द फॉलोअप टीम, दिल्ली:
जम्मू कश्मीर को लेकर कुछ बड़ा होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर को लेकर कोई बड़ा एलान कर सकते हैं। बीते काफी समय से ये विषय चर्चा में है। क्या आज इसका पटाक्षेप होगा। दरअसल, आज यानी 24 जून को पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर के सभी नेताओं के साथ अहम बैठक करने वाले हैं। इस मीटिंग में घाटी के तमाम क्षेत्रीय दलों के पहुंचने की संभावना है। कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने को लेकर चर्चा हो सकती है। क्या वाकई ऐसा होने जा रहा है।
पांच अगस्त 2019 को विशेष राज्य का दर्जा खत्म
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पांच अगस्त साल 2019 को आर्टिकल 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा को खत्म कर दिया था। राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो भिन्न केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का एलान भी किया गया था। संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पारित होने के बाद फरवरी 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। आयोग को रिपोर्ट सौंपी गई थी और 1 साल का एक्सटेंशन दिया गया था। परिसीमन और जम्मू-कश्मीर को लेकर अहम तथ्यों की चर्चा करते हैं। समझते हैं कि पूरा माजरा दरअसल है क्या।
परिसीमन की व्यवस्था का मतलब क्या होता है
सबसे पहले ये जान लीजिए कि परिसीमन क्या होता है। परिसीमन का मतलब होता है सीमा का निर्धारण करना। किसी भी राज्य में लोकसभा या राज्यसभा अथवा विधानसभा की कितने सीटें होंगी। उसका क्षेत्र क्या होगा, ये निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। ये प्रक्रिया आमतौर पर वोटिंग के जरिए होती है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है। इसके पास काफी अहम जिम्मेदारियां होती हैं।
परिसीमन में किस खास बात का खयाल रखा जाता है
परिसीमन के दौरान इस बात का खास खयाल रखा जाता है कि राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समान रहे। ये भी सुनिश्चित किया जाता है कि एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य तौर पर एक से अधिक जिले ना हों। चलिये ये भी जान लेते हैं कि पहली बार परिसीमन आयोग का गठन कब किया गया था।
पहली बार साल 1952 में हुआ था आय़ोग का गठन
परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 के तहत पहले परिसीमन आयोग का गठन साल 1952 में किया गया था। इसके बाद परिसीमन आयोग का गठन साल 1963, 1973 और 2002 में किया गया था। साल 2002 में संविधान के 84वें संसोधन के द्वारा इस प्रतिबंध को साल 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया। परिसीम की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने के पीछे सरकार का तर्क ये था कि साल 2026 तक सभी राज्यों की जनसंख्या वृद्धि का औसत सामान्य हो जायेगा। तब दोबारा इसका गठन किया जायेगा।
जम्मू-कश्मीर में कैसे हुआ था सीटों का परिसीमन
लोकसभा सीटों को लेकर जम्मू-कश्मीर की स्थिति की चर्चा की जाये तो ये थोड़ा भिन्न होगा। जम्मू-कश्मीर के लिए परिसीमन अन्य राज्यों के साथ ही हुआ था लेकिन विधानसभा सीटों का सीमांकन उस अलग संविधान के मुताबिक किया गया था जो जम्मू-कश्मीर को अपनी विशेष स्थिति के आधार पर मिला था। अनुच्छेद 370 जिसके तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला था वो अब निरस्त किया जा चुका है। जम्मू कश्मीर में विधानसभा की सीटों का भी कोई परिसीमन नहीं किया गया था। 2002 और 2008 के बीच देश भर में अंतिम परिसीमन किया गया था। जम्मू-कश्मीर का अपना विशेष राज्य का दर्जा खोने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद संसदीय और विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं को फिर से बनाने के लिए एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।
आखिर जम्मू-कश्मीर में कैसे बढ़ेगी सात सीटों की संख्या
गौरतलब है कि 2019 के पहले केंद्र ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 की जायेगी। विधानसभा की प्रभावी ताकत 87 थी जिसमें लद्दाख से आने वाली 4 सीटें भी शामिल थीं। लेकिन अब लद्दाख विधायिका के बिना एक अलग केंद्र शासित प्रदेश हैं। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 24 सीटें खाली रह गई क्योंकि वो पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा हैं। सीटों की वृद्धि को जम्मू और कश्मीर के दो क्षेत्रों के बीच चुनावी समानता सुनिश्चित करने के लिए एक कदम के रूप में देखा जा सकता है। यहां ये पहले 46 और 37 सीटों पर तय थी।