द फॉलोअप टीम, रांची:
कभी कान्हा की बांसुरी की मोहिनी धुन पर ब्रज गोपियां बेसुध हो जाया करती थीं, आज पंडित रोनू मजूमदार ने जब अपने सुपुुत्र हृषिकेश मजूमदार के साथ बांसुरी पर जुगलबंदी की, तो समां कुछ ऐसा ही बन गया। मैहर घराने के उस्ताद बांसुरी वादक पंडित मजूमदार ने राग पुरिया से महफिल की शुरुआत की और अंत बनारसी ठाठ पर हुआ। जिक्र ऑड्रे हाउस में चल रहे तीन दिवसीय कलांजलि नामक शास्त्रीय संगीत समारोह के दूसरे दिन का है।
पिचकारी न मारो नंद लाल हो सारी चुनरी….
शाम का आगाज जयपुर घराने की कथक फनकार आलोक पर्ना गुहा के प्रभावी कथक से हुआ। पिचकारी न मारो नंद लाल हो सारी चुनरी मोही रंग में भिगोए डारी…..के बोल पर उनकी समूची देह थिरक रही थी। अदभुत लय और ताल। द्रुत तीन ताल में छोटी बंदिश और कविता की तरह पढन्त की पेशकश ने श्रोताओं को भाव विवह्ल कर दिया। कार्यक्रम में चार चांद लगाने जयपुर से युवाओं की टोली पहुंची। अगुवाई की सारेगामापाा 2012-13 के फाइनलिस्ट उस्ताद मोहम्मद अमान और संगत दी नईम अल्लाहवाले, सलीम अल्लाहवाले और ज़ाकिर हुसैन आदि। राग रागेश्वरी विलम्बित ख्याल में द्रुत तीन ताल के गायन-वादन में उनका आगरा पटियाला घराना साकार ही हुआ।
आज उत्सव का अंतिम दिन
पंडित आनंद मोहन पाठक के गीत-गजलों ने फिजा में सुकून बख्शा, तो पंडित मोर मुकुट केडिया के सितार तो पंडित मनोज केडिया की उंगलियां सरोद पर झंकृत हुईं। आयोजन कला-संस्कृटति विभाग ने किया है। रविवार को अंतिम दिन है। कार्यक्रम में विभागीय सहायक निदेशक विजय पासवान, संयोजक चंद्रदेव सिंह, संचालक डॉ केके बोस, एस मृदुला,पी घोष और विनय सरावगी समेत कई सगीत प्रेेमियों ने लुत्फं उठाया।