द फॉलोअप टीम, रांची:
राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि शिक्षा को व्यवसाय के रूप में कतई नहीं लेना चाहिये। छात्रहित में ऐसी शिक्षा व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि आश्चर्य और दुख का विषय है कि हमारे राज्य में स्थापित निजी विश्वविद्यालय यूजीसी व सरकार द्वारा निर्धारित मापदण्डों को पूर्ण नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूजीसी की अनुमति के बिना निजी विश्वविद्यालयों द्वारा विभिन्न कोर्स प्रारम्भ कर विद्यार्थियों को डिग्री वितरित कर दी जाती हैं। ऐसा कर वे सिर्फ विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। राज्यपाल आज राजभवन में राज्य में स्थित विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक व प्रशासनिक गतिविधियों की समीक्षा कर रहे थे। इस समीक्षा बैठक में अपर मुख्य सचिव, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग केके. खंडेलवाल, राज्यपाल के अपर मुख्य सचिव शैलेश कुमार सिंह एवं राज्य में स्थित विभिन्न निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति मौजूद थे। इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग केके. खंडेलवाल ने कहा कि राज्यपाल राज्य में उच्च शिक्षा के विकास हेतु चिंतित हैं। वे इसके लिए निरंतर प्रयत्नशील हैं और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार हेतु उनका निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि निजी विश्वविद्यालयों के पास 25 एकड़ की भूमि होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त 5 वर्ष के अंदर पूर्णतः आधारभूत संरचना विकसित हुआ चाहिये। उन्होंने सभी निजी विश्वविद्यालयों से निर्धारित मापदंडों का शीघ्र अनुपालन करने हेतु निर्देश दिया। विदित हो कि राज्य में कुल 16 निजी विश्वविद्यालय है।
राज्यपाल ने सभी निजी विश्वविद्यालयों को यूजीसी एवं सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों को यताशीघ्र पूर्ण करने हेतु निदेश दिया। उन्होंने कहा कि सभी निजी विश्वविद्यालयों को छात्रहित की सर्वोपरि भावना का ध्यान रखना चाहिये। उन्होंने कहा कि आज प्रत्येक राज्य में काफी निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं। उक्त अवसर पर उन्होंने छतीसगढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि जबसे निजी विश्वविद्यालय खुलने हेतु मान्यता देने की प्रचलन प्रारम्भ हुई तो छत्तीसगढ़ में सन 2001 में 125 से अधिक विश्वविद्यालय खुल गये, यहाँ तक कि कुछ विश्वविद्यालय होटलों से संचालित हो रहे थे। उन्होंने छात्रहित में इस विषय को गंभीरतापूर्वक उठाया। परिणाम यह हुआ कि बिना यूजीसी व सरकार के मापदंड संचालित निजी विश्वविद्यालय बंद हो गये और दो माह के अंदर मात्र 6 विश्वविद्यालय ही शेष बच गये।
राज्यपाल ने कहा कि स्मरण है कि एक समय नेतरहाट में पढ़ने हेतु हर विद्यार्थी इच्छुक रहते थे। माँ-बाप का सपना होता था कि उनके बच्चे का नेतरहाट विद्यालय में हो। उन्होंने निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से कहा कि क्या हम यहाँ के विश्वविद्यालयों में उस प्रकार का वातावरण नहीं स्थापित कर सकते हैं जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा हासिल करने आयें। उन्होंने कहा कि सभी निजी विश्वविद्यालयों को अपने विद्यार्थियों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान करनी चाहिये ताकि वे सम्मानजनक रोजगार प्राप्त कर सकें। उन्होंने विश्वविद्यालयों में टीचर-स्टूडेंट्स अनुपात में सुधार लाने पर ज़ोर दिया। राज्यपाल महोदय ने कहा कि विडम्बना है कि बहुत से निजी विश्वविद्यालयों के पास इतने वर्ष पूर्व मान्यता प्राप्त होने के बाद भी न अपना भवन है और न ही पर्याप्त भूमि।
राज्यपाल ने सभी निजी विश्वविद्यालयों को निदेश दिया कि वे अपने यहाँ छात्राओं एवं दिव्यांगो के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था करें। उन्होंने दिव्यांगो हेतु रैम्प का निर्माण शीघ्र करने का निदेश दिया। राज्यपाल ने कहा कि लोकसभा की सामाजिक न्याय और अधिकारता संसदीय समिति का अध्यक्ष होने के नाते डिसेबिलिटी विधेयक के अध्ययन के दौरान कई शहरों का भ्रमण किया और देश भर के दिव्यांगजनों से मिला, उनकी बातें सुनी व उनकी प्रतिभाएं देंखी। इसलिए दिवयांगों के लिए रैम्प की आवश्यकता को मैं समझता हूँ। उन्होंने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय यहाँ की महिलाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार सुलभ कराने की दिशा में गंभीरतापूर्वक ध्यान दें। राज्यपाल ने कहा कि देश के विभिन्न अस्पतालों में केरल की नर्सेज को देखा जाता है। उन्होंने कहा कि हम झारखंड की महिलाओं को नर्स की बेहतर प्रशिक्षण क्यों नहीं दे सकते हैं, आवश्यकता है आप सभी को समर्पण व ढृढ़ इच्छाशक्ति से कार्य करने की। राज्यपाल ने कहा कि आज हमारे विद्यार्थी यहाँ से डिग्री प्राप्त कर राज्य के बाहर नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस राज्य में भी कई कंपनियां हैं, आप सभी को चाहिये कि विद्यार्थियों के प्लेसमेंट के लिए पूरा प्रयास करें। उन्होंने निजी विश्वविद्यालयों को अपने यहाँ प्लेसमेंट सेंटर को प्रभावी बनाने हेतु निदेश दिया। राज्यपाल ने निजी विश्वविद्यालयों को विभिन्न प्रशासनिक पदों यथा- कुलपति, प्रतिकुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, वित्तीय सलाहकार, वित्तीय पदाधिकारी इत्यादि पर नियुक्ति के समय उनकी पृष्ठभूमि की ओर गंभीरतापूर्वक जाँच करने हेतु कहा। उनकी बेहतर छवि होना चाहिये ताकि विश्वविद्यालय की छवि ख़राब न हो।