डॉ. अबरार मुल्तानी, भोपाल:
कल्पना कीजिए कि आप 15 साल के हैं और अपने स्कूल में गणित की क्लास में बैठे हैं। पूरी क्लास को गणित के टीचर एक सवाल हल करवा रहे हैं। उन्होंने सवाल हल कर दिया, अधिकांश को समझ में आया और कुछ को नहीं। इन छात्रों ने शिक्षक से निवेदन किया कि आप हमें एक बार और समझा दीजिए। शिक्षक ने एक बार और समझा दिया। फिर भी कुछ विद्यार्थियों को उनमें आप भी शामिल हैं को सवाल का हल समझ नहीं आया। आप टीचर से कहते हैं कि सर एक बार और समझा दीजिए ना प्लीज। अब टीचर का पारा चढ़ जाता है। वो आपको डांटते हैं लेकिन, एक बार और समझा देते हैं। अब आपको समझ आए चाहे नहीं आप एक बार और समझाने का निवेदन तो अब नहीं कर सकते। शर्म की वजह से यह निवेदन अगली कक्षाओं में अन्य सवालों के लिए भी अब नहीं किए जाएंगे। क्योंकि, आप स्वयं को कम अक्ल या मंदबुद्धि सिद्ध करवाना नहीं चाहते। ऐसा विश्व के अनगिनत छात्रों के साथ प्रतिदिन होता आया है और हो रहा है। हमारी शिक्षा व्यवस्था दुर्भाग्य से अपने मकसद मंद बुद्धि छात्रों को तीक्ष्ण बुद्धि में परिवर्तित करने में कोई रुचि नहीं रखती। वह पहले से तीक्ष्ण बुद्धि वालों को शिखर पर पहुंचाने के लिए आतुर दिखती है और मंद बुद्धियों को लगभग कुचल देती है।
एक और कल्पना कीजिए कि, आप अपने स्कूल में हैं और आपके विज्ञान के अध्यापक अच्छे नहीं हैं। या वे बहुत बोरिंग तरीके से विज्ञान पढ़ाते हैं जबकि आपके मित्र के स्कूल के टीचर विज्ञान को बहुत ही मनोरंजक अंदाज में पढ़ाते हैं। लेकिन आपको तो स्कूल द्वारा थोपे गए टीचर से ही पढ़ना है। अब चाहे वह अच्छा हो तो आपकी किस्मत और बुरा हो तो आपकी किस्मत। लेकिन ऑनलाइन लर्निंग में आपके पास असीमित विकल्प आ जाते हैं। आप चाहे तो मुंबई की किसी श्रेष्ठ शिक्षक से विज्ञान पढ़ें या फिर लंदन या वाशिंगटन के किसी विश्व प्रसिद्ध शिक्षक से। अब विश्व के अच्छे शिक्षक आपसे सिर्फ एक क्लिक दूर हैं। ना आपको स्कूल प्रबंधन से गुज़ारिश करना है ना अपने प्रिंसिपल के सामने गिड़गिड़ाना है। बस आपको तो अपने मोबाइल पर या लैपटॉप पर या स्मार्ट टीवी पर एक क्लिक भर करना है और आपका पसंदीदा शिक्षक आपके सामने हाजिर हो जाएगा, विषय को मनोरंजक अंदाज में लिए हुए।
कुछ भी सीखने में हम अपनी ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करते हैं उसमें भी सबसे ज्यादा अपनी आंखों का। 70 से 80% सीखने के लिए हम आंखों पर निर्भर होते हैं। आंखें जो देखती हैं वह मस्तिष्क को बताती हैं। मस्तिष्क अपनी प्रोग्रामिंग के जरिए स्वयं में डाटा कलेक्ट करता है। यह डाटा ही होते हैं जिसे हम ज्ञान कहते हैं। अब यदि इस देखने की क्रिया को रोचक, मनोरंजक और यादगार बना दिया जाए तो बच्चे बहुत ज्यादा ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। वह भी बहुत कम प्रयास और तनाव के।
गांव और छोटे शहरों में अच्छे शिक्षकों की बेइंतहा कमी है। सरकारी स्कूल तो वैसे ही नाकारा घोषित हो चुके हैं। लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन इसका एक शानदार विकल्प प्रस्तुत करता है। वह अच्छे शिक्षकों की कमी को तुरंत पूरी कर देता है। क्योंकि, स्क्रीन कहीं पर भी ऑन की जा सकती है बस जरूरत है तो इंटरनेट की। अगर बच्चे की अंग्रेजी अच्छी हो तो फिर वह विश्व के किसी भी अच्छे शिक्षक से पड़ सकता है। अच्छी अंग्रेजी सीखने के लिए भी उसे किसी कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं है।
