द फाॅलोअप टीम, नई दिल्ली
एक बार फिर रेलवे अपने यात्रियों को कुल्हड़ में चाय परोसने की तैयारी कर रही है। मसलन, चाय की चुस्की लेने वालों और खासकर मिट्टी के कुल्हड़ में सोंधी-सोंधी चाय का आनंद लेने वालों के लिए खुशखबरी है। करीब 16 साल बाद, एक बार फिर देश के रेलवे स्टेशनों पर लालू प्रसाद यादव की योजना को रेलवे परवान चढ़ाने की दिषा में पहल कर रही है। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को कहा कि आने वाले समय में देश के हर रेलवे स्टेशन पर प्लास्टिक मुक्त कुल्हड़ में ही चाय मिलेगी।
फिलहाल 400 स्टेशनों पर मिलती है कुल्हड़ में चाय
राजस्थान के अलवर में ढिगावड़ा रेलवे स्टेशन पर ढिगावड़ा-बांदीकुई रेलखंड पर विद्युतीकृत रेलमार्ग के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए गोयल ने कहा कि आज देश में लगभग 400 रेलवे स्टेशनों पर कुल्हड़ में ही चाय मिलती है। आगे चलकर हमारी योजना है कि देश के हर रेलवे स्टेशन पर सिर्फ कुल्हड़ में चाय बिके। प्लास्टिक मुक्त भारत में रेलवे का भी यह योगदान रहेगा। इससे लाखों भाई-बहनों को रोजगार मिलता है।
मोदी सरकार बनने तक रेलवे स्टेशनों से गायब हो गए थे कुल्हड़
उन्होंने कहा कि पहले एक जमाना था, जब रेलवे स्टेशनों पर कुल्हड़ में ही चाय मिलती थी। जब 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी, तब तक कुल्हड़ गायब हो गये और प्लास्टिक के कप में चाय मिलनी शुरू हो गयी। रेल मंत्री ने कहा कि खादी ग्रामोद्योग विभाग के लोगों ने रेलवे के साथ मिलकर इस कार्य को गति दी है। गोयल ने कहा कि मैं अभी कुल्हड़ में चाय पी रहा था। वास्तव में कुल्हड़ में चाय पीने का स्वाद ही कुछ और होता है और पर्यावरण को भी आप बचाते हैं।
2004 में लालू यादव ने प्रारंभ की थी कुल्हड़ की शुरुआत
इस समय चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जब रेलमंत्री थे, तो उन्होंने 16 साल पहले वर्ष 2004 में रेलवे स्टेशनों पर ‘कुल्हड़’ की शुरुआत की थी, लेकिन प्लास्टिक और पेपर के कपों ने चुपके से कुल्हड़ की जगह हथिया ली। उन दिनों इस योजना की शुरूआत तो कर दी गयी लेकिन उस पर ठीक से काम नहीं किया गया। यही कारण है कि योजना को आगे बढ़ाया नहीं जा सका। हालांकि, 2019 की जनवरी में उत्तर रेलवे एवं उत्तर पूर्व रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक बोर्ड की ओर से जारी सर्कुलर के अनुसार, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वाराणसी और रायबरेली स्टेशनों पर खान-पान का प्रबंध करने वालों को टेराकोटा या मिट्टी से बने ‘कुल्हड़ों’, ग्लास और प्लेट के इस्तेमाल का निर्देश दिया था लेकिन इस आदेष का भी ठीक ढंग से पालन नहीं हो सका।