द फॉलोअप टीम, दिल्ली:
भारत एक वेलफेयर स्टेट है। लेकिन देश के उच्च न्यायालय के पास एक अजूबा केस आया है। जिसकी सुनवाई करते हुए जजों ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या अल्पसंख्यक कल्याण के लिए सरकारी अनुदान देना असंवैधानिक है। कोर्ट ने सरकार से एक सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
क्या है मामला
नीरज शंकर सक्सेना समेत 6 लोगों ने 2019 में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी। जिसमें कहा गया है कि अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र की 14 विशेष योजनाओं का संचालन गलत है। इन योजनाओं के लिए सरकारी खजाने से 4,700 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। जबकि ऐसा कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुुुसार करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किसी धर्म विशेष के लिए नहीं किया जा सकता है। लेकिन सरकार अल्पसंख्यक वर्ग के उत्थान के नाम पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर रही है। यह बहुसंख्यक वर्ग के समानता के मौलिक अधिकार का भी हनन है।
डेढ़ साल से सरकार ने नहीं दिया जवाब
कोर्ट ने केंद्र सरकार से जनवरी 2020 में ही याचिका पर जवाब मांगा था। लेकिन अब तक सरकार ने हलफनामा दाखिल नहीं किया है। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि डेढ़ साल से सरकार ने मामले में जवाब दाखिल नहीं किया है। इस पर एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 1 हफ्ते में जवाब दाखिल करने की बात कही। जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसकी अनुमति दे दी। अगली सुनवाई 23 जुलाई को हो सकती है।