तरुण कुमार, रांची :
हम सभी जानते हैं कि जन गण मन राष्ट्रगान को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। इसे गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा था। 24 जनवरी 1950 को इसे राष्ट्रगान के रूप में स्वीकारा गया। यह गीत सबसे पहले टैगोर ने 1911 में पांच स्टेंज़ा के साथ ब्रह्मो गीत(भजन) के रूप में लिखा था, भारतो भाग्यो बिधाता। उसी साल पहली बार लोगों के बीच 27 दिसंबर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया। गीत को सरला देवी चौधरानी ने गाया था। यह वही सरला देवी चौधरानी थीं जो अक्सर कांग्रेसके अधिवेशनों में वन्देमातरम भी गाया करती थीं।
टैगोर ने 'जन गण मन' का अनुवाद अंग्रेजी में 'भारत के प्रात:गीत' के रूप में किया था जो ईश्वर और मातृभूमि को सम्बोधित था। उन्होंने इस गान को आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के मदनापाल्ले कस्बे में संगीतबद्ध किया था।
टैगोर ने ही अपने इस गीत का 1919 में अंग्रेजी अनुवाद ‘दि मॉर्निंग सांग ऑफ इंडिया’ किया था। इसके बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के विशेष अनुरोध पर अंग्रेजी संगीतकार हर्बट मुरिल्ल ने इसे ऑर्केस्ट्रा की धुनों पर भी गाया था। जानिये पूरी कहानी।
'तत्वबोधिनी' में गीत 1912 में छपा
ब्रह्मो समाज की पत्रिका 'तत्वबोधिनी'(जिसके संपादक टैगोर थे) में यह गीत 1912 में छपा। बहुत समय तक इस गीत का प्रचार-प्रसार सिर्फ ब्रह्मो समाज के अनुयायियों तक ही सीमित रहा। कलकत्ता के बाहर यह गीत पहली बार 1919 में सुनाई दिया, जब स्वयं गुरुदेव ने इसे आंध्रा प्रदेश के एनी बेसंट थियोसोफिकल सोसाइटी के एक अधिवेशन में लोगों की फरमाइश पर सुनाया। आग्रह किया गया तो गुरुदेव ने इस गीत का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी कर दिया था।
नेता सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के मुस्तकबिल का तराना बताया
जन गण मन संस्कृतनिष्ठ बांगला में लिखा गया था। नेता सुभाष चन्द्र बोस ने गीत को भारत के मुस्तकबिल का तराना बताया था। उन्होंने इसका अनुवाद आसान हिन्दुस्तानी में करवाया।उन्होंने इसके अनुवाद की ज़िम्मेदारी आज़ाद हिन्द रेडियो के मुमताज़ हुसैन और INA के कर्नल आबिद हसन सफ्रानी को दी थी। इस तरह गुरुदेव का भारतो भाग्यो बिधाता, नेताजी के सब सुख चैन में बदल गया। नेताजी को लगता था की जन गण मन ही वो गीत है जो अपने बच्चों के साथ भाषाई, धार्मिक, प्रांतीय विविधता को एक सूत्र में बांधने का काम करता है। इस गीत के बोल हर भारतवासी को एक सतह जोड़ने का काम करते हैंं। नेता जी का कहते थे कि राष्ट्र गान ऐसा होनी चाहिए जिसका संगीत स्वर ऐसा हो कि मेरी तरह भारी आवाज़ वाले लोग भी उसे आसानी से गा सकें। दूसरी बात यह कि वो मानते थे कि अक्सर विदेशों में औपचारिक समारोह पर सिर्फ़ राष्ट्रगान की धुन ही बजाई जाती है। उसे गाया नहीं जाता। इसलिए शब्दों की बजाय धुन ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए धुन ऐसी होनी चाहिए जो बजने पर अपनी छाप छोड़े। इस गीत को यूं तो गुरुदेव पहले ही संगीतबद्ध कर चुके थे पर नेता जी, गीत की धुन कुछ ऐसी चाहते थे जो सोए हुए भारतीयों को भी जगा दे। उन्हीं के कहने पर इस सुख चैन की वर्षा भारत भाग्य है मेरा गीत की धुन को कप्तान राम सिंह के बैंड ने एक मार्टियल टच दिया था। 11 सितंबर 1942 के दिन, जर्मनी के शहर हैम्बर्ग में जर्मन इंडियन सोसाइटी की स्थापना के अवसर पर सुभाष चन्द्र बोस की उपस्थिति में भारत के राष्ट्र गान के तौर पर ये धुन जब पहली बार बजाई गई, तोे हर भारतीय और जर्मन मोहित हो गए थे। राष्ट्रगान की धुन जेम्स एस कजिन ने बनाई थी।
