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दुर्गापूजा, दशहरा और बाबूजी का नवाह पाठ

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कृष्णा नारायण, दिल्ली:

ऊँ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।।

दुर्गा पूजा शुरू होते ही बाबूजी का नवाह पाठ शुरू हो जाता था। घर में पूजा फिर माई स्थान में देवी आराधना। माई स्थान में नवाह पाठ की शुरुआत बाबूजी ने ही की। माता का जोड़ा घर से तैयार होकर जाता था। माता का भोग-  खिचड़ी और खीर पूड़ी घर से बनकर जाता था। अहा हा ! उस भोग प्रसाद की बात ही कुछ और थी। धीरे-धीरे मोहल्ले के लोगों ने इसमें अपनी सहभागिता दर्ज करानी शुरू की। कुछ ही वर्षों में सबके सहयोग से एवं माता रानी के आशीर्वाद से  एक भव्य दुर्गा स्थान बनकर तैयार हो गया। नौ दिन किस प्रकार बीतते थे पता ही नहीं चलता था। दशमी को माता की विदाई पर बाबूजी की नम आँखों की याद अभी भी हमारी आँखों के कोर को गीला कर जाती है।

प्राचीन काल से स्त्री के हर स्वरूप को हम पूजते आये हैं| महाभारत काल की एक सशक्त स्त्री  जिसके एक निर्णय ने इतिहास की दिशा और कुरुवंश की दशा ही बदल दी, उसकी चर्चा करना  ऐसे समय में तो बनती है न जिस समय में सब मातृशक्ति की उपासना कर रहे हैं| मातृशक्ति का आह्वान कर रहे हैं| कुरुवंश की वह स्त्री है सम्राट शांतनु की पत्नी साम्राज्ञी सत्यवती|  सत्यवती के पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य के मृत्यु के पश्चात्  विशाल कुरु साम्राज्य, सम्राट विहीन हो गया| पीछे रह गईं अम्बिका और अम्बालिका|  अब तक इन दोनों के कोई संतान नहीं हुई थी| कुरुवंश, समाप्त होने की कगार पर आ खड़ा हुआ| 

अब आगे  क्या और कैसे ?? ऐसे समय में सत्यवती द्वारा लिया गया एक मजबूत निर्णय ने काल की दिशा बदल दी| सत्यवती ने भीष्म से सलाह की और पूछा  कि कुरुवंश की वंश बेल आगे बढे इसके लिए अब हमें क्या करना चाहिए?

भीष्म ने कहा कि एक मार्ग है जिसको धर्म शास्त्र भी अपना समर्थन देता है और वह है 'नियोग'| इसके अनुसार इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने पर 'पर पुरुष' के संसर्ग से संतानोत्पत्ति की जा सकती है और ऐसा संतान वैध संतान माना जायेगा| ऐसे समय में सत्यवती ने भीष्म को न सिर्फ अपने उस पुत्र के बारे में बतलाया जिसका जन्म महाराज शांतनु से शादी के पूर्व ही हो चुका था बल्कि यह भी कहा कि जब किसी अन्य पुरुष के संसर्ग से वंशवृद्धि की जा सकती है तो क्यों न वह पुरुष व्यास हो| सत्यवती के बुलाने पर व्यास आते हैं। सत्यवती उन्हें बुलाने का प्रयोजन बताती है कि मैं चाहती हूँ कि मेरी पुत्रवधुएं संतान को जने। और आगे की कथा से हम सभी परिचित हैं ... धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर का जन्म ...

सत्यवती की दृढ इच्छा शक्ति और मजबूत निर्णय ने एक वंश को असमय ही काल कवलित हो जाने से बचा लिया। एक माँ, बुद्धिमान, कुशल और विशिष्ट स्त्री, सत्यवती ने अगर ऐसा कठिन पर मजबूत निर्णय नहीं लिया होता तो कुरुवंश तो उसी समय समाप्त हो गया होता| 

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। डिजिटल मंच पर नियमित लेखन। मूलतः बेगूसराय की निवासी।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। सहमति के विवेक के साथ असहमति के साहस का भी हम सम्मान करते हैं।