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स्कूली बच्चे बनें डायन कुप्रथा के जागरुकता अंबेसडर- चीफ जस्टिस डॉ. रवि रंजन

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द फॉलोअप टीम, रांची:

झारखण्ड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन ने कहा कि 21वीं सदी में भी डायन कुप्रथा के जरिए महिलाओं से असमानता एवं भेदभाव का दौर जारी है,जो दुखद है। जागरुकता एवं शिक्षा की कमी ऐसी कुप्रथाओं को बढ़ावा देती है। हमें स्कूली बच्चों को डायन कुप्रथा को समाप्त करने के लिए ब्राण्ड एम्बेसडर के रूप में तैयार करने चाहिए जो गांव में हमारे जागरुकता एम्बेसडर होंगे। सभी विभागों को साथ मिलकर हर गांव में शिक्षा, जागरुकता, स्वास्थ्य सेवाओं को सुद्ढकरने की जरुरत है एवं हर गांव में महिलाओं  सशक्त बनाने की जरुरत है। झालसा के जरिए राज्य भर में ऐसी सामाजिक कुप्रथाओं को जड़ से खत्म करने के लिए कार्य किया जा रहा है। ग्रामीण विकास विभाग की इस पहल में झालसा भी अपना रोल निभाएगा। वहीं उन्होंने डायन प्रथा के कानूनों के बारे में लोगों को जागरुक करने की बात कही ताकि उनको अपने हक की जानकारी हो एवं समाज में न्याय सबको हासिल हो सके। चीफ जस्टिस  गरिमा परियोजना के अंतर्गत आयोजित साझा प्रयास से डायन कुप्रथा मुक्त झारखण्ड पर कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस  दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन ग्रामीण विकास विभाग एवं झारखण्ड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाईटी अंतर्गत हेहल स्थित राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (SIRD) में किया गया है।

 मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन ने सर्ड कैंपस में पौधारोपण भी किया।  कार्यक्रम में डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं के मुख्यधारा में जुड़ने की कहानियों के संग्रह पर गरिमा पुस्तिका का विमोचन किया गया।

छुटनी देवी को गरिमा परियोजना का ब्राण्ड अंबेसडर बनाएं: जस्टिस अपरेश सिंह

न्यायाधीश अपरेश सिंह ने कहा कि झालसा डायन प्रथा को समाप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत है। यह कार्यशाला इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। हम सब को शिक्षा एवं कानूनी जानकारी लोगों तक पहुंचाने की जरुरत है। जेएसएलपीएस एवं झालसा मिलकर डायन कुप्रथा को खत्म करने की दिशा में काम कर सकते है। राज्य में डायन कुप्रथा को खत्म करने के लिए कई कानून बनाए गए है , झालसा लोगों को जागरुक करने के लिए कार्य कर रही है। उम्मीद है की इस दिशा में भी इस कार्यशाला के जरिए काम आगे बढ़ेगा।  

 

डायन कुप्रथा की रोकथाम के लिए गरिमा परियोजना: मनीष रंजन 
डायन कुप्रथा के रोकथाम के लिए आयोजित कार्यशाला में ग्रामीण विकास सचिव, डॉ. मनीष रंजन ने कहा कि राज्य में डायन कुप्रथा की घटनाओं के आंकड़े चौकाने वाले है। ग्रामीण झारखण्ड से इस कुप्रथा को समाप्त करने की जरुरत है। इस कार्यशाला के माध्यम से डायन कुप्रथा के खिलाफ काम करने वाले विभिन्न स्टेकहोल्डर्स एक साझा रणनीति तैयार कर सकेंगे। गरिमा परियोजना पर जानकारी देते हुए उन्होंने  कहा कि आने वाले दिनों में इस परियोजना के तहत राज्य की करीब 5000 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं को लाभ मिलेगा। इस परियोजना के तहत पीड़ित महिलाओं को कानूनी मानसिक काउंसेलिंग समेत अन्य मदद का प्रावधान भी किया गया है।


 

2023 तक राज्य को डायन प्रथा मुक्त करने की कोशिश: पद्मश्री छुटनी देवी 
डायन कुप्रथा पर सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री से सम्मानीत छुटनी देवी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपनी कहानी को विस्तार से साझा किया। छुटनी देवी ने बताया कि डायन के रुप में गांव के लोगों ने उन्हें भी मारने की कोशिश की। आज मैं करीब 145 दूसरी पीडित महिलाओं को मुख्यधारा में ला चुकी हूं जो अपने गांव में डायन के रुप में ब्राण्ड की जा चुकी थी। आने वाले दिनों में इस राज्य में हजारों छुटनी हमारे साथ होंगी और 2023 तक राज्य डायन कुप्रथा मुक्त होगा। 

कार्यक्रम में जेएसएलपीएस की सीईओ नैन्सी सहाय ने धन्यवाद देते हुए सभी अतिथियों के सुझावों पर अमल करने की बात कही। श्रीमती सहाय ने बताया की गरिमा परियोजना के जरिए राज्य में डायन प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए कार्य किया जाएगा। इस कार्यशाला के जरिए समेकित प्रयास किया जाएगा की सभी स्टेकहोल्डर्स मिलकर डायन प्रथा के खिलाफ काम करें। डायन प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए  साझा प्रयासों को गति देने हेतु इस कार्यशाला का आयोजन किया गया , जिसमें विभिन्न स्टेकहोल्डर्स जैसे झालसा, महिला बाल विकास विभाग, सीआईपी रांची, झारखण्ड पुलिस मिलकर डायन कुप्रथा को समाप्त करने पर रणनीति बनाएंगे। 


जेएसएलपीएस के द्वारा गरिमा परियोजना के जरिए  7 जिलों में डायन कुप्रथा उन्मूलन  के लिए कार्य किया जा रहा है। परियोजना का लक्ष्य डायन कुप्रथा से प्रभावित क्षेत्रों की महिलाओं का आर्थिक एवं सामाजिक विकास के द्वारा डायन कुप्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म कर, एक सभ्य समाज की स्थापना करना और हर महिला को गरिमामय जीवन दे पाना है। इस पहल के जरिए राज्य में डायन कुप्रथा की पीड़ित महिलाओं को काउन्सेलिंग, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक काउन्सेलिंग समेत अन्य सहायता के जरिए मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।  अब तक राज्य में करीब 933 डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं की पहचान की गई है। वहीं करीब 438 चिन्हित पीड़ित महिलाओं को सखी मंडल के जरिए आजीविका के विभिन्न साधनों से जोड़ा गया है। वहीं करीब 567 चिन्हित महिलाओं को मनोचिकित्सिय काउंसेलिंग भी उपलब्ध कराया गया है।