द फॉलोअप टीम, कोलकाता:
इस तस्वीर में अखबार लेकर जो एक महिला खड़ी है, उसका नाम है लक्ष्मी देवी। यह मूलतः बिहार के छपरा जिले की हैं। बचपन में ही परिवार के साथ कोलकाता चली आईं थी। चालिस सालों से कोलकाता के बहुबाजार थाने के मलागा लाइन इलाके में एक झुग्गी में रहती हैं, जिसका वो हर माह 500 रुपए किराया देती हैं। उनकी शादी बिहार के रहने वाले चंद्रदेव प्रसाद से हुई थी, जिनका निधन साल 2009 में हो गया। बकौल उनके, न जमीन है, न ही उनका अपना घर कोई। तीन बेटे और तीन बेटी की शादी कर चुकी हैं। दोनों बेटे कूरियर का समान ढोकर 200 से 300 रुपए रोजाना कमा लेते हैं। जबकि ‘आत्मनिर्भर भारत, आत्मनिर्भर बंगाल’ के नारे के साथ अखबारों में छपे विज्ञापन में वो कहती हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना में मुझे मिला अपना घर। सर के ऊपर छत मिलने से करीब 24 लाख परिवार हुए आत्मनिर्भर। साथ आइये और एक साथ मिलकर आत्मनिर्भर भारत के सपने को सच करते हैं।
लगभग सभी प्रमुख अखबारों में छपा विज्ञापन
लक्ष्मी देवी को मिला सरकारी आवास वाला विज्ञापन कोलकाता और आस पास के अखबारी संस्करणों में 14 और 25 फरवरी को छपा है। इनमें हिंदी के प्रभात खबर और सन्मार्ग समेत दूसरे कई बांगला भाषी अख़बार भी हैं। इस विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक मुस्कुराती तस्वीर के साथ लक्ष्मी की तस्वीर भी छपी थी। यह विज्ञापन अख़बारों के पहले पेज के आधे भाग में छपा था। न्यूज़लॉन्ड्री की खबर के मुताबिक 48 वर्षीय लक्ष्मी ने अख़बार में जबसे अपनी तस्वीर देखी है तब से परेशान हैं। उनको इस बात की जानकारी तक नहीं कि उनकी यह तस्वीर कब और किसने ली थी। एक दिन वह पूरा अख़बारों के दफ्तरों का चक्कर काटती रहीं और पूछती रहीं कि मेरी तस्वीर क्यों छाप दी आपने। लक्ष्मी को लगता है कि यह फोटो अख़बार वालों ने छापी है जबकि यह विज्ञापन भारत सरकार द्वारा जारी किया गया है।
क्या कहती हैं 500 रुपए के किराए की झुग्गी में में रहने वाली लक्ष्मी
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम अंधेरी गली में स्थित उनके घर पहुंची, तो दीवार कई जगहों पर जर्जर स्थिति में थी। कमरे के एक कोने में कपड़े टंगे थे, दूसरे कोने में बर्तन रखे हुए थे। लक्ष्मी देवी की बहू अनीता देवी कहती हैं, ‘‘हम लोग बहुत कष्ट से रहते हैं. 100 रुपये लीटर के हिसाब से केरोसिन तेल खरीदकर स्टोव पर खाना बनाते हैं।’’ लक्ष्मी रोने लगती है. वो बताती हैं, ‘‘मेरे पति बंगाल बस सेवा में काम करते थे। उनकी मौत के बाद 10 साल तक मैं दौड़ती रही लेकिन मुझे काम नहीं मिला। उसके बाद इधर-उधर साफ-सफाई का काम करने लगी। अभी मैं एक पार्क में झाड़ू मारने का काम करती हूं जहां मुझे 500 रुपए महीने के मिलते हैं। मेरे पति के निधन के बाद मुझे दो हज़ार रुपए की पेंशन भी मिलती है।’’ लक्ष्मी के सबसे छोटे बेटे राहुल प्रसाद 25 वर्षीय बताते हैं, ‘‘सरकार से हमें गैस तो नहीं मिली और हम खुद से इसलिए नहीं खरीद पाए क्योंकि हम खोलाबाड़ी में रहते हैं। यहां गैस रखना मना है।’’ राहुल बताते हैं, ‘‘अपना घर नहीं है तो शौचालय कैसे होगा। शौच के लिए पूरा परिवार कॉरपोरेशन के शौचालय में जाता है।"
भैया मानती हूं मोदीजी मुझे घर दें ताकि बुढ़ापे में मैं घर में रह सकूं
जब लक्ष्मी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था, ‘‘इतने बड़े आदमी से मैं क्या बोल सकती हूं। मैं उनसे बात कैसे कर सकती हूं। उनको भैया मानती हूं। चाहती हूं कि मोदीजी मुझे घर दें ताकि बुढ़ापे में मैं घर में रह सकूं. बचपन से फुटपाथ पर रह रही हूं।''