द फॉलोअप टीम, रांचीः
एसोसिएशन फॉर परिवर्तन आफ नेशन (APNA) ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम - 2009 की धारा 12 (1) (सी) के कार्यान्वयन की स्थिति और झारखंड में लाभार्थियों द्वारा किए गये चुनौतियों का सामना पर एक रिपोर्ट जारी की है। इस संबंधमें सत्य भारती में मीडिया को संस्था से जुड़े लोगों ने बताया कि अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) और वंचित समूहों (डीजी) के बच्चों के लिए प्रवेश स्तर की कक्षाओं में सभी निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों के आरक्षण का प्रावधान है। रिपोर्ट जारी करते हुए सदस्यों ने नीति के कार्यान्वयन में आने वाली विभिन्न समस्याओं की ओर इशारा किया और मूल स्तर पर कानून के कुशल कार्यान्वयन के लिए सुझाव भी दिए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में संगठन के अध्यक्ष हसन अल बन्ना, शोधकर्ता पल्लवी प्रतिभा और पीड़ित परिवार मौजूद थे।
यह रिपोर्ट विभिन्न राज्यों में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे रिसर्च स्काॅलर, गैर सरकारी संगठनों के साथ चर्चा के साथ-साथ विभिन्न राज्यों की नीतियों, न्यायालयों के निर्णयों और संगठन के 2018 से जागरूकता अभियान चलाने के अनुभव के व्यापक विश्लेषण पर आधारित है, साथ ही रिपोर्ट में रांची शहर के 54 झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ऐसे परिवारों का भी सर्वे अगस्त 2021 मे क्या गया जिन परिवारों ने विगत वर्ष ऐडमिशन के लिए आवेदन दाखिल क्या था। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवेश की पूरी प्रक्रिया अस्पष्टता, भेदभावपूर्ण व्यवहार और कई अन्य अनियमितताओं से भरी हुई है।
इन समस्याओं को किया गया इंगित
जागरूकता कार्यक्रमों का अभाव: न तो सरकार और न ही स्कूल लोगों को आवेदन भरने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देने के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं। 54 उत्तरदाताओं में से केवल 1 ने कहा कि उन्होंने अपने स्थानीय प्राधिकरण से प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्राप्त की, जबकि उनमें से अधिकांश ने APNA द्वारा किए गए प्रयासों के माध्यम से कानून की जानकारी प्राप्त की।
आवेदन प्रक्रिया की छोटी अवधि: पूरी आवेदन प्रक्रिया 15 दिनों में पूरी की जाती है। यह समय सीमा न केवल बहुत कम है, बल्कि बहुत सारे भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी प्रदान करता है। आय या जाति प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज प्राप्त करने के लिए माता-पिता को अक्सर मोटी रिश्वत देनी पड़ती है। सिरोम टोली की रहने वाली सविता ने बताया कि, “प्रवेश के समय हमारे पास बहुत कम समय था इसलिए, प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए हमें रिश्वत देनी पड़ी।” कई मामलों में, दस्तावेजों की कमी या उन्हें प्राप्त करने में देरी होने के कारण ज़रूरतमंद अभिभावक आवेदन नहीं भरे पाए।
स्कूल स्तर पर समस्याएं: अभिभावकों ने स्कूलों में आर्थिक व जाति आधारित भेदभाव की शिकायत की। उदाहरणार्थ, वंचित समाज के माता-पिता को स्कूलों के अन्दर जाने नही दिया जाता और उनके द्वारा दिए गए आवेदन पत्र गार्ड को सौंप दिया जाता और उसके बदले उन्हे कोई रिसीविंग भी नही दी जाती। लगभग 59 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि स्कूल के कर्मचारियों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। कुछ मामलों में, स्कूलों ने माता-पिता से सरकार द्वारा सूचीबद्ध किए गए दस्तावेजों की तुलना में अतिरिक्त दस्तावेज मांगे। मुरमा की लक्ष्मी देवी और रविदास मोहुल्ला के राजेश राम को दिल्ली पब्लिक स्कूल, रांची में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। पर्वेश प्रक्रिया व दस्तावेजों से संबंधित किसी भी प्रश्न की जानकारी के लिए परिवारों को शायद ही किसी प्रशासनिक कर्मचारी से मिलने का मौका मिलता है।
आवेदन ट्रैकिंग प्रणाली की अनुपस्थिति: एक बार जब माता-पिता स्कूल में आवेदन पत्र जमा कर देते हैं, तो वे पूरी प्रवेश प्रक्रिया से पूरी तरह कट जाते हैं। माता-पिता या अभिभावकों को आवेदन की स्थिति पर कोई जानकारी नहीं मिलती। इसके अतिरिक्त स्कूल आवेदकों को परिणाम की तारीख के बारे में भी सूचित नहीं करते हैं और माता-पिता को अक्सर परिणाम देखने के लिए स्कूलों में कई बार जाना पड़ता है। अक्सर अभिभावकों के सभी दस्तावेज और सीटों की उपलब्धता के बावजूद उनके आवेदनों को बिना कोई कारण बताए खारिज कर दिया जाता हैं। आरटीआई जवाब के मुताबिक 2019 - 20 रांची में 74 फीसदी सीटें खाली रहने के बावजूद 89 फीसदी आवेदनों को बिना कोई वजह बताए खारिज कर दिए गया था। रविदास मोहल्ला के सर्वेश वर्धन ने तीन स्कूलों - फिरयालाल पब्लिक स्कूल, सच्चिदानंद ज्ञान भारती मॉडल स्कूल और जवाहर विद्या मंदिर में आवेदन पत्र जमा किया, लेकिन तीनों स्कूलों ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया, अस्वीकृति का कारण आज तक अज्ञात है।
परिवार पर वित्तीय बोझ: 80 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें दो या दो से अधिक बार स्कूल जाना पड़ा, जिससे उनकी दैनिक मजदूरी पर प्रभाव पड़ा। इसके अलावा, आवेदन पत्र की छोटी अवधि होने के कारण, माता-पिता को अक्सर दस्तावेज़ों में रिश्वत देनी पड़ी। जगन्नाथपुर की सुभद्रा देवी लोगों के घरों में नौकरानी का काम करती हैं। उन्होंने बताया के, "सरकार को हमारी झुग्गी का दौरा करना चाहिए और यहां की स्थिति को देखना चाहिए। यहां के लोग नौकरानी, ड्राइवर या कुली का काम करते हैं। जब हम दो दिन के मजदूरी से चूक जाते हैं, तो हमारे पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भोजन नहीं होता है। मेरी चार बेटियाँ हैं और मेरा पति भी सहयोग नहीं करता। मैं इस स्थिति में कैसे प्रबंधन करूं? अगर योजना का लाभ उठाने का मतलब मजदूरी का नुकसान है, तो यह योजना हमारे किसी काम की नहीं है।”