24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान घोषित
16 अगस्त 1947 आज़ाद भारत में जब पहली बार पंडित जवाहलाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा फैराया, तो उस आजादी के जश्न में INA के कप्तान राम सिंह और उनके पूरे बैंड को खास तौर पर बुलाया गया। जैसे ही आज़ाद भारत की आज़ाद फिज़ा में कप्तान राम सिंह और उनके बैंड ने धुन बजाई, भारतीयों का रोम-रोम खिल उठा। 24 जनवरी 1950 के दिन वो समय भी आया जब भारत के प्रथम राष्ट्पति राजेंद्र प्रसाद ने विधिवत् जन गण मन को देश का राष्ट्रगान घोषित कर दिया। लेकिन स्वतंत्र भारत का राष्ट्रगान घोषित करने से पहले इसपर तमाम विचार-विमर्श व्यापक बातचीत हुई थी। पूरी प्रक्रिया का पालन हुआ था।
कोंस्टीटूऐंट असेंबली में पक्ष में बोले नेहरू
भारत के सभी प्रांतों के राज्यपालों ने अपने-अपने प्रीमियरस की सहमति से इस बारे में राय दी। एक प्रांत को छोड़ बाकी सबने जन गण मन के पक्ष में ही अपनी राय दी थी। कोंस्टीटूऐंट असेंबली में भी इसके पक्ष में बोलते हुए नेहरू ने वही बातें दोहराईं, जो कभी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के राष्ट्रगान के रूप में अपनाए जाने पर कही थीं। इस तरह अपने आसान बोलों और जोशीली धुन के कारण जन गण मन को हर आम और खास की आज़ाद भारत के राष्ट्रगान के रूप में एक व्यापक स्वीकृति मिली।
गीत से जुड़ा जॉर्ज पंचम का मामला
अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि जन गण मन जार्ज पंचम के स्वागत में टैगोर ने लिखा था। जबकि सच यह है कि ऐसा एक बड़ी गलतफहमी के सबब हुआ। दरअसल जॉर्ज पंचम की ताजपोशी के वक्त किन्हीं रामभज चौधरी ने "बादशाह हमारा" नाम का गीत समारोह में गाया गया था। अगले दिन विलायत के कुछ अखबारों में इसे गुरुदेव के नाम से जोड़ दिया। इस छोटी सी अख़बारी गलती ने बड़े समय के लिए एक विवाद को जन्म दे दिया। अफ़वाह थी कि रविन्द्र नाथ टैगोर ने ये गीत जॉर्ज पंचम के महिमामंडन में लिखा था। बाद में जब रबीन्द्रनाथ टैगोर को सर की उपाधि से नवाजा गया तो इस अवधारणा ने और ज़ोर पकड़ा।
निद्रितो भारतो जागे यानी सोता भारत जाग गया
गुरुदेव ने इस बात का कभी खंडन भी नहीं किया था। गुरुदेव ने 10 नवंबर 1937 पुलिन बिहारी सेन को लिखे अपने एक खत में लिखते हैं, कि इस अफ़वाह का खंडन उन्होंने कभी नहीं किया क्योंकि ऐसा करना उनके लिए एक तौहीन, एक अपमान के बराबर था। वो आगे लिखते हैं कि उनकी कलम से भारत के भाग्य विधाता के रूप में कोई जॉर्ज पंचम, शष्टम या सप्तम कभी नहीं हो सकता। इस खत में वो ये भी मानते हैं कि उनके एक अंग्रेज़ मित्र जो कि सरकार में एक उच्च पद पर आसीन थे, उन्होंने ज़रूर जॉर्ज पंचम की ताजपोशी के लिए गुरुदेव से ऐसा गीत लिखने को कहा था, पर इसे गुरुदेव ने तुरंत ही ठुकरा दिया था। इस गीत के आखिरी स्टैन्जा में एक लाइन थी: ‘निद्रितो भारतो जागे’ मतलब ‘सोता भारत जाग गया है।’ इसका ज़िक्र, जवाहर लाल नेहरू ने अपनी ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट ’ स्पीच में भी किया था.
(तरुण कुमार द फॉलोअप में इंटर्नशिप कर रहे हैं।)