गांव और कस्बों के अभिभावकों के लिए शिक्षा के संबंध में एक समस्या यह भी है कि उन्हें अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु शहर भेजना होता है। शहर उनके गांव-कस्बों से थोड़ी या बहुत ज्यादा दूर हो सकते हैं। इसपर उन्हें शहरों के अभिभावकों की तुलना में ज्यादा खर्च करना होता है। उनके बच्चे भी उनसे दूर हो जाते हैं। लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन से यह समस्या भी तुरंत हल हो जाती है। क्योंकि अब बच्चा अपने घर पर अपने माता-पिता के पास रहकर उसी शिक्षक से पढ़ सकता है जिससे मेट्रो सिटीज़ का कोई अमीर बच्चा पढ़ रहा होता है।
हमारी आदतें और सोच एकदम नहीं बदलती बच्चे स्क्रीन की तरफ आकर्षित हो रहे हैं लेकिन अभिभावक अभी इतने ज्यादा इसे लेकर आश्वस्त नहीं दिखते (और सरकारें तो और भी ज़्यादा जड़ और आलसी होती हैं)। क्योंकि उन्होंने कभी ऐसा होते हुए नहीं देखा। उन्होंने स्वयं ऐसे शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण की है जो उनके सामने थे, उन्हें पढ़ाते थे, डांटते थे और कभी-कभी मारते थे। तो वे उसी को श्रेष्ठ मानते हैं। वर्तमान के शिक्षक भी इस नई व्यवस्था की कमियां बताते हुए मिल जाएंगे क्योंकि, ये उन्हें अप्रासंगिक और बेरोजगार जो बना सकती है। आप एक लर्निंग एप के एड देखिए जिसमें शाहरुख खान कहते हैं कि, "एप से मैथ्स सीखेगा तू? मेनू तो फूल डाउट है।" तो बच्चा कहता है कि, " जब तक मेरे डाउट क्लियर नहीं हो जाते ना, आई कीप गोइंग बैक टू इट, बैक टू इट...।" एक और एड में बच्चा कहता है कि, "मैं तो कंफर्टेबल हूं ऑनलाइन लर्निंग से लेकिन आपकी (शाहरुख की) उम्र के मेरे मम्मी पापा नहीं मानेंगे।" अन्य एड में शाहरुख कहते हैं कि, "मैथ्स के फॉर्मूले तो चेंज नहीं हुए हैं ना। तो बच्ची कहती है कि, "पापा मैथ्स का फॉर्मूला चेंज नहीं हुआ तो क्या पढ़ने का तरीका तो चेंज हुआ है ना।" फिर शाहरुख खान कहते हैं कि- "इनकी पढ़ाई के लिए हम इन्हें कितना कुछ कहते हैं, अब थोड़ी इनकी भी सुन लें।" ये एड बताते हैं कि अब पढ़ाई के लिए अभिभावकों की भी सोच बदली जाएगी।
पुनश्च: मेरी 5 साल की बेटी से मैंने पुछा कि तुम्हें सबसे अच्छे से कौन समझाता है? उसने फौरन जवाब दिया- 'डोरा'। यही है बदलाव, हो सकता है कि आने वाले वक्त में प्राइमरी क्लास के बच्चों में से अधिकांश के फेवरेट टीचर डोरा, डोरेमॉन, निंजा हथौड़ी या भीम हो। सुकरात ने कहा था कि, "ज्ञान क्रांति है।" और अब इस ज्ञान में बहुत बड़ी क्रांति आने वाली है। मेरी राय है कि आप भी तैयार रहिए इस परिवर्तन के लिए जिसे कोरोना ने बेहिसाब गति दे दी है। जड़ता छोड़िए। ज़माना बदल रहा है इसलिए आप भी अपनी सोच को बदलिए, अपने बच्चों के लिए।
(भोपाल निवासी लेखक पेशे से चिकित्सक हैं। सेहत और मनोविज्ञान पर कई किताबें प्रकाशित। जिसमें मन के लिए अमृत बूंदें, 5 पिल्स, मन के रहस्य, बीमारियां हारेंगी, ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों? आदि पुस्तकें शामिल हैं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।