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पाकिस्तान और बांग्लादेश: अल्‍पसंख्‍यकों के साथ हिंसा के मामले फिर

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक, दिल्ली:

पड़ौसी देशों में मजहबी कट्टरवाद ने सारी दुनिया में उनकी छवि खराब कर रखी है। ये दो पड़ौसी कौन हैं। एक है- पाकिस्तान और दूसरा है बांग्लादेश। ये दोनों कौन थे? ये दोनों भारत ही थे, अभी 74 साल पहले तक! दोनों मजहब के नाम पर 1947 में भारत से अलग हो गए लेकिन देखिए इनकी खूबी कि वह मजहब इन्हें एक बनाकर नहीं रख सका। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया लेकिन दोनों देश आज भी मजहब के पांव तले दबे हुए हैं। न तो पाकिस्तान की जनता को मोहम्मद अली जिन्ना का वह भाषण याद है कि अब इस आजाद पाकिस्तान में हिंदू-मुसलमान का कोई भेदभाव नहीं चलेगा और न ही बंगाली मुसलमानों को शेख मुजीब का ‘बांग्ला सर्वोपरि’ का नारा याद है। दोनों देशों में इस्लाम के नाम पर जोर-जबर्दस्ती और हिंसा करने में कई लोगों को कोई संकोच नहीं होता। सारी दुनिया में हो रही इस बदनामी से बचने के लिए इमरान खान के दल ‘पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ’ ने संसद में एक विधेयक पेश किया, जिसमें यह प्रावधान था कि जो भी जबरन धर्मांतरण करता हुआ पाया जाए, उसे 10 साल की सजा हो और उस पर दो लाख रु. जुर्माना ठोका जाए। खुद इमरान खान इसका समर्थन कर रहे थे लेकिन कट्टरपंथियों ने इतना जबर्दस्त दबाव उनकी सरकार पर डाला कि उसे इस विधेयक को वापस लेना पड़ गया है।

 

धार्मिक मामलों के मंत्री नूरूल हक कादिरी ने कहा है कि यदि यह कानून बन जाता तो देश में शांति और व्यवस्था चौपट हो जाती। मंत्री का यह बयान क्या बताता है? क्या यह जिन्ना को शीर्षासन नहीं करवा रहा है? क्या जिन्ना ने ऐसे ही पाकिस्तान का सपना देखा था? उधर बांग्लादेश का हाल जरा पाकिस्तान से बेहतर है लेकिन अब भी वह पाकिस्तानी पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं हो पाया है। कल की बड़ी खबर यह है कि बांग्लादेश के कई शहरों और गांवों में जबर्दस्त मजहबी मुठभेड़ें हुई हैं और उनमें चार लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। यह मुठभेड़ इसलिए हुई कि बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू लोग दुर्गा-पूजा का त्यौहार काफी उत्सवपूर्वक मनाते हैं। इस मौके पर यह अफवाह फैल गई कि किसी मंदिर में कुरान शरीफ का अपमान किया गया है। बस, फिर क्या था? सैकड़ों-हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और दुर्गा-पूजकों पर टूट पड़े। यह संतोष का विषय है कि शेख हसीना सरकार ने बड़ी मुस्तैदी दिखाई और हमलावरों की उसने हवा ढीली कर दी। माना जा रहा है कि ‘जमाते-इस्लामी' की ही यह करतूत थी। उसे यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है कि दुर्गा-पूजा के नाम पर बांग्लादेश में हजारों पंडाल सजाए जाएं। जमात का नारा तो यह है कि ‘हम ढाका को काबुल बनाएंगे।’ लेकिन जब तक शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं, वे इन कट्टरपंथियों की दाल नहीं गलने देंगी। वे अपने महान पिता शेख मुजीब की परंपरा को उलटाने नहीं देंगी। 

 

 


 

(लेखक दैनिक नवभारत टाइम्‍स के साथ न्‍यूज एजेंसी भाषा के संपादक रहे हैं। संप्रति भारतीय विदेश नीति और भारतीय भाषा सम्‍मेलन के अध्‍यक्ष के साथ स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।