अभिषेक शास्त्री
वर्षों से लोग यही मानते आ रहे हैं कि सिमडेगा हॉकी की नर्सरी है। लेकिन सिमडेगा हॉकी की बगिया है और हॉकी की यूनिवर्सिटी है। हॉकी यहां की संस्कृति है, यहां का "अंडर करंट" है। इस करंट को महसूस करना है तो आपको 10 मार्च से सिमडेगा में शुरू हो रहे महिला हॉकी सब जूनियर के मैच देखने यहां के एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम में बतौर दर्शक शामिल होना होगा। जब 60 हजार यार्ड के मैदान में 22 खिलाड़ी अपने हॉकी स्टिक से सफेद बॉल का पीछा कर रहे होंगे तो उनके साथ सिमडेगा के लोगों का जुनून और जज्बा भी दौड़ रहा होगा। यकीन मानिए जोश और उल्लास के तेज स्वर को सुन कर आपकी भी नसों में उबाल आ जायेगा। मैदान में टीम कोई भी हो, हारे कोई भी टीम लेकिन जीतेगा तो सिमडेगा में हॉकी का उत्साह ही। यही वह अंडर करंट है जो सिमडेगा और हॉकी को एक दूसरे से जोड़े रखता है।
दरअसल, यह जानना भी दिलचस्प होगा की हॉकी सिमडेगा के लिए क्यों खास है। इसके लिए कुछ आंकड़े हैं जो तथ्य को बेहतर ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं। सिमडेगा में 60 से अधिक नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी हुए हैं। हर साल यह संख्या बढ़ती ही जाती है। इनमें दो खिलाड़ी ओलम्पिक तक भी पहुंचे हैं। एक छोटे से गांव लट्ठाखम्हान का ही उदाहरण लें जहां इस राज्य की सबसे पुरानी हॉकी चैंपियनशिप पिछले 31 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रही है। इस प्रतियोगिता में ही 60 से अधिक टीमें शामिल होती है। जिसमें झारखंड सहित उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और बंगाल से भी टीमें हिस्सा लेती हैं। बोलबा प्रखंड के अवगा गांव में 50 टीमों के साथ स्थानीय प्रतियोगिता होती है। मेजर ध्यानचंद टूर्नामेंट, राधा कृष्ण मेमोरियल टूर्नामेंट, गांधी शास्त्री टूर्नामेंट, गोंडवाना विकास मंच चैंपियनशिप, जयपाल सिंह मुंडा टूर्नामेंट, बिरसा मुंडा स्कूल लेबल चैंपियनशिप, और अम्बेडकर टूर्नामेंट जैसे एक दर्जन से ज्यादा बड़े कैलेंडर टूर्नामेंट तो सिमडेगा में हरेक साल आयोजित होते हैं। इसके अलावा छोटे छोटे टूर्नामेंट जिसमें कटहल, मुर्गा और खस्सी टूर्नामेंट भी खूब खेले जाते हैं और लोकप्रिय भी हैं। यहां खिलाड़ी खेलते हैं, सिखते हैं और फिर देश विदेश तक का सफर तय करते हैं।
जब साल भर गांव कस्बे के बच्चे इतनी सारी टूर्नामेंट में व्यस्त रहते हैं तब आप अनुमान लगा सकते हैं कि सिमडेगा हॉकी के लिए नर्सरी है या कोई यूनिवर्सिटी है। वास्तव में हॉकी यहां की संस्कृति का आनंद और उल्लास है। जानकर भी कहते हैं कि सिमडेगा में हॉकी का उत्साह और हुजूम दोनों मिलता है। यहां के खेत खलिहानों में हॉकी का फिजिक खिलाड़ियों में डेवलप होता है। जंगल और पहाड़ों से हॉकी का स्ट्रेंथ मिलता है और यहां के पगडंडियों में चपलता और तेजी पाते हैं। आप जब कोलेबिरा से सिमडेगा आएंगे तब आप को कई बोर्ड मिलेंगे जिनपर लिखा होगा " जंगल हमारी आजीविका और संस्कृति है"। यही संस्कृति ही यहां खिलाड़ियों में हॉकी के गुण भरती है। यहां के बच्चे "सरीफा" और "बेल" के सूखे फलों से हॉकी का गेंद और बांस के जड़ को खोद कर हॉकी का स्टिक तैयार करते रहे हैं। यही जुनून उन्हें इंटरनेशनल और नेशनल खेलों तक पहुंचाती है।
बहरहाल, सिमडेगा में हॉकी यहां की सबसे पुरानी टूर्नामेंट के दशकों पहले से खेला जाता रहा है। यहां के हॉकी संस्कृति से निकले खिलाड़ियों में चपलता, तेजी और स्ट्रेंथ देखते बनती है। ये खिलाड़ी यह भी साबित करते हैं कि अभाव में भी प्रभाव कैसे रखा जाता है।
तो आइए सिमडेगा में हॉकी का उत्साह, जुनून और अंडर करंट महसूस करने। यह देखने की हॉकी की नर्सरी अपनी मेजबानी में खेल का कैसे आनंद लेती है।