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अगले जनम मोहे गरीब ना कीजौ

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द फॉलोअप टीम, दुमका:
शरीर से हमार नाता हमेशा-हमेशा के लिए टूट गया। कहानी मेरी कोरोना के आने के साथ शुरू होती है।  हर तरफ महामारी थी। अचानक लॉकउाउन लग गया, जो जहां था, सब की मानो सांस थम गई। रोजी-रोटी का टोटा। अपनी भी एक छोटी नौकरी थी, जो घर में सुबह-शाम जलते चूल्हे की गवाह बनती थी। लेकिन एक दिन उससे भी हाथ धोना पड़ा। कोई भी हाथ आगे बढ़ता हुआ दूर-दूर तक न दिखा, जो मेरी कमजोर आर्थिक काया का हाथ थाम लेता। मैं कमजोर नहीं था, ना ही कायर था। मैं जिन्दगी की गाड़ी एक निजी गाड़ी चलाकर आगे बढ़ा रहा था, वे भी चली गई। मालिक को दोष क्या दूं। उनका इतने साल नमक जो खाया। दोष तो मेरा ही है। क्योंकि मैं गरीब था। दोष तो मेरी किस्मत का। दोस्त का प्यारा था। एक दोस्त के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए, अपनी गारंटी पर दूसरे दोस्त से पैसा लेकर उसे दिलवाया। लेकिन कोरोना का कहर ऐसा हुआ कि वे पैसा लौटा नहीं पाया। आज मेरा दोस्त मुझसे कहता है कहां गई तेरी गारंटी, कब मिलेगा मेरा पैसा। 

भूख से बिलबिलाता बच्चों का चेहरा 
बच्चों का भूख से बिलबिलाता चेहरा रूह को कंपकंपा जाता। तिस पर दोस्तं को रोज-रोज का दबाव कि पैसा दिलवाओ। तुम्हारे कारण तुम्हारी गारंटी पर उसे पैसे दिए थे। फिर भी एक आस थी, जिन्दगी कभी ना कभी फिर से पटरी पर लौटेगी। आज वो आस भी टूट गई। दोस्त ने वादा नहीं पूरा किया, दूसरे ने दबाब बनाया। क्या करता अपनी ही जान ले ली।

बाद मरने के मेरे घर ये जलसा निकला
आज मेरे मरने के बाद इतने लोग आये हैं। पहली बार लग रहा है कि मेरे घर में जलसा हुआ है। ऐसे गरीब कहां जलसा का आयोजन कर पाता है। पता नहीं चल पा रहा किसको धन्यवाद दू, जिसने मुझे मरने के बाद अमीर कर दिया। धरती पर मेरे दादा ने मेरा नाम बबलू सिंह रखा था, नाम की तरह में छोटा रह गया। मरने के बाद मलाल इस बात का है कि मेरे चार बेटे और मेरी पत्नी आज भी उसी धरती पर हैं, जहां जिन्दा रहना को आसान है, लेकिन जिन्दगी काफी मुश्किल है। हे उपरवाले मेरा आखरी विनती तो मान ले, अगले जन्म मोहे गरीब ना कीजौ।