द फॉलोअप टीम, डेस्क:
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार। जिन पर मुखर व्यक्तित्व के कारण राजद्रोही होने का ठप्पा लगा था तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह से बेगूसराय में नाकामी भी। कन्हैया पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद महेश गिरि और 2016 में एबीवीपी की शिकायतों के बाद संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने के खिलाफ आंदोलन की वजह से राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। भाकपा के कट्टर समर्थक और संघ के कट्टर विरोधी कन्हैया कुमार का राजनीतिक जीवन शुरुआत से ही उथल-पुथल के दौर से गुजरता रहा। फिलहाल कन्हैया का अस्थायी राजनीतिक पता भाकपा यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी है, जहां से इस बिहारी नेता के किसी और पाले में पलायन करने की खबरे हर रोज आ रही है।
बिहार कांग्रेस के लिए 28 सितंबर होगा ख़ास
अंदरखाने से फिलहाल आई खबर ये है की आगामी 28 सितम्बर को 37 वर्षीय कन्हैया, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के समक्ष कॉंग्रेसिया हो जायेंगे। पहले कयास ये भी लगाए जा रहे थे की कन्हैया 2 अक्टूबर यानी गांधी की जयंती पर कांग्रेस ज्वाइन करेंगे। बहरहाल, प्राप्त जानकारी के मुताबिक ना सिर्फ कन्हैया कुमार बल्कि गुजरात के वडगाम विधानसभा से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी की भी कांग्रेस में शामिल होने की खबर है। बताया जा रहा है कि कन्हैया और जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस पाले में ले जाने के पीछे राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का हाथ है। खबर ये भी है कि प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार की कई दौर की बैठकें भी दिल्ली में स्थित कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सरकारी आवास पर हो चुकी है।
गठबंधन से सहारे पर हैं कांग्रेस के दीवाने
243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में फिलहाल कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में महज 19 सीटें ही आ पाई थी। बिहार में कांग्रेस नेतृत्व के आभाव में पिछले कई वर्षों से लगातार कांग्रेस के वोट शेयर और विधानसभा सीटों में भी गिरावट आई है। पिछले यानी 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर भी महज 9.5 फीसद ही रहा, जिसकी वजह से पार्टी मात्र 19 सीटें ही जीत पाई। इससे पहले भी साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर मात्र 6.9 फीसद ही रहा था पर पार्टी 27 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी।
बिहार में पिछड़ती जा रही है कांग्रेस पार्टी
बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अब तक, करीब 20 बार कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे हैं। सन 1990 में कांग्रेस से आखिरी मुख्यमंत्री रहे जग्गन्नाथ मिश्र के बाद कांग्रेस बिहार में पिछड़ती ही रही। कांग्रेस के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व के आभाव में देश की सबसे बड़ी पार्टी का आज हश्र ये है कि पार्टी को क्षेत्रीय पार्टियों संग समझौता करना पड़ रहा है। शायद कांग्रेस को उम्मीद रही होगी कि कन्हैया के आने का पार्टी को फायदा होगा।
कन्हैया कांग्रेस के लिए क्यों होंगे खास
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि फिलहाल कांग्रेस में, कन्हैया के सामने संभावनाओं का पूरा आसमान है। कन्हैया की हाज़िर जवाबी और उनकी शैक्षिक योग्यता के सामने कई बार संघ के पढ़े-लिखे प्रवक्ता भी घुटने टेक देते हैं। जाहिर है कांग्रेस को बिहार में एक पढ़ा लिखा, नौजवान और यंग अपीलिंग नेता मिल गया है, जिसके सहारे कांग्रेस बिहारी युवाओं को नए सिरे से जोड़ने की कोशिश में लगेगी। खैर, देखना दिलचस्प होगा की कन्हैया की भूमिका बिहार कांग्रेस में क्या होगी। सवाल ये भी होगा की कांग्रेस नेता राहुल और सोनिया गांधी के उम्मीद पर उनका ये खरा सोना बिहार के लिए कितना कीमती होगा