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पहली भारतीय लक्स गर्ल, जिनकी फिल्‍मों ने भी मचाई धूम

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मनोहर महाजन, मुंबई:
लीला चिटनिस (9 सितंबर 1909-14 जुलाई 2003) का जन्म धारवाड़, कर्नाटक के एक मराठी भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक अंग्रेज़ी साहित्य के प्रोफेसर थे। छोटी सी 16 वर्ष की आयु में ही उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया। लीला चिटनिस की कम उम्र में ही शादी हो गई थी और वह चार बच्चों की मां भी बन गईं थीं। पति गजानन यशवंत चिटनिस और उनके बीच हमेशा किसी न किसी बात को लेकर विवाद रहता था। जिस वजह से उनकी शादी ने लंबे समय तक न चल सकी और दोनों अलग हो गए। अलग होने के बाद लीला ने अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए स्कूल में बतौर अध्यापिका काम करना शुरू कर दिया। उस दौरान वह नाटकों में भी काम करने लगीं।

 


इसी दौरान उन्हें ‘सागर मूवीटोन’ फिल्म में  एक 'एक्स्ट्रा' के रूप में काम करने का मौका मिला। फिर उसी कंपनीकी  फ़िल्म 'जेंटलमैन डाकू' ("जेंटलमैन थीफ") में लीला चिटनिस ने पुरुष परिधान पहने एक 'पॉलिश्ड बदमाश' की भूमिका निभाई। टाइम्स ऑफ इंडिया में इस फिल्म के इश्तिहारों में उन्हें महाराष्ट्र की पहली स्नातक महिला के रूप में प्रचारित किया गया। इससे, सिल्वर स्क्रीन पर एक अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली बड़ी पहचान बनी (जबकि भारतीय सिनेमा की पहली ग्रेजुएट अभिनेत्री  दुर्गा खोटे मानी जाती हैं)। इसके बाद उन्हें मास्टर विनायक की फिल्म 'छाया' (1936) में भी एक दमदार किरदार निभाने का मौका मिला। उनकी 'अदाकारी'  और कलाकारी से प्रभावित हो कर 'बॉम्बे टॉकीज़' ने लीला को अप्रोच किया। परिणाम? उस दौर के सुपरस्टार अशोक कुमार के साथ फिल्म “कंगन” के लीड रोल में उन्हें लांच किया गया। 

 

 

दर्शकों में अशोक कुमार और लीला चिटनिस की जोड़ी को बेहद पसंद किया। 'कंगन' हिंदी सिनेमा की पहली 'ब्लॉक-बस्टर' फिल्म मानी जाती है। इसके बाद लीला ने अशोक कुमार के साथ कई बेहतरीन फिल्में कीं। एक इंटरव्यू में अशोक कुमार ने भी माना था कि बिना कुछ कहे सिर्फ़ आंखों से अपनी बात समझा देने का हुनर उन्होंने लीला से ही सीखा था। फ़िल्म 'कंगना' की सफलता के साथ ही, लीला ने बॉम्बे टॉकीज की शानदार अग्रणी नायिका देविका रानी की जगह ली। लीला ने बॉक्स ऑफिस पर कई हिट फिल्में दीं. जैसे आज़ाद (फ्री, 1940), बंधन (टाईज़, 1940) और झूला ("स्विंग", 1941)।

 

अपनी 'लोकप्रियता' और 'ग्लैमर' की ऊंचाई पर 1941 में उन्होंने 'लक्स सोप की 'ब्रांड' का समर्थन करने वाली पहली भारतीय फिल्म स्टार बनकर इतिहास रच दिया.ये स्थान इससे पहले केवल शीर्ष हॉलीवुड अभिनेत्रियों को दिया जाता था। समय बदला खूबसूरत लीला ने 'प्रौढ़ता' में क़दम रखा। फिल्म 'शहीद' में पहली बार मां का किरदार निभाया। इस फिल्म में उन्होंने सुपर स्टार दिलीप कुमार की मां का रोल निभाया था। बॉलीवुड में मां के किरदार से लीला ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। हालांकि उस दौर में और भी ऐसी अभिनेत्रियां थीं जो मां का किरदार निभाती थीं पर दर्शकों को अपने अभिनय से बांध रखा था लीला ने, क्योंकि लीला प्यार और दुलार से भरपूर मां थीं। राजकपूर की फिल्म “आवारा” में भी लीला ने ही मां का किरदार निभाया,‘गाइड’ (1965) में देव आनंद उनके बेटे थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों में 22 वर्ष तक 'आदर्श मां की भूमिकाओं को अमर  बनाया।

 

 

लीला ने 'किसी से ना कहना' ("डोंट टेल एनीबडी", 1942) का निर्माण और 'आज की बात' ("द टॉक ऑफ टुडे", 1955) का निर्देशन करते हुए फिल्म-निर्माण में भी कुछ समय के लिए काम किया। उन्होंने समरसेट मौघम की 'सेक्रेड फ्लेम' का एक मंच रूपांतरण भी लिखा और निर्देशित किया। 1981 में अपनी आत्मकथा, 'चंदेरी दुनियात' मराठी भाषा मे प्रकाशित की। 1987 में फिल्म “दिल तुझको दिया” में काम करने के बाद लीला ने फिल्मी दुनिया को 'अलविदा' कह दिया। फिल्मी दुनिया छोड़ने के बाद लाइट और कैमरों से दूर लीला अपने बड़े बेटे के साथ अमेरिका में रहने लगीं। 94 वर्ष की आयु में डैनबरी, कनेक्टिकट के नर्सिंग होम में उनकी मृत्यु हो गई। चार दशकों तक सिने-प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाली इस महान कलाकार को उनकी 112 वीं सालगिरह पर हम दिल से नमन करते हैं।

 

(मनोहर महाजन शुरुआती दिनों में जबलपुर में थिएटर से जुड़े रहे। फिर 'सांग्स एन्ड ड्रामा डिवीजन' से होते हुए रेडियो सीलोन में एनाउंसर हो गए और वहाँ कई लोकप्रिय कार्यक्रमों का संचालन करते रहे। रेडियो के स्वर्णिम दिनों में आप अपने समकालीन अमीन सयानी की तरह ही लोकप्रिय रहे और उनके साथ भी कई प्रस्तुतियां दीं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।