक्त में रांची का एक शिक्षक दंपत्ति लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आया। इच्छाशक्ति और सेवा भावना की बदौलत शिक्षक दंपत्ति अमरदीप सिन्हा और जयश्री सिन्हा ने वो कर दिखाया कि आम से खास हो गये। पति-पत्नी ने मिलकर कई जिंदगियां बचाईं। 

अपनी नई कार को एंबुलेंस में तब्दील किया
रांची के हरमू में रहने वाले शिक्षक दंपत्ति अमरदीप सिन्हा और जयश्री सिन्हा ने अपनी निजी कार को एंबुलेंस में तब्दील कर दिया। गाड़ी के पिछले हिस्से की सीटें हटवा दीं और वहां स्ट्रेचर लगवा दिया। एबुलेंस में बकायदा ऑक्सीजन सिलेंडर लगवाया। जीवनरक्षक दवाइयां रखीं। ऑक्सीजन कन्सेंट्रेटर लगवाया। कोरोना की दूसरी लहर में जब निजी एंबुलेंस संचालक थोड़ी सी दूरी तय करने के लिए 20 हजार रुपये तक वसूल रहे थे, दंपत्ति मरीजों को मुफ्त में एंबुलेंस के जरिये हॉस्पिटल पहुंचा रहा था। दिलचस्प बात ये है कि एंबुलेंस को कभी अमरदीप खुद चलाते तो कभी उनकी पत्नी जयश्री। दोनों ने मिलकर मरीजों की सेवा की। 

दूसरी लहर में तबाही देख जागा था सेवाभाव
अपनी गाड़ी को एंबुलेंस में तब्दील करने का आइडिया और हिम्मत कहां से मिली। पूछने पर अमरदीप ने बताया कि दूसरी लहर के दौरान वे और उनकी पत्नी जयश्री दोनों कोरोना संक्रमित हो गये थे। दोनों ने कोरोना संक्रमितों को होने वाली आर्थिक और मानसिक परेशानी को करीब से महसूस किया। देखा कि मेडिकल स्टोर्स संचालक और निजी एंबुलेंस संचालक किस तरह संवेदनहीन होकर मनमानी कीमत वसूल रहे हैं। ऐसे में जब वे दोनों ठीक हो गये तो सोचा कि भगवान ने नई जिंदगी दी है। इसका सदुपयोग सेवा में करना चाहिए। अमरदीप कहते हैं कि मैंने देखा कि लोगों ने जो भी कमाया था, उसमें से कुछ भी उसकी मृत्यु के बाद साथ नहीं गया। मैंने सोचा कि हमारे पास जो भी है, हमें इसका उपयोग लोगों की भलाई में करना चाहिए। 

गाड़ी को एंबुलेंस बनाने में आया था इतना खर्चा
अमरदीप ने बताया कि गाड़ी को एंबुलेंस में तब्दील करने में तकरीबन 80 हजार रुपये का खर्च आया। ये खर्चा उन्होंने अपनी और पत्नी की बचत से किया। वे कहते हैं कि पत्नी जयश्री ने उनका भरपूर सहयोग किया। आर्थिक सहायता दी। हौसला दिया। किसी भी प्रकार की चुनौती में साथ खड़ी रहीं। यहां तक कि कई बार खुद भी एंबुलेंस चलाकर मरीजों को अस्पताल पहुंचाया। 

पत्नी जयश्री ने पति अमरदीप का दिया पूरा साथ
पति ने लोगों की मदद करने का फैसला किया। कोरोना की दूसरी लहर पीक पर थी। हर तरफ खतरा था। आप लोग संक्रमित हो चुके थे। आप पति के इस प्रयास को लेकर कितनी आशंकित थीं। ये कितना चुनौतीपूर्ण था। पूछने पर जयश्री सिन्हा ने बताया कि मैने और मेरे पति ने मिलकर ये फैसला किया कि हमें लोगों की सहायता करनी चाहिए। लोग मुश्किल में हैं। हमारे पास यदि संसाधन है तो लोगों की सहायता करनी चाहिए। हमने यही सोचकर अपनी गाड़ी को एंबुलेंस उपलब्ध कराया। जरूरतमंदों को हॉस्पिटल पहुंचाया। परिवार की क्या प्रतिक्रिया थी। पूछने पर जयश्री कहती हैं कि परिवार ने पहले शंका जाहिर की। मना भी किया। उनको हमारी सुरक्षा को लेकर चिंता थी, लेकिन धीरे-धीरे वो भी हमारा उद्देश्य समझ गये और हमारी सहायता की।

 

रक्तदान शिविर का भी आयोजन करते हैं अमरदीप
गौरतलब है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान अमरदीप ने लोगों को भोजन मुहैया करवाया था। दूसरी लहर में जब लोगों को सबसे ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत थी तो ऑक्सीजन मुहैया करवाया। मरीजों को फ्री एंबुलेंस मुहैया करवाया। अमरदीप ने बताया कि वो महीने में 2 बार रक्तदान शिविर का आयोजन करते हैं। इसमें रक्तदान करने वालों को अपने एंबुलेंस से शिविर तक लाते हैं और फिर इसी के जरिये वापस घर तक पहुंचाते हैं। रक्तदान करने वाले तथा उसके परिवार के किसी भी सदस्य के लिए आजीवन एंबुलेंस सेवा उपलब्ध रहेगी। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इस शिक्षक दंपत्ति ने तकरीबन 75 लोगों की जिंदगी बचाई।