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गांव की हाट में कभी इमली बेचने वाली झारखंड की इस बिटिया की क्यों हो रही है चर्चा

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द फॉलोअप टीम, रांची:
कभी गांव की हाट में इमली बेचने वाली लड़की आज इटली, जर्मनी और स्विटजरलैंड में लेक्चर देती है। अपनी कविताओं से विदेशियों को झकझोरती है। बात झारखंड की बेटी जसिंता केरकेट्टा की है। उनकी कविताओं में उनकी जिंदगी के दर्द को महसूस किया जा सकता है। जिसकी शुरुआत पश्चिमी सिंहभूम जिला के मनोहरपुर प्रखंड के खुदपोस गांव में होती है। जहां छत के नाम पर खपरैल घर। लेकिन दो जून की रोटी के लिए वनोपज को जंगलों में ढूंढना और हाट में बेचना। इसी बीच यह लड़की गीत गुनगुनाया करती। पढ़ने में कभी कोताही नहीं करती। उसकी लगन को मां की प्रेरण ही नहीं मिली, बेटी की पढ़ाई के लिए मां ने जमीन तक गिरवी रख दी। जिससे मिले सात हजार रुपए जसिंता को थमाए और बोली, जा बेटा अपने सपने जी ले। जसिंता रांची चली आई। लेकिन इतना आसान कहां होता है, शहर में रहकर पढ़ना। सेंट जेवियर्स कॉलेज के मास कम्युनिकेशन में दाखिला तो हो गया। अब फी के पैसे कहां से आए। जसिंता ने घूम-घूमकर लोगों से मदद मांगी। रहने-खाने के खर्च के लिए स्कूलों में अग्निशमन यंत्र बेचे। अपर बाजार में सुरक्षा गार्ड कंसल्टेंसी सेंटर में काम भी किया। ढाई हजार रुपए पगार पर एक स्थानीय टीवी चैनल में ऊर्जा खपाई। तीन महीने तक वेतन न मिला, तो कई रात भूखे पेट गुजारी। पर हौसला के पंख को कभी मंद न होने दिया। 
झारखंड की इस बिटिया को इस बार के जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान से नवाजा जाएगा। इस निर्णय की जानकारी सरोज स्मृति न्यास,ग्वालियर की सचिव मान्यता सरोज ने दी। निर्णायक मंडल ने कहा है कि जसिंता ने आदिवासी जगत की सच्ची और निर्मल अनुभूतियों और उनकी पीड़ाओं तथा उनसे जूझने के साहस को नए शब्द और व्यंजनाएँ दी हैं।  उनके सृजन में  वैश्विक दृष्टिकोण है। इसलिए बहुत ही कम समय में उनकी कविताओं ने अंतर्राष्ट्रीय पहचान हासिल की है।  



अबतक इन्‍हें मिल चुका है सम्‍मान
जनकवि मुकुट बिहारी सरोज स्मृति सम्मान प्रति वर्ष 26 जुलाई को ग्वालियर में एक भव्य समारोह में दिया जाता है। अभी तक यह सम्‍मान सीताकिशोर खरे (सेंवढ़ा), निर्मला पुतुल (दुमका झारखण्ड), निदा फ़ाज़ली (मुम्बई), कृष्ण बक्षी (गंज बासौदा), अदम गौंडवी (गोंडा), उदय प्रताप सिंह (दिल्ली-मैनपुरी), नरेश सक्सेना (लख़नऊ), राजेश जोशी (भोपाल), डॉ. सविता सिंह (दिल्ली), राम अधीर (भोपाल), प्रकाश दीक्षित (ग्वालियर), कात्यायनी (लख़नऊ), महेश कटारे 'सुगम' (बीना), शुभा तथा मनमोहन (रोहतक)  मालिनी गौतम (गुजरात) और विष्णु नागर (नई दिल्ली) को हासिल हो चुका है। इस बार के समारोह के सार्वजनिक आयोजन की तिथि कोविड की स्थिति को देखते हुए शीघ्र ही घोषित की जाएगी। 



पत्रकार रहीं जसिंता सोशल एक्‍टीविस्‍ट भी हैं
जसिंता के अब तक उनके  दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं। पहला कविता संग्रह " अंगोर " आदिवाणी , कोलकाता से और "जड़ों की ज़मीन " भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित है। पहले  संग्रह का अनुवाद संथाली, इंग्लिश, जर्मन, इतालवी, फ्रेंच में भी हो चुका है। तीसरा संग्रह "ईश्वर और बाज़ार " राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशाधीन है। 2020 में  उन्हें  हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने उनके अनुभवों को सुनने-जानने  के लिए आमंत्रित किया था। 2014 में एशिया इंडीजिनस पीपुल्स पैक्ट, थाइलैंड ने उन्हें वॉयस ऑफ एशिया के रिकॉगिनेशन अवार्ड से सम्मानित किया। वर्तमान में वे मध्य भारत के आदिवासी इलाकों में घूम घूम कर स्वतंत्र रूप से पत्रकरिता करती हैं। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति के संरक्षण और आदिवासी लड़कियों की शिक्षा के लिए गांवों में सामाजिक काम भी करती हैं।