राकेश कायस्थ, मुंबई:
नवजोत सिंह सिद्धू उल्टा तोप दागने में माहिर एक ऐसे बड़े बड़बोले व्यक्ति हैं, जो यह मानते हैं कि त्वरित तुकबंदी प्रतिभा का इनाम उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दिया जाना चाहिए। बीजेपी में सिद्धू को काफी मौके मिले। मगर वो अपनी कोई उपयोगिता साबित नहीं कर पाये। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने आम आदमी पार्टी के साथ जमकर मोल-तोल किया और कोई ठोस आश्वसान ना मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी में आये।
भाषण कला से प्रभावित गांधी परिवार
गाँधी परिवार सिद्धू को इतनी अहमियत क्यों दे रहा है, यह हर किसी की समझ से परे है। शायद राहुल और प्रियंका ये मान बैठे हैं कि मोदी शैली की भाषण कला से ही आज की चुनावी राजनीति में सफल हुआ जा सकता है। लेकिन यह सिर्फ एक मिथ है। मुलायम सिंह यादव और अशोक गहलोत जैसे नेताओं के भाषण देने का लहजा याद कीजिये, क्या उनकी लोकप्रियता से उनकी भाषण शैली का कोई रिश्ता नज़र आता है। नीतीश कुमार भी एक कमज़ोर वक्ता हैं। नवीन पटनायक का भी यही हाल है लेकिन ये लोग बरसों से सत्ता में बने हुए हैं।
जब मोदी की उधेड़ी गई थी बखिया
बीजेपी में रहते हुए राहुल गांधी को पप्पू बताने वाले सिद्धू ने 2019 के चुनाव के ठीक पहले तालकटोरा स्टेडियम में एक जोशीली तकरीर की थी, जिसमें गांधी परिवार की आरती उतारी गई थी और मोदी की बखिया उधेड़ी गई थी। कांग्रेस के उस अधिवेशन में सोनिया गांघी और राहुल गांधी मौजूद थे। संभवत: वही गांधी परिवार से सिद्धू के रिश्ते मजबूत करने वाला टर्निंग प्वाइंट था। अगर गांधी परिवार सिद्धू की कीमत पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को नाराज़ करता है तो यह एक आत्मघाती कदम होगा।
लेकिन सिद्धू एक लूज़ कैनन
एक राजनेता के रूप में सफल होने के लिए जो लचीलापन चाहिए वह सिद्धू में सिरे से नदारद है। ज्यादातर लोगों को याद होगा कि पंजाब सरकार में मंत्री बन चुके सिद्धू बार-बार मना करने के बावजूद कपिल शर्मा का शो छोड़ने को तैयार नहीं हुए थे। जो कांग्रेसी सिद्धू की भाषण देने की कला के कायल हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि सिद्धू एक लूज़ कैनन हैं। जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल करने की वजह से क्रिकेट कमेंटेटर के रूप में उनका करियर खत्म हो चुका है। उनकी जोशीली भाषणबाजी जितनी भीड़ बटोरेगी, बहुत मुमकिन है, किसी दिन उससे ज्यादा बड़ी मुसीबत खड़ी कर दे। बेहतर यही होगा कि कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह के बारे में सोचे। सिद्धू का रहना या जाना पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं डालेगा।
(रांची के रहने वाले लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। संप्रति मुंबई में रहते हैं।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।