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नगर निगम के अधिकारियों की लड़ाई में आम जनता पिस रही, पार्षद भी हो रहे परेशान

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द फॉलोअप टीम, रांची:
मेयर आशा लकड़ा और नगर आयुक्त का विवाद किसी से छिपा नहीं है। आए दिन किसी न किसी विवाद को लेकर दोनों चर्चा में बने रहते हैं। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। गुरुवार को नगर निगम की वर्चुअल बैठक हुई। वहां भी दोनों का विवाद जारी था। मेयर ने निर्देश दिया कि दो एंबुलेंस, दो शव वाहन और एक हजार ऑक्सीजन सिलिंडर खरीदा जाए। लेकिन इसमें नगर आयुक्त ने विरोध जताया और कहा कि ऑक्सीजन सिलिंडर रखने की जगह नहीं है। इसके बाद मेयर ने तुरंत ही बैठक के बाद आयुक्त को पत्र लिखा और कहा कि सिलेंडर खरीद लीजिये जगह उपलब्ध करा दिया जाएगा। 

इधर पार्षदों ने दुःख जताया 
इधर पार्षदों ने शहर की दुर्दशा देखते हुए सीडीसी और जोनटा कंपनी को हटाने का आग्रह किया है। मेयर आशा लकड़ा ने जलजमाव की समस्या को खत्म करने के लिए और अधिक कर्मचारियों को लगाने का निर्देश दिया है। नगर आयुक्त मुकेश कुमार ने कहा कि रांची को स्वच्छ रखना उनका पहला काम है। उन्होंने सफाई कंपनी को काम में सुधार करने का निर्देश दिया है। मेयर-नगर आयुक्त के पास अलग-अलग अधिकार हैं, जो नगर पालिका अधिनियम से मिला है। 
मेयर ने कहा है कि नगर आयुक्त से कोई विवाद नहीं है, लेकिन वे गलत करेंगे तो हर हाल में उनको रोका जाएगा। हम जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद नहीं होने देंगे। यह भी कहा गया कि 15वें वित्त आयोग के फंड से गली- मुहल्लों में पेवर्स ब्लॉक लगना है, लेकिन नगर आयुक्त एनएच और पथ निर्माण की सड़क पर खर्च करने में लगे थे। इसलिए दिल्ली में केन्द्रीय मंत्री से शिकायत की गई है।

कंपनी नहीं कर रही काम 
नगर निगम की में मेयर और आयुक्त की विवाद के कारण शहर की मूल कार्य भी अस्त-व्यस्त है। नगर निगम अपना मूल काम साफ-सफाई भी ढंग से नहीं कर रहा। इस मुद्दे पर जब पर पार्षदों ने भी नाराजगी जताई है। पार्षदों ने कहा कि पिछले दिसंबर सीडीसी कंपनी को आउटसोर्सिंग पर सभी 53 वार्ड में सफाई का काम दिया गया था, लेकिन बहुत से ऐसे घर हैं जहां से कचरा तक नहीं उठाया जा रहा है। झिरी डंपिंग यार्ड तक कूड़ा पहुंचाने की जिम्मेवारी जोनटा कंपनी की है। लेकिन यह भी अपना काम नहीं कर रही है। 

पार्षद परेशान हो रहे  
पार्षदों का कहना है कि आम जनता अपनी समस्या लेकर पार्षदों के पास पहुँचती है। निगम बोर्ड की बैठक में ही पार्षद अपनी बात रखते हैं। बैठक तो होती है, लेकिन उनकी समस्या सुनी नहीं जाती है। ऊपर के अधिकारी सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं। जिसमें जनता पिस रही है।