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हूल दिवस जनजाति समाज के शौर्य का प्रतीक : बाबूलाल मरांडी

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द फॉलोअप टीम,रांची:
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने शहीद सिध्दो कान्हो को श्रद्धांजलि अर्पित की है। वहीं कहा कि उनका बलिदान अमर है। हूल दिवस जनजाति समाज के शौर्य का प्रतीक है। उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने जनजाति आन्दोलनकारी को कभी सम्मान एवं इतिहास में स्थान देने का काम नहीं किया। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजाति समाज के शूरवीरों को सम्मान देने का काम किया। वो हूल दिवस पर भाजपा प्रदेश कार्यालय में भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की ओर से  हुए कार्यक्रम में बोल रहे थे।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश ने कहा कि 166 वर्ष पूर्व संथाल आदिवासियों पर अंग्रेजी शासन व्यवस्था के खिलाफ और सामंतवादी सिस्टम के खिलाफ अमर शहीद सिद्धू-कान्हू ने संघर्ष किया। भारत की आजादी को लेकर हुए सबसे पहले आंदोलन में बाबा तिलका मांझी के बाद झारखंड में सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में हूल क्रांति को माना जाता है। यहां एक परिवार के 6 सदस्य स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हो गए, उसके माता-पिता,परिवार और समाज का कितना बड़ा योगदान है।



हूल दिवस पर भाजपा एससटी मोर्चा का कार्यक्रम 
एससटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा कि अंग्रेज आदिवासियों के शोषण एवं प्रताड़ना के साथ-साथ सांस्कृतिक व्यवस्था पर भी अतिक्रमण कर रहे थे। उस शोषण दमन के खिलाफ सिद्दू-कान्हू , चाँद-भैरो,फूलों-झानो के नेतृत्व में हूल आंदोलन हुआ। उस वक्त अपना हुकूमत के खिलाफ एवं महाजनी प्रथा को समाप्त करके के लिए क्रांति हुई थी, उसे ही हूल क्रांति के रूप जाना जाता है। कार्यक्रम में सिद्दू-कान्हू की चित्र पर माल्यार्पण किया गया। कार्यक्रम में एडवर्ड सोरेन, अशोक बड़ाईक, बिंदेश्वर बेक, रेणुका मुर्मू, अनु लकड़ा, नकुल तिर्की, प्रेम बड़ाईक, रवि मुंडा, राजेन्द्र मुंडा, सुलेन गाड़ी, अर्जुन मुंडा सहित कई उपस्थित थे।