द फॉलोअप टीम, चंडीगढ़:
यह एक ऐसी प्रेरक कहानी है, जिसमें परिश्रम है, जज्बा है और है देशप्रेम। बात हरियाणा के गौतम मलिक की है। गौतम आज वेस्ट मटेरियल से सालाना 80 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। उनकी परवरिश दिल्ली में हुई। 12वीं पास करने के बाद पुणे से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद दिल्ली लौट कर साल भर उन्होंने जॉब की। आगे जानिये उनकी कहानी।
अमेरिका जाकर भी जिंदा रहा देशप्रेम
गौतम मलिक आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए। वहीं नौकरी भी करने लगे। अधिकतर लोग विदेश जाने के बाद देश लौटने का ख्याल भुला देते हैं। लेकिन गौतम ने देशप्रम की भावना को ठेस पहुँचने नहीं दी। और वे अपने वतन लौट आए। पर लौटने से पहले वह ये सुनिश्चित करना चाहते थे कि भारत जा कर वहां करेंगे क्या।गौतम ने अमेरिका में देखा कि वहां के लोगों की डिजाइनिंग को लेकर बहुत क्रेज है। वहां के लोग पर्स और बैग भी फैशन ट्रेंड, पर्सनालिटी और अपनी ड्रेसिंग के हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। यहीं से उन्हें आइडिया मिला कि इंडिया लौट कर उन्हें किस क्षेत्र में काम करना है। उन्होंने इस संबंध में जानकारी जुटानी शुरू कर दी।
4 साल तक की खोज
गौतम मलिक ने भारत लौटने के बाद भी अपने इस काम को नहीं किया बल्कि इसे शुरू करने से पहले उन्होंने इससे ज़ुडी हर जानकारी इकट्ठी की। 44 वर्षीय गौतम को ये पता था कि हमारे देश में वेस्ट मटेरियल की कोई कमी नहीं है और उन्होंने तय भी कर लिया था कि उन्हें ऐसा कुछ शुरू करना है लेकिन इसके लिए वह जल्दबाजी नहीं करना चाहते थ। उन्होंने तय कर लिया कि जब तक वह इसकी पूरी प्रोसेस और मार्केट के बारे में अच्छे से जान नहीं लेते तब तक काम शुरू नहीं करेंगे। वह 2011 में भारत लौटे और पाया कि यहां के लोगों वेस्ट मटेरियल की अपसाइकिलिंग को लेकर जागरूक नहीं हैं, काम करने वालों की कमी भी है। वेस्ट मटेरियल जुटाना भी एक चुनौती है। इन सब बातो को सोचकर वे स्टार्टअप शुरू ना कर मार्केट बनाने का काम करने लगा। उन्होंने प्रोडक्ट के मांग को लेकर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पास के दुकानदारों से बातचीत करते हुए सर्वे करना शुरू कर दिया और इस प्रकार उन्होने मार्केट से अपने प्रोडक्ट की प्रतिक्रिया ली।
सपने को किया सकार
10 साल अमेरिका में रहने के बाद वापस अपने वतन लौटकर गौतम ने अपनी सपने को हकीकत की जमीन पर उतार ही लिया। उन्होंने 10 लाख रुपये की लागत से अपना स्टार्टअप शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अपनी वेबसाइट तैयार की, कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया। ऑफिस के लिए गुरुग्राम में जगह ली। इसके साथ ही गौतम ने बेरोजगार लोगो को रोज़गार दिया। इन्होंने बैग बनाने के लिए पुरानी कार की सीट बेल्ट, पुराने कपड़ों, गाड़ियों के टायर इत्यादि जैसे वेस्ट मटेरियल का इस्तमाल कर बैग बनाना शुरू किया। वेस्ट मटेरियल को दिल्ली के मायापुरी से मंगाते थे। इस एरिया को इंडस्ट्रियल वेस्ट के लिए जाना जाता है। फिर उन्होने अब आर्मी कैनवास, खराब हो चुके पैराशूट जैसे वेस्ट का भी प्रयोग शुरू कर दिया। आज उनकी प्रोडक्ट देश के साथ साथ कई अलग- अलग विदेश मे भी मांग की जा रही हैं। कूड़े या वेस्ट मटेरियल को अपसाइकल कर हैंड पर्स और बैग तैयार करने का नया काम शुरू किया। आज समय के साथ उन्होंने इतनी तरक्की कर ली कि इनके प्रोडक्ट की मांग भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है।
आज विदेशो में भी बढ़ा क्रेज
आज देश के अलावा गौतम के प्रोडक्ट विदेश में जैसा अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, और जापान जैसे देशों में भी मांग की जा रही हैं। गौतम ने अपने इस कंपनी से पहले साल 20 लाख रुपये तक का टर्नओवर पाने में कामयाब रहे थे। इसके बाद, हर साल इनका टर्नओवर लगभग 18% तक बढ़ा है। गौतम के इस कंपनी को अलग- अलग संगठनों तथा दूसरी कंपनियों से भी बैग बनाने के ऑर्डर मिलते हैं। गौतम बताते हैं कि पिछले पांच सालों में उनकी कंपनी जैगरी बैग्स से लगभग नौ हजार ग्राहक जुड़े हैं। इनमें लगभग छह हजार ग्राहक ऐसे हैं जो लगातार उनसे ही बैग खरीद रहे हैं। लोग कहा करते थे कि पैसा हमारे आसपास बिखरा पड़ा है, और गौतम ने इस बात कि बस उसे देखने के लिए एक अलग नज़रिए होनी चाहिए।