द फॉलोअप टीम, गढ़वा:
इस वीडियो को ध्यान से देखिये। सफेद यूनिफॉर्म में कमर भर पानी में नदी पार करती ये महिला स्वास्थ्यकर्मी हैं। ये इस वक्त देश का सबसे जरूरी काम, वैक्सीनेशन के लिए गांव में जा रही हैं, पर लगता है जनप्रतिनिधियों या प्रशासन को ये काम इतना जरूरी नहीं लगता। बताते हैं क्यों। इस महिला स्वास्थ्यकर्मी का नाम नीलम सिन्हा हैं। देश में वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत 16 जनवरी 2021 को हुई थी। बीते 9 महीने से नीलम रोज ऐसे ही नदी पार करके वैक्सीनेशन के लिए जाती हैं।
गढ़वा के सगमा प्रखंड का है मामला
वैसे ये तस्वीर झारखंड के गढ़वा जिला अंतर्गत सगमा प्रखंड की है। इस गांव तक जाना हो तो मुख्य सड़क से उतरने के बाद ये कच्चा रास्ता ही एकमात्र जरिया है। कीचड़ से भरा ये रास्ता ही मुश्किल नहीं है बल्कि आगे एक नदी भी पार करनी पड़ती है। नदी में पुलिया नहीं है। गांव जाना है तो कपड़ा समेटिये और खुद को धाराओं के हवाले कर दिया। साथ में गाय भैंसे भी कंपनी देंगी।
वैक्सीनेशन अभियान में होती है मुश्किल
इस समय पूरे देश में वैक्सीनेशन अभियान जारी है। प्रधान सेवक के बर्थडे वाले दिन ढाई करोड़ लोगों को टीका लगाकर सरकार अपनी पीठ थपथपा चुकी है, लेकिन इसमें धरातल पर कितनी मुश्किलें झेलनी पड़ी, इसका हिसाब कौन देगा। यहां वैक्सीनेशन के लिए एएनएम दीदी को पहले कई किमी तक कीचड़ भरे रास्ते पर चलना पड़ता है। फिर ये नदी पार करनी पड़ती है। स्वास्थ्यकर्मी नीलम सिन्हा ने द फॉलोअप के संवाददाता को बताया कि वो बीते 1 साल से रोज नदी पार करके लोगों को टीका लगाने जाती है। मानसून का समय है। बारिश की वजह से अक्सर इस नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। ऐसे हालात में भी हमें जोखिम उठाकर नदी पार करना पड़ता है, क्योंकि सरकार ने टीकाकरण का लक्ष्य तय कर दिया है।
कच्चे रास्ते से तय करना पड़ता है सफर
नीलम कहती हैं कि यदि मुझे सरकार द्वारा तय लक्ष्य को पूरा करने के लिए जान भी देना पड़े तो दूंगी क्योंकि ये मेरी ड्यूटी है। वो कहती हैं कि उनके 3 बच्चे हैं। जब भी जोखिम भरे हालात में नदी पार करती हूं तो परिवार की चिंता सताती है। उन्होंने बताया कि एक रास्ता और है। उसके लिए 2 किमी चलना पड़ेगा। वहां भी नदी पार करना ही पड़ता है। नीलम कहती हैं कि कई बार एक अदद पुल की मांग की जा चुकी है लेकिन कोई नहीं सुनता। नीलम के पति भी वहां मौजूद थे। उन्होंने कहा कि पत्नी काफी जोखिम उठाती है। मुझे चिंता लगी रहती है, इसलिए मैं यहां आया हूं ताकि उसकी मदद कर सकूं।
खटिया में मरीजों को ले जाना पड़ता है
गांव वालों ने बताया कि लोग भले ना समझ पाएं लेकिन हमारे लिए जिंदगी नारकीय हो गई है। यदि गांव में कोई बीमार पड़ जाये तो उसे अस्पताल पहुंचाने का कोई साधन नहीं है। पुलिया औऱ सड़क नहीं होने की वजह से एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकती। तुरंत अस्पताल पहुंचाना हो तो खटिया की एकमात्र जरिया है। यदि बारिश हो रही हो या नदी का जलस्तर बढ़ा हो तो खटिया भी संभव नहीं है। कई बार गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे ही खटिया में ले जाना पड़ता है। जच्चा और बच्चा की जान को खतरा रहता है।
जनप्रतिनियों ने पुलिया बनाने का प्रयास किया
वैसे भी नेताजी के पास वादों और घोषणाओं का फिक्स कोटा होता है। कोटे में पुल, पुलिया, सड़क, बिजली और हेल्थ जैसी चीजें हीं चुनाव जीतने की गारंटी होती है। अब समझदार नेताजी पुल-पुलिया, सड़क औऱ अस्पताल बनाकर कोटे को ऐसे थोड़े ना खर्च करेंगे। अगला चुनाव में क्या झाल बजाएंगे। ओह सॉरी। ये तो नेताजी ने हाल ही में बजा लिया है। बुझे कि नहीं।