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कलांजलि: संगीत की शास्त्रीयता की लय-ताल हुई कमाल

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द फॉलोअप टीम, रांची:
रांची का ऑड्रे हाउस शुक्रवार की शाम कई ऐतिहासिक पल का गवाह बना। तबले से शुरू संतूर से परवान चढ़ती संध्या घुंघरू वादन तक शिखर पर पहुंची। मुंबई से रांची पहुंची पंडिता अनुराधा पाल विश्व  की पहली महिला तबला वादक हैं। पंजाब घराने की अनुराधा मशहूर तबला वादक उस्तााद अल्ला रक्खा और जाकिर हुसैन की शिष्या  हैं। पखावज के आविष्कारक भगवान गणेश की तबला-वंदना के साथ अनुराधा ने जगन्नााथपुर मंदिर की घंटी का एहसास भी कराया। बाजार पहुंचे पति-पत्नी  की नोंकझोंक भी तबले पर झंकृत उनकी उंगलियों ने जीवंत की। हिरामन मित्रा ने हारमोनियम पर संगत दी।

तीन दिनी सांस्कृतिक उत्सव का आगाज
शमा कला-संस्कृिति विभाग के निदेशक दीपक शाही, सहायक निदेशक विजय पासवान, हिंदी प्राध्याजपक डॉ कमल कुमार बोस आदि ने रोशन की। प्रोग्राम का लाइव प्रसारण विभाग के फेसबुक पेज पर हुआ। बावजूद महफिल की शोभा बढ़ाने के लिए संयोजक चंद्रदेव सिहं, हिंदी प्राध्याहपक डॉ डीके पांडेय समेत कई प्रमुख लोग मौजूद थे। बात कलांजलि नामक शास्त्रीय संगीत समारोह के आगाज की है। आयोजन कला-संस्कृ।ति विभाग ने की है। तीन दिनी यह सांस्कृतिक उत्सव 28 फरवरी का विराम लेगा।



अनुराधा सिंह के घुंघरू ने कथक में थिरकाया
रायगढ़ घराने की अनुराधा सिंह के कथक ने समां बांधा इसलिए कि उनके पैरों में बंधे घुंघरू की भाषा कमाल की रही। दरअसल घुंघरू वादन की शुरुआत ही दुनिया में उन्होंंने की। उनके नाम डेढ़ घंटे घुंघरू वादन करने का विश्वर रिकार्ड है।
 


पदमश्री सतीश व्यास के संतूर को मिला तालियों का ताल
संतूर वादन में बेहद प्रतिष्ठित नाम पदमश्री पंडित सतीश व्यास से भी रांचीवासी रूबरू हुए। उनकी उंगलियां जब संतूर के तारों से जुगलबंदी करने लगीं, तो सभागार बस तालियों का ताल ही तो देता रहा। इनके अलावा शाम को सुरमई बनाने में उस्तार गौहर खान की शहनाई और पंडित सुप्रियो दत्ता के गायन का भी योगदान रहा।


कल और परसों क्‍या होगा
दूसरे दिन 27 फरवरी को पंडित आनंद मोहन पाठक और उस्ताधद मोहम्मद अमान का गायन होगा। सितार पंडित मोर मुकुट केडिया तो सरोद पर पंडित मनोज केडिया की उंगलियां झंकृत करेंगी। तबला सप्तरक की प्रस्तुुति उस्तांद सलीम अल्लााहवाले देंगे। वहीं पंडित रोजु मजूमदार और हृषिकेश मजूमदार की बांसुरी की धुन फिजा को सुरम्यि बनाएगी। आलोकपरना गुहा का कथक तो होगा ही।

अंतिम दिन 28 फरवरी की शाम राम यमन की बांसुरी, पंडित अंजन साहा के सितार, पंडित हिंडोल मजूमदार के तबले से सुरमई बनेगी। इसे शिखर पर पहुंचाएगा पंडित सोमनाथ राय का घटम और पंडित रामदास का पखावज। पंडित सतीश शर्मा और सानिया पढेंकर का गायन भी होगा।