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रूपा तिर्की मामला: न्यायिक जांच के निर्णय में देरी से कई आशंकाएं

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द फॉलोअप टीम, रांची:
राज्यपाल द्रोपदी मुर्मू के हस्तक्षेप के बाद आखिर मंगलवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साहिबगंज महिला थाना प्रभारी रूपा तिर्की मामले की न्यायिक जांच के आदेश तो दे दिए। लेकिन देरी से हुए निर्णय पर सवाल भी उठ रहे हैं। झारखंड हाईकोर्ट के पहले चीफ जस्टिस विनोद कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग जांच करेगा। छह महीने में अपनी रिपोर्ट देगा। फिलहाल मामले की जांच एसआईटी कर रही है। जनाधिकार महासभा और आदिवासी विमेंस नेटवर्क का कहना है कि निर्णय को लेने में देरी के कारण जांच सम्बंधित कई आशंकाएं हैं। इस आशंका से नकारा नहीं जा सकता है कि मामले के सबूत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि के साथ छेड़छाड़ हुई हो। निष्पक्ष जांच के लिए यह सुनिश्चित किया जाए कि अभी तक मामले से जुड़े अधिकारियों को मामले से दूर रखा जाएगा। साथ ही, आरोपियों को तत्काल सभी पदों (प्रशासन, पार्टी आदि से) से हटाया जाए।

जांच में सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी किया जाए शामिल
महासभा ने मांग की है कि सरकार जांच दल में महिला संगठनों के प्रतिनिधि, महिला एक्टिविस्ट्स और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को शामिल करे। इस दल में पर्याप्त आदिवासी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। पूरी जाँच प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ चले। उठाये गये कदमों की जानकारी दी जाती रहे एवं लोगों का सुझाव लिया जाता रहे। महासभा की ओर से अलोका कुजूर, एलीना होरो और मंथन ने बयान जारी किया है।

लगातार पुलिस मामले को दबाने का कर रही काम
महासभा के बयान में कहा गया है कि राज्य् में पुलिस ऐसे मामले को लगातार दबाने का काम कर रही है। 30 मई 2021 को गढ़वा में 45-वर्षीया मज़दूर पाला माझी की पुलिस हिरासत में मृत्यु हो गयी। 29 अप्रैल 2021 में हजारीबाग के चौपारण में दलित छक्कन भुइयां की पुलिस की पिटाई से मौत हो गयी। दिसम्बर 2020 में बोकारों के आदिवासी बंशी हंसदा को स्थानीय गैर-आदिवासी पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा गया। जून 2020 में पश्चिमी सिंहभूम के चिरियाबेड़ा गाँव के आदिवासियों की CRPF द्वारा बेरहमी से पिटाई की गयी थी। इन सभी मामलों में हिंसा के लिए ज़िम्मेवार आरोपियों को प्रशासन व पुलिस व्यवस्था द्वारा बचाने की कोशिश की जा रही है और अब रूपा तिर्की का शोषण व हत्या।