द फॉलोअप टीम, रांची:
झारखंड में प्रति व्यक्ति आउट आफ पाकेट खर्च 6853 रुपये है। पूरे देश की बात करें तो प्रति व्यक्ति आउट आफ पाकेट खर्च 2013-14 के 2,336 रुपये से कम होकर 2017-18 में 2,097 रुपये रह गया है। बता दें कि आउट आफ पाकेट खर्च उस खर्च को कहा जाता है, जो एक परिवार अपनी जेब से स्वास्थ्य देखभाल के लिए खर्च करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य सेवा पर आवंटन बढ़ाकर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत करने का है, जिससे आउट आफ पाकेट खर्च में और कमी आएगी।
राज्य सरकार स्वास्थ्य पर करती है कम खर्च
झारखंड सरकार कुल खर्च में 4.7 प्रतिशत राशि ही करती है। जबकि पूरे देश में सरकार द्वारा किए जानेवाले खर्च में 5.12 प्रतिशत राशि स्वास्थ्य पर खर्च होती है। इस तरह, इस मामले में झारखंड राष्ट्रीय औसत से पीछे है। केंद्र सरकार के नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर द्वारा जारी नेशनल हेल्थ एकाउंट की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। पिछले दिनों यह नेशनल हेल्थ एकाउंट की यह रिपोर्ट वर्ष 2017-18 में स्वास्थ्य पर खर्च हुई राशि के आधार पर जारी की गई है।
बंगाल को छोड़कर अन्य प्रदेशों से पीछे है अपना राज्य
नेशनल हेल्थ एकाउंट के अनुसार, झारखंड में सरकार सकल घरेलू उत्पाद पर 1.1 प्रतिशत राशि स्वास्थ्य पर खर्च करती है, जबकि जीडीपी में स्वास्थ्य पर होनेवाले खर्च का राष्ट्रीय औसत 1.35 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत वर्ष 2025 तक यह आंकड़ा 2.5 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य है। जानकार बताते हैं कि जीडीपी में स्वास्थ्य पर होने पर होनेवाले खर्च का प्रतिशत तो बढ़ा है, लेकिन इसकी यही दर रही तो वर्ष 2025 तक यह लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल होगा। स्वास्थ्य पर होनेवाले कुल खर्च की बात करें तो झारखंड में जीएसडीपी पर 3.7 प्रतिशत राशि स्वास्थ्य पर खर्च हो जाती है। इसमें सरकार और निजी स्तर पर होनेवाला खर्च दोनों शामिल है। देश में यह दर 3.31 प्रतिशत ही है। नेशनल हेल्थ एकाउंट के अनुसार, जीएसडीपी में स्वास्थ्य पर होनेवाले खर्च के मामले में झारखंड अपने पड़ोसी राज्यों में बंगाल को छोड़कर अन्य प्रदेशों से पीछे है। जहां झारखंड में 1.1 प्रतिशत है, वहीं छत्तीसगढ़ में 1.5, बिहार में 1.4, ओडिशा में 1.2, उत्तर प्रदेश में 1.2 और पश्चिमी बंगाल में 1.0 प्रतिशत है।
सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था का मुख्य कारण
स्वास्थ्य संबंधी जानकारी इसके पीछे की वजह बताते हैं कि राज्य में सरकारी अस्पताल का हल बेहाल है, लोगों को विश्वास नहीं होता कि वे वहां जाकर अपना अच्छा इलाज करा पायेंगे। इस लिए राज्य के लोग अधिकत्तर नीजी अस्पतालों में जाकर अपने स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं। इसका एक उद्हारण झारखंड से साउथ जाने वाली ट्रेने का भी हाल देखकर लगाया जा सकता है।