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कोच नसीम अहमद से सुनिए ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा के संघर्ष की कहानी...

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द फॉलोअप टीम, दिल्ली: 

टोक्यो ओलंपिक्स में भारत को पहला और एकमात्र स्वर्ण पदक दिलाने वाले जेवलीन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को इस खेल की कोचिंग नसीम अहमद ने दी। जब नीरज ने गोल्ड जीता तो जाहिर है कि कोच की प्रतिक्रिया सामने आती। नीरज चोपड़ा को 14 साल की उम्र से प्रशिक्षण दे रहे कोच नसीम अहमद ने उनसे जुड़ा कई दिलचस्प किस्सा शेयर किया है। बताया कि कब नीरज पहली बार उनके पास प्रशिक्षण के लिए आए। वे बचपन में कैसे थे। कितनी मेहनत की। 

कोच नसीम अहमद ने बताई दिलचस्प बातें
कोच नसीम अहमद ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में बताया कि उन्हें अब भी याद है कि साल 2011 में एक 13 साल का गोलू-मोलू सा बच्चा उनके पास आया था। नीरज पंचकुला स्थित ताऊ देवीलाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेस में कोच नसीम अहमद से प्रशिक्षण लेने पहुंचे थे। कोच नसीम अहमद ने बताया कि नीरज ने पानीपत के खांद्रा गांव से पंचकुला तक पूरे 4 घंटे का सफर किया था। वो काफी थका हुआ था लेकिन उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। नसीम अहमद ने बताया कि ताऊ देवीलाल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में हरियाणा का केवल दूसरा सिंथेटिक ट्रैक थी जहां जेवलीन थ्रोइंग का अच्छा प्रशिक्षण हासिल किया जा सकता था। नीरज चोपड़ा काफी उत्साहित थे। 

2011 में कोचिंग के लिए पंचकुला आए थे नीरज
कोच नसीम अहमद ने बताया कि 2011 में नीरज चोपड़ा का पंचकुला आने का फैसला शनिवार को ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीतने से भी बड़ा है क्योंकि उसे फैसले ने नीरज की जिंदगी की धारा मोड़ दी। कोच नसीम अहमद ने कहा कि नीरज ओलंपिक्स भारत की तरफ से व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाला केवल दूसरा खिलाड़ी है। कोच कहते हैं कि ये ना केवल नीरज के लिए यादगार है बल्कि उनके लिए भी ये बहुत बड़ा दिन है। नीरज ने इसके लिए बहुत मेहनत की थी। 

नीरज चोपड़ा ने कभी भी अभ्यास से जी नहीं चुराया
कोच नसीम अहमद ने बताया कि नीरज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कभी भी प्रैक्टिस से जी नहीं चुराता था। अपनी बारी खत्म हो जाने के बाद वो नोटबुक लेकर वहीं बैठ जाता करता था। सीनियर्स को अभ्यास करते हुए बड़े गौर से देखता था। अभ्यास के दरम्यान सीनियर प्लेयर्स से टिप्स लेता औऱ उसे नोटबुक में दर्ज करता। नीरज ने कभी 1 दिन के लिए भी प्रैक्टिस मिस नहीं की। कोच नसीम अहमद का कहना है कि जिस तरीके से वो ट्रेनिंग सेंटर में सीनियर्स के साथ वक्त बिताया था, मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि नीरज ने दुनियाभर के टॉप के जेवलिन थ्रोअर्स के साथ भी वक्त बिताया होगा और उनसे भी काफी कुछ सीखा। कोच ने कहा कि मैं उसके स्वर्ण पदक जीतने से काफी खुश हूं। 

जयवीर सिंह से सीखा तो जेवलिन थ्रोइंग का गुर
गौरतलब है कि नीरज चोपड़ा ने सबसे पहले जेवलिन थ्रो की कला पानीपत में ही कोच जयवीर सिंह से सीखी। साल 2011 में नीरज ने पंचकुला का रूख किया। यहां नीरज ने 2011 से लेकर 2016 तक सीखा। यहीं प्रशिक्षण प्राप्त करते हुए पहली बार पौलेंड में आयोजित आईएएएफ चैंपियनशिप में गोल्ड जीता। कोच नसीम अहमद ने बताया कि वे नीरज को सुबह के सत्र में लंबी दूरी की दौड़ का प्रशिक्षण दिया करते थे और शाम को भाला फेंकने का। 

नीरज ने कभी भी अनुशासनहीना नहीं दिखाई
कोच नसीम अहमद ने बताया कि नीरज हॉस्टल में ही रहा करते थे। मैं हमेशा उस पर निगरानी नहीं रख सकता था लेकिन नीरज ने कभी अनुशासनहीनता नहीं दिखाई। प्रशिक्षण से बचे समय में या तो वे किताबें पढ़ता था या फिर सीनियर्स को इस बात के लिए परेशान करता था कि वे उन्हें बीते ओलंपिक्स के जेवलीन थ्रो इवेंट्स के वीडियो दिखाएं। अभ्यास के दौरान ही नीरज ने अपने कौशल का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। विश्वास था कि वो कुछ बड़ा करेगा।